Unifrom Civil Code: लोकसभा चुनाव से पहले यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर जमकर बहस चल रही है. उत्तराखंड सरकार ने तो इसका ड्राफ्ट भी तैयार कर लिया है और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जल्द ही यूसीसी लागू करने की बात भी कर चुके हैं. क्या कोई राज्य यूसीसी लागू कर सकता है और इस पर लॉ क्या कहता है? ऐसे ही सवालों पर कानून  के जानकार प्रोफेसर फैजान मुस्तफा ने अहम जानकारी दी है.


सत्य हिंदी से बात करते हुए प्रोफेसर फैजान ने संविधान का जिक्र करते हुए कहा कि राज्यों को ये अधिकार है कि वह यूसीसी लागू कर सकते हैं, लेकिन वह उसकी सीमा तक ही लागू होगा. उन्होंने इस बात का भी समर्थन किया कि राज्यों को ऐसा करना चाहिए ताकि अगर इसके अच्छे परिणाम सामने आते हैं तो इसको देश में भी लागू किया जा सकता है.


फैजान मुस्तफा ने कहा, विधानसभाएं और केंद्र को अलग-अलग कानून बनाने का अधिकार
उन्होंने कहा कि किसी जुर्म की क्या सजा होगी वो अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है. उन्होंने कहा, "फेडरलिज्म में जहां पावर का बंटवारा है, उसमें राज्यों की विधानसभाओं और केंद्र को अलग-अलग कानून बनाने का अधिकार है तो अलग कानून भी हो सकते हैं.  मैंने क्यों उत्तराखंड के फैसले का स्वागत किया क्योंकि कॉन्करेंट लिस्ट की जो एंट्री नंबर 5 है, उसमें पर्सनल लॉ दिया है, यानी शादी, तलाक से संबंधित कानून राज्य सरकारें भी बना सकती हैं और केंद्र की संसद भी बना सकती है तो ये बात सही है कि उत्तराखंड भी यूनिफॉर्म सिविल कोड बना सकता है. मसला ये है कि अगर उत्तराखंड ये बनाएगा तो क्या वह यूनिफॉर्म सिविल कोड  कहलाएगा?" 


क्या कहता है कानून?
उन्होंने आगे कहा, "अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य इस बात की कोशिश करेगा कि वह पूरे देश के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाए. वहीं, अनुच्छेद 12 और अनुच्छेद 37 में ये है कि लोकल अथॉरिटी भी राज्य बना सकती है, तो आप बताइए कि क्या देहरादून म्यूनिसिपिलिटी पूरे देश के लिए यूसीसी बनाएगा?"


UCC बनाने के राज्यों का अधिकार, लेकिन ये है कानून
फैजान मुस्तफा ने कहा कि इसके लिए अलग कानून है कि असेंबली को अपने राज्य की सीमाओं के लिए कानून बनाने का अधिकार है. उन्होंने कहा, "उत्तराखंड जो बना रहा है वह मैरिज, डिवोर्स और सक्सेशन पर एक कोड है, लेकिन आप उसको यूनिफॉर्म सिविल कोड अनुच्छेद 44 वाला नहीं कह सकते हैं. हालांकि, कॉन्करेंट लिस्ट की जो 5वीं एंट्री है, जिसमें पर्सनल लॉ है तो राज्य को यह अधिकार है कि वह अपने राज्य में एक मैरिज, डिवोर्स और सक्सेशन से संबंधित कानून बनाए. मेरे हिसाब से ये अच्छा आइडिया है कि पहले कुछ राज्यों में यूनिफॉर्म सिविल कोड बन जाए और फिर देखें कि वह कैसा काम करता है, अगर अच्छा काम करता है तो इसको देश के लिए भी बना दो."


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