Bombay High Court: 18 साल के एक आदिवासी छात्र के इंजीनियर बनने के सपने को पूरा करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट ने 15 अगस्त यानी छुट्टी वाले दिन भी केस की सुनवाई की. दरअसल, गौरव वाघ नाम के छात्र की जाति जांच समिति ने अनुसूचित जनजाति (एसटी) प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया था. जिसको लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनवाई की. 


कोर्ट ने मामले की सुनवाई मंगलवार 15 अगस्त को की, जिस दिन सरकारी छुट्टी थी. गौरव वाघ के लिए न्याय बरकरार रखते हुए, न्यायाधीश अविनाश घरोटे और मनोहर चंदवानी की एक खंडपीठ ने जाति जांच समिति के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें दावा किया गया था कि वह नामित जनजाति से संबंधित नहीं है. 


16 अगस्त को देना था अपना जाति वैधता प्रमाण पत्र
इंजीनियरिंग में एडमिशन लेने के बाद वाघ को अपनी सीट की पुष्टि के लिए 16 अगस्त की दोपहर 3 बजे तक अपना जाति प्रमाण पत्र जमा करना था, ऐसा न करने पर उसका एडमिशन कैंसिल कर दिया जाता. वाघ के जनजाति प्रमाण पत्र को रद्द करने के समिति के कदम ने आदिवासी छात्रों के लिए उनकी आरक्षित सीट पर सीधा खतरा पैदा कर दिया, जिससे उनकी आकांक्षाएं खतरे में पड़ गईं. जवाब में छात्र ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देने का विकल्प चुना.


क्या है मामला?
मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने टिप्पणी कि यह एक बहुत ही अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई है क्योंकि याचिकाकर्ता के पिता के पास मन जनजाति का जाति वैधता प्रमाण पत्र है. पिता आदिवासी है और बेटा समिति के फैसले के कारण गैर-आदिवासी बन गया है, जो एक ऐसी स्थिति है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. न्यायाधीशों ने कहा कि जांच समिति ने कहा कि उनके प्रमाण पत्र को खारिज करना उचित नहीं था. 


अदालत ने आगे कहा कि जब तक 'महाराष्ट्र अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, विमुक्त जाति, घुमंतू जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और विशेष पिछड़ा श्रेणी (जारी करने और सत्यापन का विनियमन) जाति प्रमाण पत्र अधिनियम, 2000' में निर्धारित प्रक्रिया नहीं थी. जिसके परिणामस्वरूप उसमें संकेत दिया गया, याचिकाकर्ता के दस्तावेजों को खारिज नहीं किया जा सका, जब तक ये वैधता प्रमाण पत्र कायम रहेंगे, तब तक वे मैदान में बने रहेंगे और यहां तक कि जांच समिति को भी बाध्य करेंगे.''


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