Bipin Chandra Pal: भारत को आजाद हुए सात दशक से ज्यादा का समय हो चुका है. लेकिन ये आजादी इतनी आसानी से नहीं मिली है. देश को आजाद कराने के लिए न जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों को बलिदान देना पड़ा. ऐसे ही एक स्वतंत्रता सेनानी थे बिपिन चंद्र पाल. उन्हें 'भारत में क्रांतिकारी विचारों के जनक' कहा जाता है. वह लाला लाजपत राय और बाल गंगाधर तिलक की प्रसिद्ध लाल-बाल-पाल तिकड़ी के हिस्सा थे, जिन्होंने आाजादी के लिए संघर्ष किया. 


बिपिन चंद्र पाल का जन्म 7 नवंबर, 1858 को वर्तमान बांग्लादेश के सिलहट जिले के पोइल गांव में हुआ था. वह पेशे से पत्रकार थे और साप्ताहिक अखबार परिदर्शक के संस्थापक-संपादक के रूप में काम करते थे. उन्होंने आजादी के आंदोलन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अंग्रेजी और बंगाली भाषा में ढेरों व्याखान दिए और कई सारे लेखों को लिखा. 'बंगाल टाइगर' के तौर पर जाने जाने वाले बिपिन पाल को सबसे स्वतंत्र और मुखर विचारकों में से एक माना जाता था. 


बंगाल के बंटवारे पर जताया था दुख


अंग्रेजों ने जब सांप्रादायिक आधार पर बंगाल का विभाजन किया, तो इस घटना से बिपिन चंद्र पाल भीतर से हिल गए. 1905 में बंगाल के विभाजन के जवाब में ही स्वदेशी आंदोलन का जन्म हुआ. इस आंदोलन के जरिए ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार की शुरुआत हुई. यह ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ सबसे मजबूत आंदोलनों में से एक था. लोगों ने बड़े पैमाने पर अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार किया और विदेशी सामानों को जलाया. 


प्राचीन सभ्यता, परंपराओं और मूल्यों पर गर्व करने की कही बात


बिपिन चंद्र पाल का मानना था कि अगर भारत को राजनीतिक आजादी चाहिए, तो उसे सिर्फ भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को पुनरोद्धार करना होगा. उन्होंने भारतीयों को अपनी प्राचीन सभ्यता, परंपराओं और मूल्यों पर गर्व करने की जरूरत पर जोर दिया. पाल का मानना था कि भारत के सांस्कृतिक सार को पुनर्जीवित करने से लोगों को फिर से अपनी सभ्यता पर आत्मविश्वास बढ़ सकेगा और एक मजबूत राष्ट्रीय पहचान विकसित होगी. 


आर्थिक आजादी को बताया था जरूरी


वह स्वदेशी के प्रबल समर्थक थे और उन्होंने ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार का समर्थन किया. उनका कहना था कि भारतीयों के लिए स्वेदशी उत्पादों का इस्तेमाल करना जरूरी है. उनका मानना था कि भारत की आजादी के लिए आर्थिक आजादी बहुत जरूरी है. बिपिन चंद्र पाल विदेशी वस्तुओं पर निर्भरता को कम करने के लिए स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहित करने की मांग करते थे. स्वदेशी को बढ़ावा देने में उनके विचारों और प्रयासों को काफी लोकप्रियता मिली. 


विधवा महिला से की थी शादी


बिपिन चंद्र पाल ने सामाजिक स्तर पर भी बदलाव की मांग करते थे. उन्होंने खुद अपनी निजी जिंदगी में एक उदाहरण पेश किया था. जब उनकी पहली पत्नी का निधन हो गया तो उन्होंने एक विधवा से शादी की. इसके बाद वह ब्रह्म समाज से जुड़ गए. उन्होंने जाति व्यवस्था की आलोचना की और वह लैंगिक समानता के प्रबल समर्थक थे. क्रांतिकारी नेता ने 1920 में राजनीति से संन्यास ले लिया लेकिन अपने अंतिम दिनों तक देश की आजादी के लिए अपनी बात रखते रहे. 


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