नौकरीपेशा पत्नी से बेरोजगार पति को गुजारा भत्ता पाने का रास्ता आखिरकार मंजूर हो गया है. महाराष्ट्र नांदेड़ की एक सिविल कोर्ट ने पत्नी के तलाक के बाद भी पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था. इसके खिलाफ पत्नी ने औरंगाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. औरंगाबाद बेंच ने सिविल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा. फैसले में हस्तक्षेप करने की और इनकार करने की पत्नी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया गया. 


1992 में हुई थी शादी


दरअसल, नांदेड़ की एक तलाकशुदा महिला ने औरंगाबाद बेंच में याचिका दायर की है. याचिकाकर्ता की पत्नी और पति की शादी 1992 में हुई थी. उच्च शिक्षा के बाद उनकी पत्नी को सरकारी नौकरी मिल गई. तब पत्नी ने अपने पति से तलाक के लिए नांदेड़ की एक सिविल कोर्ट में अर्जी दी थी. 2015 में कोर्ट ने तलाक दे दिया. तलाक के बाद पति हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 24 और 25 के तहत स्थायी गुजारा भत्ता और निर्वाह खर्च पाने के लिए सिविल कोर्ट पहुंचा. 


याचिकाकर्ता की पत्नी ने दीवानी अदालत के आदेश को औरंगाबाद पीठ में चुनौती दी. तलाक के बाद पति-पत्नी के बीच संबंध समाप्त हो गए इसलिए पत्नी की ओर से यह कहा गया कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 25 के तहत स्थायी गुजारा भत्ता और निर्वाह खर्च नहीं लगाया जा सकता है.


पत्नी को पढ़ाने में योगदान 


पति ने याचिका दायर करते हुए दावा किया कि उसने पत्नी को पढ़ाने में काफी योगदान दिया है. उसने कहा कि पत्नी को पढ़ाने के लिए उसने अपनी कई महत्वाकांक्षाओं को दरकिनार किया और घर से जुड़ी चीजों को मैनेज किया था. पति ने दलील दी कि उसे स्वास्थ्य से जुड़ी कईं समस्याएं है जिसके कारण उसकी सेहत ठीक नहीं रहती. जबकि उसकी पत्नी महीने का 30 हजार कमाती है. 


'मेरी कमाई पर निर्भर है बेटी'


एक तरफ जहां पति ने गुजारा भत्ता देने की अपील की वहीं पत्नी का कहना था कि उसके पति के पास किराने का दुकान है और उसके पास एक ऑटो रिक्शा भी है. महिला ने कहा कि उसका पति उसकी कमाई पर निर्भर नहीं है लेकिन इस रिश्ते में उसकी एक बेटी भी है जो मां की कमाई पर निर्भर है. इसलिए पति द्वारा किए गए गुजारा भत्ता के मांग को खारिज किया जाना चाहिए.


पति- पत्नी की दलील सुनते हुए निचली अदालत ने साल 2017 में आदेश दिया कि महिला को अपने पति को 3,000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता के रूप में भुगतान करना पड़ेगा. हालांकि कोर्ट के आदेश के बाद भी महिला पूर्व पति को पैसे नहीं दे रही थी जिसे देखते हुए साल 2019 में एक और आदेश दिया गया जिसमें कोर्ट ने आवेदन की तारीख से याचिका के निपटारे तक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया. 


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