Chandrayaan-2: जापान का 'स्मार्ट लैंडर फॉर इंवेस्टिगेशन मून' (SLIM) लैंडर चांद की सतह पर 20 जनवरी को लैंड हुआ. जापान की स्पेस एजेंसी 'जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी' (JAXA) ने इसकी जानकारी दी. एजेंसी ने ये भी बताया कि लैंडिंग के लिए जो जगह तय की गई थी, वहां से लगभग 55 मीटर पूर्व में लैंडर लैंड हुआ. इस तरह इसने 100 मीटर की सटीकता के साथ मिशन की मुख्य लैंडिंग को अंजाम दिया. 


हालांकि, ये बात बहुत कम लोगों को मालूम है कि जापान के इस मून मिशन में भारत का भी योगदान रहा है. भारत के एक मून मिशन के जरिए ही जापानी लैंडर चांद की सतह को छू पाया है. दरअसल, SLIM लैंडर को चांद तक पहुंचने में भारत के दूसरे मून मिशन, जिसे चंद्रयान-2 के तौर पर जाना जाता है, ने मदद की है. टेक्निकली इस मिशन को फेल माना जाता है, लेकिन इसका ऑर्बिटर आज भी भारत और अन्य देशों के लैंडर को मदद करता आ रहा है. 


जापान ने बताया कैसे भारत ने की मदद? 


दरअसल, जापानी स्पेस एजेंसी JAXA की तरफ से एक बयान जारी किया गया. इसमें कहा गया, 'चांद की टोपोग्राफी को भारतीय स्पेसक्राफ्ट चंद्रयान-2 ने रिकॉर्ड किया है. साथ ही SLIM लैंडर के नेविगेशन कैमरा के जरिए तस्वीरें हासिल की गई हैं. इन दोनों की मदद से 50 मीटर की ऊंचाई पर H2 (दूसरी उड़ान) के दौरान तस्वीर तैयार की गई.' इन तस्वीरों के जरिए ही लैंडिंग को अंजाम दिया गया. इस तरह चांद पर भी भारत दूसरे देशों की मदद कर रहा है.


पांच साल से डेटा भेजा रहा चंद्रयान-2


भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो के वैज्ञानिकों का भी कहना है कि भले ही चंद्रयान-2 अपने मुख्य मिशन यानी चांद पर लैंडिंग को 2019 में अंजाम नहीं दे पाया. मगर इसका ऑर्बिटर लगभग पांच सालों से चंद्रमा से महत्वपूर्ण डेटा भेजा रहा है. इसने पिछले साल अपने उत्तराधिकारी चंद्रयान-3 की सफलता को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. सात सितंबर 2019 को चंद्रयान-2 का लैंडर चांद पर क्रैश हो गया था. इस मिशन को 2 सितंबर, 2019 को लॉन्च किया गया था.


इसरो चीफ एस सोमनाथ ने भी कहा, 'हमने चंद्रयान-3 की लैंडिंग की योजना बनाने के लिए चंद्रयान-2 ऑर्बिटर से मिली तस्वीरों का विश्लेषण किया. इससे हमें वही गलतियां नहीं दोहराने में मदद मिली जो हमने पहले की थीं. यह हमें भविष्य के मून मिशन की योजना बनाने में भी मदद करता रहेगा.'


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