Reporting India Review: पत्रकारिता जल्दबाजी में लिखा इतिहास होता है. आज का कवरेज कल के इतिहास में बदल जाता है. इस दौर के वरिष्ठ टीवी पत्रकार प्रेम प्रकाश की किताब 'रिपोर्टिंग इंडिया' इस बात पर मजबूती से मुहर लगाती है. आजादी से लेकर आज तक की घटनाओं पर न केवल नजर रखना बल्कि उनमें से अधिकतर घटनाओं के दौरान वहां मौजूद रहकर उनका कवरेज करना पत्रकारिता में ऐसी मिसाल है जो मिलना मुश्किल है.


न्यूज एजेंसी एएनआई के संस्थापक प्रेम प्रकाश ने अपनी किताब रिपोर्टिंग इंडिया में उन घटनाओं का रोचक ब्यौरा दिया है जो आज इतिहास में दर्ज हो गयी हैं. फिर चाहे वो चीन और पाकिस्तान से युद्ध हो, ताशकंद में शास्त्री जी का निधन हो, बांग्लादेश में पाकिस्तान की सेना का समर्पण हो, आपातकाल के किस्से हों, ऑपरेशन ब्लू स्टार हो, 1984 के दिल्ली में सिखों के खिलाफ हुये दंगे हों, राजीव गांधी पर हुआ हमला हो या फिर अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का एक वोट से गिरना या फिर वीपी सिंह का अचानक प्रधानमंत्री चुना जाना.


इन सारी घटनाओं के दौरान प्रेम प्रकाश अपनी कैमरा टीम के साथ मौके पर थे. इन सारी घटनाओं के वो सारे फुटेज जो प्रेम प्रकाश जी ने लिये हम एक साथ तो नहीं देख सकते मगर उन घटनाओं की यादों को इस किताब में बहुत सरल भाषा में अच्छे से पढ़कर उनसे रूबरू हो सकते हैं.


पाकिस्तान से विस्थापित परिवार का दिल्ली में आकर बसना, देश में आजादी का सूरज देखना और फिर 22 साल की उम्र से कैमरा लेकर पत्रकारिता करने का जो सफर... पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से शुरू हुआ तो वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक चल रहा है. ये किसी सपने के जैसा है मगर अब वयोवृद्ध 90 की उम्र वाले प्रेम प्रकाश को ये सब हासिल हुआ है तो उसके पीछे उनके काम को लेकर लगन, पत्रकारिता के लिए जोखिम उठाने से पीछे नहीं हटने की हिम्मत के साथ ही उनको मिला बेहतर स्वास्थ्य भी है. ये उनको आज भी सक्रिय बनाये हुये है.


इस किताब में तो उन्होंने अपने संस्मरण रोचक अंदाज में लिखे ही हैं लेकिन जब वो इन किस्सों को सुनाते हैं तो किसी भी पत्रकार को उनसे रश्क हो सकता है. कितना इतिहास इस बुजुर्ग पत्रकार ने आमने सामने से देखा है.


ये किताब आजादी के बाद से अब तक की खास घटनाओं का आंखों देखा दस्तावेज भी है. देश-विदेश की छोटी-बड़ी घटनाओं को कैमरे से कवर करना, उनकी रिपोर्ट बनाना और उसे प्रसारण करने वाले दफ्तर तक भेजना भी आसान नहीं रहा. मगर इस किताब में आप समझ जायेंगे कि फुटेज या फोटो को भेजने के लिये कैसे पुराने दिनों से लेकर आज की तकनीक बदली और प्रेम प्रकाश जी ने अपने पेशेवर जिंदगी में कितना बदलाव न केवल देखा बल्कि उससे सीखा भी.


पत्रकार का काम आसान नहीं होता और वो भी कैमरामैन का जिसका कैमरा सबको दिखता और कुछ को आंखों में खटकता भी है. अफगान युद्ध के दौरान प्रेम जी की टीम को गिरफ्तार कर नजीबुल्लाह के पास ले जाना, आपातकाल में उनको इनकम टैक्स छापे की चेतावनी देना और कुछ दिनों के लिये देश से बाहर भी रहना कोई आसान जिंदगी नहीं है. मगर प्रेम प्रकाश जी ने इस किताब के मार्फत लोगों को बताया है कि पत्रकारिता जितनी आकर्षक होती है उतनी ही जानलेवा भी हो सकती है.


इस पूरी किताब को पढ़ना आजादी के बाद से आज तक के इतिहास को एक सक्रिय कैमरामेन पत्रकार की नजर से देखना भी है. देश से जुड़ी तकरीबन सभी बड़ी घटनाओं के मौकों पर प्रेम प्रकाश अपनी टीम जिसमें उनके साथी सुरेंद्र कपूर, के साथ रहे हैं. फिर चाहे वो राजनीतिक बदलाव हो, सत्ता परिवर्तन हो या युद्ध हो ऑपरेशन ब्लू स्टार हो या फिर आतंकवादियों की रिहाई हो. अनेक भुला दी गयी घटनाएं ये किताब पढ़कर फिर से जिंदा हो जायेंगी.


ये किताब देश में फोटोग्राफी और टीवी मीडिया की शुरुआत से लेकर उनमें हुआ विस्तार को भी बताती है. एएनआई आने से पहले विदेशी समाचार एजेंसियां कैसे किस माध्यम से फुटेज और फोटो बुलाती और उसका प्रसारण पूरी दुनिया में करती थीं. दरअसल, ये किताब आजादी के बाद से बदलते इंडिया का आइना है जिसका नाम लेखक ने रिपोर्टिंग इंडिया दिया है. पत्रकारिता के अलावा तत्कालीन राजनीतिक घटनाओं पर नजर रखने वालों को ये किताब बहुत पसंद आयेगी.


किताब- रिपोर्टिंग इंडिया


लेखक- प्रेम प्रकाश


प्रकाशक- प्रभात प्रकाशन


कीमत- पांच सौ रूपये