Bombay high court Decision on UAPA: बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने मंगलवार को एक अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा के माओवादियों से लिंक मामले में सुनवाई करते हुए अपने फैसले में कहा कि इंटरनेट से किसी विशिष्ट विचारधारा से जुड़ी सामग्री को डाउनलोड करना गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत अपराध नहीं है.


न्यायाधीश विनय जोशी और वाल्मिकी मेनेजेस की खंडपीठ ने कहा, "हिंसा और आतंकवाद की विशेष घटनाओं से अभियुक्तों की सक्रिय भूमिका को जोड़ने के लिए विशिष्ट साक्ष्य होना चाहिए." जजों ने यह भी स्पष्ट किया कि इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध कम्युनिस्ट या माओवादी साहित्य लिखने या पढ़ने के विकल्प को लेकर लोगों को दोषी ठहराना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.


देरी से गिरफ्तारी पर भी उठाया सवाल


हाई कोर्ट ने कहा कि इसका कोई सबूत नहीं है कि साईबाबा और अन्य लोग आतंकवादी कृत्यों की साजिश रच रहे थे. बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असफल रहा है कि डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य आरोपी यूएपीए के तहत आतंकवादी कृत्य करने की तैयारी कर रहे थे. इसमें उनकी देरी से गिरफ्तारी पर भी सवाल उठाया गया.


'इंटरनेट पर नक्सली कंटेंट तक पहुंच आम बात'


बॉम्बे हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान जोर दिया कि इंटरनेट पर कम्युनिस्ट और नक्सली दृष्टिकोण वाले कंटेंट तक पहुंच आम बात है और लोग इस तरह की गतिविधियों को स्कैन और डाउनलोड कर सकते हैं. साथ ही वह हिंसक वीडियो और फुटेज को भी डाउनलोड कर सकते हैं.


अदालत ने प्रोफेसर साईबाबा और अन्य 5 को किया बरी


दरअसल, 2013 और 2014 के बीच महाराष्ट्र की गढ़चिरौली पुलिस ने साईबाबा और अन्य आरोपियों को प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) और उसके फ्रंटल संगठन रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट से जुड़े होने के आरोप में गिरफ्तार किया था. साईबाबा 90% शारीरिक विकलांगता से ग्रस्त हैं. वह अदालत में भी व्हीलचेयर पर बैठे थे. सुनवाई के बाद कोर्ट ने पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और पांच अन्य को यूएपीए की पांच कड़ी धाराओं के तहत आतंकवाद और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने से संबंधित आरोपों से बरी कर दिया.


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