Book Review: क्या आप जानते हैं कि 1857 में रानी लक्ष्मीबाई ने भोपाल की नबाव सिकंदर बेगम को अंग्रेजों की तरफदारी करने पर अपनी तलवार के दम पर उनको सबक सिखाने की धमकी दी थीं. रानी की धमकी पर नवाब सिकंदर बेगम ने कहा था कि जब तुम भोपाल आओगी तो मेरी बंदूकें भी तुम्हारे स्वागत को तैयार रहेंगी. क्या आप जानते हैं कि भोपाल रियासत की सेनाओं ने अंग्रेजों की सेनाओं की तरफ से दो विश्व युद्व लडे थे और अपनी बहादुरी और अच्छे व्यवहार का सिक्का दुनिया के देशों में जमाया था. क्या आप जानते हैं कि भोपाल रियासत की एयरफोर्स थी जिसके दस हवाई जहाज लंदन से ही उडते रहे और कभी भोपाल नहीं आ पाए. इस फोर्स को भोपाल फ्लाइट कहा जाता था. क्या आप जानते हैं कि भोपाल रियासत की आर्मी के जवान बाद में पाकिस्तान चले गये और कश्मीर पर पाकिस्तान की तरफ से हुये पहले कबायली हमलों में उनको शामिल किया गया.


भोपाल के इतिहास से जुडे ऐसे ढेर सारे पहलू आपको 'निजामी भोपाल, मिलिट्री आफ भोपाल स्टेट ए हिस्टोरिकल रिव्यू' में पढने को मिल जाएंगे. ये किताब सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल मिलन नायडू ने लिखी है. चूंकि ये किताब रिटायर्ड फौजी ने लिखी है तो इसमें भोपाल रियासत की सेना की बातें तो हैं ही भोपाल की गोंड रानी कमलापति से लेकर पहले शासक दोस्त मोहम्मद खान और फिर चार बेगम शासकों से होकर आज तक की बातें बेहद प्रमाणिक तरीके से लिखी गई हैं.


किताब पर किया है पांच साल काम- मिलन नायडू


लेखक मिलन नायडू बताते हैं कि इस किताब पर पूरे पांच साल काम किया। किताब के लिये जो दस्तावेज चाहिये थे वो भोपाल से लेकर इस्लामाबाद और लंदन तक के संग्रहालयों में बिखरे हुये थे उनको इकट्ठा किया गया और अधिकतर जानकारियां उर्दू और फारसी में लिखी हुयी थी तो उनको समझना और उनका अनुवाद आसान ना था. मगर मिलन नायडू ने ये काम किया और भोपाल रियासत की सेनाओं पर ऐसी किताब लिखी जो पहले किसी ने नहीं लिखी.




आमतौर पर भोपाल रियासत की पहचान अपने महिला शासकों या महिला बेगमों की वजह से रही है जिन्होंने इतने लंबे समय तक राज किया जिसकी दुनिया में मिसाल नहीं है. सत्रह सौ से लेकर 1960 तक के दौर में भोपाल में तेरह शासक या नवाब रहे जिनमें चार बेगम रहीं. जिनमें नवाब सिकंदर बेगम का नाम सबसे उंचा रहा. सिकंदर बेगम के वक्त में उनका जोर प्रशासन और सेना में सुधार पर ज्यादा रहा इसलिये उनकी नातिन नवाब सुल्तान जहां बेगम ने लिखा था, भारत के इतिहास में जो स्थान अकबर का है वही भोपाल के इतिहास में सिकंदर बेगम का है. मिलन नायडू इतिहास के पन्नों को खंगालकर बताते हैं कि भोपाल की आर्मी की पहली बड़ी परीक्षा 1857 के गदर के दौरान हुई, जब नवाब सिकंदर बेगम ने भोपाल रियासत की हिफाजत के लिये सिहोर और होशंगाबाद में रहने वाले किसी भी अंग्रेज सैनिक अफसर और उनके परिवारों को कुछ भी नहीं होने दिया. जबकि अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए भोपाल की गलियों में भी पोस्टर लगा दिए गए थे. तात्या टोपे और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के शुभचिंतक भोपाल की सेना से लेकर मस्जिद के मौलवी भी थे मगर सिकंदर जहां ने अपनी अंग्रेज भक्ति में कमी नहीं आने दी और इसी के बाद अंग्रेज सरकार की नजर में भोपाल रियासत की इज्जत बढ़ गई.


भोपाल रियासत की बटालियन को कहा जाता था नौवीं भोपाल इंफेंट्री 


मिलन नायडू लिखते हैं कि भोपाल रियासत की बटालियन को नौवीं भोपाल इंफेंट्री कहा जाता था और नवाब नसरूल्ला खान इसके कर्नल थे. जब इस बटालियन को प्रथम विश्व युद्व में भेजा गया तो वो भी अपने जवानों के साथ जाना चाहते थे मगर उनकी तबीयत बिगड़ी और युद्व में शामिल ना हो सके. फिर भी इस सेना ने भोपाल से हजारों किलोमीटर दूर का सफर तय किया और मिस्र, फ्रांस, अल्जीरिया, बगदाद, तुर्की में जाकर युद्ध किया. उन्होंने इन युद्धों में अदम्य साहस और बहादुरी दिखाई और मुशाहिदा की पहाड़ी पर कब्जा कर लिया. उस जगह पर कुर्बानी देने वाले उन शहीद सैनिकों की याद में उसे भोपाल हिल ही कहा जाता है. 1914 से 1919 तक बहादुरी दिखाने के बाद लौटी भोपाल आर्मी के जवानों की याद में सिपाहियों के गांव में शिलालेख लगाए गए. भोपाल में ऐसा शिलालेख हमीदिया अस्पताल परिसर के लाल दरवाजा की दीवार पर लगा है जिसमें लिखा है कि भोपाल रियासत के 994 सैनिक द ग्रेट वार 1914 से 1919 में शामिल हुए और 36 ने अपनी जान दी. इस शिलालेख को धार्मिक पहचान मानकर कुछ साल पहले विवाद हो गया था.


दूसरे विश्वयुद्ध में भी भोपाल रियासत ने लिया हिस्सा 


दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान भी भोपाल रियासत ने स्वयं आगे आकर अंग्रेजों की मदद करनी चाही. नवाब हमीदुल्लाह खान ने ना केवल भोपाल की सेना को मिस्र, सूडान, साइप्रस और लेबनान भेजा बल्कि कई जगहों पर जाकर अपनी सेना का हौसला भी बढ़ाया.


किताब में भोपाल की सेना की लड़ाईयों का बडा विस्तृत ब्यौरा है. सेना के पहनावे उनके निशान और उनको मिलने वाले इनामों का भी विस्तार से जिक्र है. सैनिकों के नाम और उनके परिवार वालों को भी ना केवल लेखक ने तलाशा बल्कि उनके फोटोग्राफ भी इकटठे किए. हैरानी होती है कि इतना ज्यादा ब्यौरा उन्होंने कहां से इकट्ठा किया होगा. दोनों विश्व युद्धों से लेकर आज तक भोपाल सेना से जुडे लोगों की पसंदीदा जगह है. भोपाल में आज भी सेना के कुछ बड़े दफ्तर और स्टेशन हैं जिनको देखकर पुरानी विरासत भी याद की जा सकती है.


किताब में झलकता है लेखक का भोपाल से प्यार 


"मैं भोपाल से बेहद प्यार करता हूं इसलिये ये किताब लिखकर अपने को पक्का भोपाली मान सकता हूं" इस बेहद श्रमसाध्य किताब को लिखने के बाद लेखक की ये पंक्तियां बतातीं हैं कि कितने मन से ये किताब लिखी गई है. मुझे हमेशा से ये कमी खलती है कि भोपाल के इतिहास पर दूसरे ऐतिहासिक शहरों के मुकाबले कम ही लिखा गया है. मगर निजामी भोपाल ने इस कमी को कुछ हद तक दूर किया है.


इस किताब का नाम निजामी भोपाल है. इसके लेखक मिलन नायडू हैं. ये किताब विज बुक इंडिया, नई दिल्ली के द्वारा प्रकाशित की गई है. इसको अंग्रेजी भाषा में छापा गया है और इसकी कीमत 1550 रुपये है. 


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