रायपुर: छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के मिनपा गांव में आजादी के बाद से अब तक तिरंगा झंडा नहीं फहराया गया था. लेकिन 26 जनवरी को सीआरपीएफ के जवानों ने यहां गांव वालों के साथ झंडा फहराया. इस बात की जानकारी जिसे भी मिल रही है वो इस ऐतिहासिक लम्हे की तारीफ कर रहा है.


जिस गांव के लोग 26 जनवरी का मतलब नहीं जानते हों, जहां आजादी के बाद से आज तक तिरंगा झंडा ना फहराया जा सका हो, जहां के लोग हिंदी नहीं समझते हैं और जिस गांव के लोगों को 26 जनवरी के मायने समझाने के लिए ट्रांसलेटर की मदद लेनी पड़े, वहां देश का तिरंगा लहराया है. ये कहानी छत्तीसगढ़ के नक्सलियों के गढ़ कहे जाने वाले सुकमा से आई है. सुकमा जिले के जिस मिनपा गांव में सीआरपीएफ के जवानों ने देश का तिरंगा लहराया वहां के लोग ये पहली बार देख रहे थे. सबसे पहले सीआरपीएफ के जवान इस गांव पहुंचे, गांव वालों को इकट्ठा किया. 26 जनवरी का मतलब समझाने के लिए गांव की ही एक लड़की की मदद ली जो उनकी भाषा में उन्हें गणतंत्र दिवस के बारे में बता सके.


इसके बाद गांव वालों के बीच में ही बैठकर गांव की महिलाओं और बच्चों को उनकी जरूरत का सामान दिया. कुछ घंटों के बाद जब ग्रामीणों को लगा की उन्हें ऐसा करना चाहिए और देश जब गणतंत्र दिवस मना रहा है तो उन्हें भी मनाना चाहिए तो गांव वाले सीआरपीएफ के जवानों के साथ तिरंगा झंडा लहराने के लिए तैयार हो गए. सभी ने तिरंगा झंडा फहराया और जवानों के साथ भारत माता की जय के नारे लगाए.


जहां शहीद हुए थे 17 जवान वहीं लहराया तिरंगा


जिस इलाके में सीआरपीएफ के जवानों ने तिरंगा लहराया वो नक्सलियों का गढ़ कहा जाता है. यहां पहुंचना जान जोखिम में डालना है. पिछले साल इसी जंगल में नक्सलियों और पुलिस के बीच मुठभेड़ में इसी जगह 17 जवानों की शहादत हुई थी. लेकिन इस बार यहां की तस्वीर बिल्कुल अलग थी. सुकमा के नक्सलियों के कोर इलाके मिनपा में कोबरा 206 बटालियन के डिप्टी कमांडेंट रमेश यादव के नेतृत्व में पहली बार यहां के लोगों ने गणतंत्र दिवस का मतलब समझा. इस दौरान एसडीओपी प्रतीक चतुर्वेदी और अनुराग झा भी मौजूद थे.


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