नशे की लत में एक बेटे ने पूरे परिवार को जान से मार दिया.... ये पढ़ने में आपको एक आम सी खबर लग सकती है, लेकिन जब हम इसकी जड़ों में जाते हैं तो बेहद ही गंभीर खबर बन जाती हैं.


दरअसल, छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले का ग्राम पुटका में एक बेटे ने अपना जुर्म उस वक्त कबूला जब वो पड़ोसियों से नौकरी के सिलसिले में बातचीत कर रहा था.


उदित  को नशे की लत थी, और दो हजार रुपये के लिए शराबी बेटे ने शिक्षक पिता, मां, और दादी की हत्या कर दी.  सभी के शवों को घरों में ही जला दिया. 


आरोपी ने तीनों मर्डर केस का राज अनुकंपा नियुक्ति की चर्चा के दौरान खोल दिया. पुलिस को घर से खून के निशान और जली हुई हड्डियां मिली हैं. अभी जांच की फॉरेसिंक रिपोर्ट आना बाकी है.


पुलिस ने आरोपी पर हत्या और सबूत छिपाने का अपराध दर्ज किया है. मामले की जांच जारी है और इस हत्याकांड की पूरी जानकारी जल्द ही सार्वजनिक की जाएगी.


सिंघोड़ा थाना क्षेत्र के ग्राम पुटका में प्रभात भोई, अपनी मां सुलोचना, पत्नी सविता, और बेटे उदित के साथ रहते थे. प्रभात का छोटा बेटा अंकित रायपुर में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है. बड़े बेटे उदित ने 12 मई को पिता, मां और दादी की गुमशुदगी दर्ज कराई थी.


तब तक किसी को उस पर शक नहीं था, लेकिन अनुकंपा की प्रक्रिया पूछने पर गांव वालों को उसपर शक हुआ कि उसके परिवार वाले गायब नहीं हुए हैं. बेटे ने ही सबकी हत्या की है.


गांव वाले ने थाने में सूचना दी. इसके बाद पुलिस ने पूरे घर की तलाशी ली. घर से जली हुई हड्डियां मिली. 


नशे के लिए आधी रात में मांगे थे दो हजार


खबर के मुताबिक उदित ने सात मई की रात सो रहे पिता को उठा कर नशे के लिए दो हजार रुपये मांगे, पिता ने उसे टाल दिया और कहा कि सुबह पैसे ले लेना.


इस पर आरोपी को गुस्सा आ गया और उसने हॉकी स्टिक पिता के सिर पर दे मारी. मौके पर ही पिता की मौत हो गई. इसके बाद उसने अपनी मां और दादी को भी मार दिया. तीनों के शवों को एक साथ रखकर जला दिया. 


पड़ोसियों ने पुलिस को बताया कि उस दिन उदित के घर से शोरगुल की आवाज आई थी. उनके घर अक्सर झगड़े होते थे इसलिए किसी ने ध्यान नहीं दिया. आरोपित कुछ दिन पहले चोरी के मामले में पकड़ा गया था. इस बात को लेकर भी पिता और बेटे में विवाद हुआ था. 


क्या होती है अनुकंपा की नौकरी


अगर किसी सरकारी कर्मचारी की सेवाकाल के दौरान मृत्यु हो जाती है तो उसके किसी एक आश्रित को नौकरी देने का प्रावधान है. ऐसी नियुक्ति का मकसद मृतक कर्मचारी के परिवार को तुरंत सहायता प्रदान करना है. 


नशे की लत बना रही हैवान


ऐसा पहली बार नहीं है जब नशे के लिए कोई हत्या की गई है. इससे पहले दिल्ली के पालम से भी ऐसी घटना सामने आ चुकी है. जहां पर आरोपी केशव को नशे की लत ने हैवान बना दिया, और उसने अपने ही पिता की हत्या कर दी .


यमुनानगर से भी ऐसी खबर आ चुकी है कि 26 साल का युद्धवीर को नशे की लत थी और अपनी लत को पूरा करने के लिए वो हत्याएं करता था. हाल ही में हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में 15 साल के नाबालिग की हत्या ) का मामला सामने आया था.


पुलिस ने दो युवकों को गिरफ्तार किया था. 2022 में हिमाचल प्रदेश के त्रिपुरा से एक खबर आई थी कि नशे के आदि नाबालिग को अपनी मां, बहन और दादा सहित चार लोगों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया.


 दरअसल नशीली दवाओं की लत एक गंभीर बीमारी है, जिसे छोड़ना सबसे बड़ी चुनौती होती है.


ड्रग्स इंसानी दिमाग को पूरी तरह से बदल कर रख देते हैं. जो ड्रग्स न मिलने पर इंसान को बेकाबू कर देता है. नशे की लत किसी इंसान को अपनों का भी दुश्मन बना देता है.  


नशीली दवाओं की लत क्या है?


नशे की लत एक बीमारी है जो शरीर में एक खास तरह की नशीली दवा की मांग करता है. नशे के आदि इंसान को ये पता होते हुए कि इसके गंभीर परिणाम हो रहे हैं वो खुद को नशा करने से रोक नहीं पाता है. बार-बार नशीली दवाओं के इस्तेमाल से मस्तिष्क में कई तरह के बदलाव होते हैं. जिससे इंसान अपनी भावनाओं को कंट्रोल नहीं कर पाता है.


नशे की लत से मर रहे युवा


राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2017-19 से ड्रग ओवरडोज के कारण 2,300 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई, जिसमें 30-45 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों की मौत सबसे ज्यादा है.


आंकड़ों में ये बताया गया कि 2017 में ड्रग ओवरडोज की वजह से कुल 745 मौतें, 2018 में 875 मौतें और 2019 में 704 मौतें दर्ज की गईं. आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान में सबसे ज्यादा 338 मौतें हुईं, इसके बाद कर्नाटक में 239 और उत्तर प्रदेश में 236 मौतें हुईं. 2017-19 में सबसे ज्यादा 784 मौतें 30-45 वर्ष के आयु वर्ग में दर्ज की गईं.


इसी साल 14 साल से कम उम्र के 55 बच्चों की मौत ड्रग ओवरडोज की वजह से हुई. 14-18 वर्ष के आयु वर्ग में सत्तर बच्चों की मृत्यु हो गई. ड्रग ओवरडोज की वजह से 18-30 वर्ष के आयु वर्ग में कुल 624 लोगों की मौत हुई और 45-60 वर्ष के आयु वर्ग में 550 लोगों की मौत हुई.


नशे की लत से छुटकारा दिलाने के लिए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 2021 में 272 सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों के लिए 'नशा मुक्त भारत अभियान' (एनएमबीए) शुरू किया है. हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि एनएमबीए को और मजबूत किया जाएगा. 


पंजाब में नशे की लत से बढ़ रही है मरने वालों की संख्या


साल 2018 के आंकड़ें ये बताते हैं कि नशे की वजह से मरने वालों की तादाद दोगुनी हो गई है. 2018 जून तक 60 लोगों की मौत हुई है और ये आंकड़ा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है. लोग नशे की लत को पूरा करने के लिए दूसरों को भी जान से मारने में परहेज नहीं कर रहे हैं. ये ट्रैंड भी बढ़ता जा रहा है.


पंजाब में ड्रग्स के चलते ड्रग्स की वजह से एक महीने में कम से कम 1 की जान जाती है. आंकड़ों के मुताबिक 2017 में जून तक पंजाब में ड्रग्स की वजह से 60 संदिग्ध मौते हुई हैं. जबकि पिछले दो सालों तक ये आंकड़ा 30 से 40 था.


पंजाब में किए गए नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर के सर्वे के अनुसार, राज्य के 75% से ज्यादा युवा नशीली दवाओं के दुरुपयोग से जूझ रहे हैं. यह भी अनुमान लगाया गया है कि कम से कम 30% जेल कैदियों को नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट के तहत ड्रग्स के अवैध कब्जे के लिए गिरफ्तार किया गया है.


भारत सरकार ने 14 दिसंबर  2022 को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि भारत में 10 से 17 वर्ष की आयु के लगभग 15.8 मिलियन बच्चे पदार्थों के आदि हैं.  नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर के सर्वे में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, 10 चिकित्सा संस्थानों और 15 गैर सरकारी संगठनों शामिल थे, इसमें 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया गया था.  


नशीली दवाओं इस्तेमाल की पीछे कमजोर नीतियां जिम्मेदार


सख्त दवा नियंत्रण कानूनों और पूरे भारत में दवा आपूर्ति नियंत्रण की दिशा में काम करने वाली एजेंसियों के बावजूद नशिली दवाओं का इस तरह से इस्तेमाल परेशान करने वाला है.


स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि "अफीम, हेरोइन जैसे नशिले पौधे की उपज को लेकर राज्य सरकार की कमजोर नीतियों की तरफ ये एक इशारा है. 


कई राज्यों में नशिली दवाओं के सेवन को रोकने के लिए नीतियों की कमी है. सरकार द्वारा संचालित स्कूल आमतौर पर नशीली दवाओं के दुरुपयोग के बारे में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित नहीं करते हैं.


एच. एस. फुल्का भारत स्थित बच्चों के अधिकार आंदोलन बचपन बचाओ आंदोलन के वकील हैं, उन्होंने रॉयटर्स को बताया कि राष्ट्रीय सर्वेक्षण के नतीजों  से जो पता चला है, यह मुद्दा कहीं ज्यादा गंभीर है.


बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे हैं जो नशे के आदि हैं, और इस सर्वेक्षण में उनकी गिनती नहीं की गई है . स्कूलों और उसके आसपास के क्षेत्रों में नशीली दवाओं की उपलब्धता एक समस्या है और आखिरकार वे नशेड़ी बन जाते हैं.'