CDS Bipin Rawat Chopper Crash: सीडीएस जनरल बिपिन रावत और पत्नी सहित 13 सैनिकों की मौत के बाद लगातार सवाल उठ रहे हैं कि आखिर वायुसेना का 'मी-17वी5' हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ तो हुआ कैसे. वायुसेना ने दुर्घटना की जांच के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का गठन कर दिया है जिसके बाद दुर्घटना के कारणों का साफ साफ पता चल पायेगा. लेकिन विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो एक बात तो तय है कि जांच रिपोर्ट आने के बाद वीआईपी फ्लाईंग के प्रोटोकॉल में जरूर बदलाव आ सकता है.


सूत्रों की मानें तो ये बदलाव क्या होंगे, ये तो कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के बाद ही पता चल पायेगा, लेकिन एसओपी यानि स्टैंडर्ड ओपरेटिंग प्रोसजिर में बदलाव जरूर होंगे.


वायुसेना की ट्रेनिंग कमान के कमांडिंग इन चीफ, एयर मार्शल मानवेंद्र सिंह के नेतृत्व में रक्षा मंत्रालय ने एक ट्राई-सर्विस इंक्वायरी के आदेश दिए हैं. खुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरूवार को इस बाबत संसद में बयान दिया था. खुद रक्षा मंत्री ने संसद में बताया था कि जांच कमेटी ने अपना काम शुरू कर दिया है. इसके अलावा वायुसेना ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है कि क्रैश हुए हेलिकॉप्टर का एफडीआर यानि फ्लाईट डेटा रिकॉर्डर यानि ब्लैक-बॉक्स भी घटनास्थल से बरामद कर लिया गया है. ब्लैक बॉक्स से पायलट के संपर्क करने और बातचीत करने की रिकॉर्डिंग मिल सकती है. हालांकि, ये भी बात सामने आई है कि क्रैश होने से पहले पायलट ने एटीसी को कोई डिस्ट्रेस कॉल नहीं की थी.


ये जांच कमेटी वायुसेना और थलसेना के संबंधित अधिकारियों के बयान तो रिकॉर्ड कर ही रही है साथ ही इन स्थानीयों लोगों से भी बातचीत करेगी जो इस दुर्घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे. उस मोबाइल फोन की जांच भी करेगी जिससे क्रैश से तुरंत पहले का वीडियो शूट किया गया था.


आपको बता दें कि कोई भी हेलिकॉप्टर या फिर विमान अगर किसी वीआईपी को लेकर उड़ान भरता है तो उसका एक अलग प्रोटोकॉल होता है. इस प्रोटोकॉल के तहत उस हेलिकॉप्टर या फिर विमान को कई बार जांचा-परखा जाता है कि उसमें कोई कमी या तकनीकी खामी तो नहीं है. उस हेलिकॉप्टर को एयरबेस पर मौजूद सबसे अनुभवी पायलट को ही उड़ाने की अनुमति होती है. पायलट और को-पायलट के सबसे ज्यादा फ्लाईंग-आवर्स होने चाहिए. यहां तक की अनुभवी क्रू-मेम्बर्स को ही उड़ान का हिस्सा बनाया जाता है.


देश में वायुसेना मामलों के एक्सपर्ट्स की मानें तो वीआईपी प्रोटोकॉल के तहत अगर किसी ऐसे रनवे या फिर हैलिपैड पर वीआईपी को लैंड करना होता है जो काफी समय से इस्तेमाल नहीं हुआ है तो उसपर ट्रायल-रन भी किया जाता है. लेकिन वेलिंगटन हैलिपैड पर लंबे समय से लैंडिंग ऑपरेशन हो रहे हैं. ऐसे में जनरल बिपिन रावत की उड़ान से पहले ट्रायल-फ्लाईंग की जरूरत नहीं रही होगी.


उड़ान के समय कोई भी पायलट भूखा नहीं होना चाहिए. क्योंकि भूखे पेट रहने से ब्लड-शुगर कम हो जाता है और हमारा शरीर शिथिल पड़ सकता है और तेजी से रिएक्ट नहीं कर पाता है.


जानकारों की मानें तो पहाड़ी क्षेत्रों में उड़ान के वक्त अमूमन पायलट मैन्युल फ्लाईंग ही ज्यादा करते हैं. क्योंकि एक तो हेलिकॉप्टर काफी कम उंचाई पर उड़ान भरता है और दूसरा इसलिए की पहाड़ों के बीच उड़ान काफी मुश्किल होती है. जबकि फिक्स-विंग एयरक्राफ्ट यानि मालवाहक विमानों की तरह इंस्ट्रूमेंट फ्लाईंग नहीं करते हैं.


गौरतलब है कि भारत में सीडीएस के हेलिकॉप्टर की दुर्घटना से पहले भी 2-3 बड़ी हवाई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. 1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोराजी देसाई का हेलिकॉप्टर असम के जोरहाट में क्रैश हो गया था.  इस दुर्घटना में हेलिकॉप्टर में सवार पांच क्रू-सदस्यों की मौत हो गई थी, जबकि मोराजी देसाई बच गए थे. इससे पहले 1963 में चेतक हेलिकॉप्टर के क्रैश में दो लेफ्टिनेंट जनरल रैंक, एक मेजर जनरल और एक एयर वाइस मार्शल रैंक के अधिकारियों की मौत हो गई थी. इस दुर्घटना के बाद से वायुसेना ने प्रोटोकॉल तैयार किया था कि दो लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी एक हेलिकॉप्टर में सवार नहीं होंगे. हालांकि, इसी साल गुजरात में इस प्रोटोकॉल को फॉलो नहीं किया गया था और दो लेफ्टिनेंट जनरल को लेकर उड़ान भर रहा हेलिकॉप्टर क्रैश हो गया था. गनीमत थी कि दोनों ही वरिष्ठ सैन्य अधिकारी बच गए थे.


हाल के सालों में थलसेना की उत्तरी कमान के तत्कालीन कमांडर,, लेफ्टिनेंट जनरल रणवीर सिंह का हेलिकॉप्टर भी पूंछ में दुर्र्घटनाग्रस्त हो गया था. लेकिन वे भी इस दुर्घटना में बाल-बाल बच गए थे.


सूत्रों की मानें तो किसी भी दुर्घटना को समझने के लिए 'स्विस-चीस मॉडल' समझना बेहद जरूरी है. क्योंकि किसी भी सिस्टम में कई बार लूपहॉल होते हैं लेकिन उनपर चादर पड़ी होती है जो दिख नहीं पाती. संभवता, सीडीएस के हेलिकॉप्टर क्रैश के कारणों का खुलासा एयर मार्शल मानवेंद्र सिंह की जांच रिपोर्ट से हो सकता है.


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