एक मशहूर कथन है-' जल्दबाजी में लिखा गया साहित्य पत्रकारिता है और आराम से की गई पत्रकारिता ही साहित्य है', पत्रकारिता और साहित्य मुख्तलिफ होते हुए भी एक जैसी है. एक तथ्यों पर आधारित है तो दूसरी सत्य और कल्पनाओं का मिश्रण. यही कारण है कि जब कोई पत्रकार कोई साहित्य की किताब लिखता है तो उसपर चर्चा होना लाजमी है. इन दिनों जिस किताब की चर्चा हो रही है उसका उनवान है- 'कांसे का सूरज सोने का चांद'. ये एक कहानी संग्रह है जिसे नसीम नक़वी ने लिखा है. नसीम पत्रकारिता जगत में एक जाना माना नाम हैं. वो लगभग तीन दशक से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं. 'कांसे का सूरज सोने का चांद' नसीम नक़वी की पहली कहानी संग्रह है.


इस किताब की बात करें तो कुल 15 कहानियां इसमें हैं. इन 15 कहानियों में अलग-अलग इमोशन हैं. कुछ लेखक के निजी भावनाएं तो कुछ काल्पनिक मालूम होते हैं. पहली कहानी 'गवार' को ही ले लीजिए. इसमें एक लाइन है- बेरोजगारी के दौर की दोस्ती बड़ी मजबूत होती है...इक़बाल और लेखक की दोस्ती भी अनूठी है. इक़बाल गांव से आया होता है और शहर की चकाचौंध उसे इतनी आकर्षित करती है कि वो शहर में शहरियों की तरह रहने लगता है. गांव और गंवार शब्द उसे ततैया की तरह काटने को दौड़ते हैं. यह कहानी दोस्ती के साथ ही एक मनोवैज्ञानिक पक्ष पर भी नजर डालता है. कैसे हम शहरों में आकर  एहसास ए कमतरी से भर जाते हैं.


जिस कहानी के नाम पर किताब का नाम रखा गया है उसकी बात कर लेते हैं. 'कांसे का सूरज सोने का चांद' इस कहानी संग्रह की सबसे खूबसूरत कहानियों में एक है. इसे पढ़ते हुए कॉरपोरेट जगत में काम करने वाले शादीशुदा लोगों को लग सकता है ये उनकी ही कहानी लेखक ने लिख दी है. राहुल और सीमा की ये कहानी महानगरों के कई घरों की कहानी है. लेखक लिखते हैं-


'कॉरपोरेट जगत में सफलता की कीमत होती है अच्छा भला इंसान राक्षस बन जाता है जिसे केवल अपने लक्ष्य की भूख होती है.'


लक्ष्य की भूख और कामयाबी ने राहुल को अलग इंसान बना दिया था. ये वो राहुल नहीं रहता जिससे सीमा शादी से पहले प्यार करती थी. राहुल को लगने लगता है सीमा को सब मिला है उससे शादी कर के लेकिन इससे उलट सीमा को भौतिक सुख नहीं एक सुखी परिवार चाहिए होता है.


राहुल बड़े पद पर होता है और उसे न सुनने की आदत नहीं होती. यहां तक की सीमा जिससे वो प्यार करता था कॉरपोरेट ती दुनिया का अहंकार उसे उस सीमा की भी सुनने से मना करवा देता है. वो तीसरे बच्चे की जिद करता रहता है. सीमा के मर्जी के विपरीत वो तीसरा बच्चा चाहता है...


कहानी के अंत में जब तीसरा बच्चा नहीं होता तो राहुल फूट फूट कर रोता है और सीमा से कारण पूछता है- सीमा का जवाब कहानी और औरत की जिंदगी का सार है- निरोध केवल दिमाग में नहीं लगता....मेरे शरीर पर मेरा अधिकार है ना राहुल...


मानवीय मूल्यों को उकेरने वाली कई और कहानियां इस किताब में है. बोधि प्रकाशन ने इस किताब को छापा है