केंद्रीय बजट 2023-24 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा योजना के लिए केवल 60,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए. इसके बाद विपक्ष ने केन्द्र सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार बजट आंवटन में कटौती करके ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को खत्म कर रही है. वहीं केन्द्र सरकार का कहना है कि बाद में ग्रामीण नौकरियों की मांग के आधार पर इसे संसोधित किया जाएगा. 


वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से पेश किए गए बजट 2023 में मनरेगा आवंटन में 25% की कटौती देखी गई. साल के अंत में , ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा योजना में आई कमी को दूर करने के लिए अतिरिक्त 25,000 करोड़ रुपये की मांग की थी. वित्त मंत्रालय ने केवल 16,000 करोड़ रुपये को मंजूरी दी, जिससे इस वित्तीय वर्ष के लिए संशोधित बजट 89,000 करोड़ रुपये हो गया. 


देश भर में मजदूर किसान मनरेगा के तहत काम करते आए हैं लेकिन इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा योजना का लाभ उठाने वाले परिवार के औसत दिन पांच साल में सबसे निचले स्तर पर है. 


इस योजना से जुड़ी कुछ जानकारियां 


साल 2006-07 में इस योजना के शुरू होने के बाद साल 2020 -21 में मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों का आंकड़ा  11 करोड़ पार कर गया था. यानी 2020 -21 में ऐसा पहला मौका आया जब मनरेगा मजदूरों की संख्या इतनी ज्यादा बढ़ी. वहीं साल 2019-20 में लगभग 7.88 करोड़ मजदूरों ने मनरेगा के तहत काम किया. मतलब साल 2020 -21 में साल 2019-20 के मुकाबले लगभग 41.75 फीसदी ज्यादा मजदूरों ने काम किया. 


दो राज्यों राजस्थान और मध्य प्रदेश जहां पर विधानसभा चुनाव होने हैं वहां पर साल 2018-19 में क्रमश: 17, 43,381 और 15,14,306  मजदूरों ने मनरेगा योजना के तहत काम किया. वहीं साल 2019- 20 में क्रमश: 15, 14, 306 और 16,93, 973 लोगों ने मनरेगा योजना के तहत काम किया.


त्रिपुरा में साल 2018-19 में 30, 15,57 लोगों ने मनरेगा के तहत काम किया वहीं साल 2019-20 में  35,53, 35 लोगों ने मनरेगा योजना के तहत काम किया. अलग अलग राज्यों के आंकड़े भी इसी तरह ही हैं, यानी आंकड़े बढ़े हैं.


सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान पूरे देश में 11 करोड़ से ज्यादा लोगों ने मनरेगा के तहत काम किया.  


अब उन राज्यों का डेटा, जहां इस साल चुनाव है



  • मेघालय में साल 2017 से 18 के बीच मनरेगा पर निर्भर रहने वाले लोगों की संख्या 177009 थी. साल 2018 से 19 के बीच ये आंकड़ा बढ़ कर  175100  पहुंच गया . वहीं साल 2019 से 20 के बीच ये आंकड़ा बढ़ कर 205120 तक पहुंच गया. 

  • मिजोरम में ये आंकड़ा साल 2017 से 18 के बीच 186204 था. साल 2018 से 19 के बीच मनरेगा पर निर्भर रहने वाले लोगों की संख्या 123048  तक सीमित हुई . फिर साल 2019 से 20 में ये आंकड़ा बढ़ की 194602 तक पहुंच गया. 

  • नागालैंड में साल 2017 से 18 के बीच मनरेगा पर निर्भर रहने वाले लोगों की संख्या 19574  थी. साल 2018 से 19 के बीच ये आंकड़ा बढ़ा और 65066 तक पहुंच गया. साल 2019 से 20 के बीच ये आंकड़ा 42163 तक हो गया. 

  • त्रिपुरा में साल 2017 से 18 के बीच मनरेगा पर निर्भर रहने वाले लोगों की संख्या 446308  थी. साल 2018 से 19 के बीच ये आंकड़ा घट कर 301557 हो गया . साल 2019 से 20 के बीच ये आंकड़ा पिर बढ़ा और 355335 हो गया . 

  • छत्तीसगढ़ की बात करें तो साल 2017- 18 के बीच मनरेगा पर निर्भर रहने वाले लोगों की संख्या 345446 थी. साल 2018 से 19 के बीच ये निर्भरता बढ़ कर 420244 हो गयी. 

  • तेलंगाना में साल 2017 से 18 के बीच मनरेगा पर  निर्भर रहने वाले लोगों की संख्या 574564 थी. साल 2018 से 19 के बीच ये नंबर थोड़े घटे और 516470 के करीब पहुंच गए. साल 2019 से 20 के बीच ये आंकड़े और घटे और 470312 तक सीमित हो गए. 


ऐसे में सवाल ये है कि जब मनरेगा योजना के तहत काम करने वाले मजदूरों की संख्या बढ़ी है तो सरकार ने बजट में मनरेगा के लिए कम राशि क्यों आंवटित की है . 


कोरोना काल से बढ़ी है मनरेगा की मांग 


डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा ने एक रिपोर्ट में बताया कि कोरोना वायरस महामारी के चरम पर होने के दौरान इस योजना के तहत लगातार इसकी मांग बढ़ी. मांग को देखते हुए सरकार ने 111,500 करोड़ रुपये खर्च किए थे. ये पैसे मनरेगा के नहीं थे.  रिचर्ड महापात्रा ने बताया कि इस तरह से राशि खर्च करने पर मनरेगा बजटीय आवंटन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है. 


नरेगा संघर्ष मोर्चा के सदस्य देबमाल्य नंदी ने कहा कि महामारी ने ये साबित किया कि देश में रोजगार के लिए मनरेगा पर भारी निर्भरता है . इसलिए सरकार को इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए बहुत सारी कोशिशें करने की जरूरत है.


देबमाल्य नंदी ने ये भी कहा कि भारत सरकार ने बजट आवंटन में कमी करके वर्तमान ग्रामीण रोजगार संकट को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है.  जबकि ग्रामीणों की जरूरतों को मद्देनजर रखते हुए मनरेगा में इंवस्टमेंट को बढ़ाने की जरूरत थी. 


रोजगार के दायरे को सीमित करेगा सरकार का फैसला
नरेगा संघर्ष मोर्चा के सदस्य देबमाल्य नंदी ने ये कहा कि सरकार की तरफ से जिस तरह से मनरेगा में कम पैसे आंवटित किए गए हैं उससे ये साफ होता है कि यह रोजगार के दायरे को सीमित करेगा. नतिजतन आने वाले साल में मजदूरों के भूगतान में भी देरी होगी.  


पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी और नरेगा संघर्ष मोर्चा के तहत काम करने वाले कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों के एक संघ का कहना है कि चालू वर्ष इस योजना के लिए 2.72 लाख करोड़ रुपये के आवंटन की करने की जरूरत है.


पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी में काम करने वाले कर्मचारियों का ये भी कहना है कि कि मनरेगा से जुड़े सभी परिवारों को 40 दिन के काम का पैसा देने के लिए 1.24 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी. जो हालिया आंवटिंत किए गए रकम से दोगुने से भी ज्यादा है. 


नरेगा संघर्ष मोर्चा के तहत काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने ये कहा कि इस तरह के कम आवंटन का मकसद मनरेगा योजना को पूरी तरह से खत्म करने जैसा मालूम होता है. मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक निखिल डे का कहना है कि यह आवंटन न्यूनतम सीमा को भी पूरा नहीं करता है. 


बदतर है मनरेगा योजना में दी जाने वाली सुविधाएं


जमीनी स्तर पर अगर राज्य सरकारों को केंद्र सरकार की तरफ से मनरेगा योजना के लिए राशी नहीं मिलेगी राज्यों में मनरेगा मजदूरों का काम बाधित होगा.


ताजा रिपोर्ट ये भी बताती है कि केन्द्र सरकार ने राज्य सरकारों को अपनी तरफ से दी जाने वाली राशी नहीं पहुंचाई है. इस राशि को मदर मजूंरी भी कहा जाता है. मदर मंजूरी ना मिलने से पीक सीजन में मजदूरों के काम पर उल्टा असर पड़ा है. 


सुप्रीम कोर्ट के आदेश और केंद्रीय वित्त मंत्रालय की पहल और जीओ ( एक तरह का सरकारी आदेश) के बावजूद एमआईएस में अभी तक मजदूरों की मजदूरी के पैसे देर से देने पर कोई प्रावधान नहीं किया बनाया है. अब भी मनरेगा मजदूरों के भुगतान में काफी देरी की जाती है. 


इन सब बातों से ये साफ होता है कि मनरेगा योजना की कमर पहले से ही टूटी हुई है. अब जब सरकार ने बजट में कम पैसों का आंवटन किया इससे मजदूरों की परेशानियां बढ़ेंगी.