नई दिल्ली: राजनीति को संभावनाओं को खेल कहते हैं. लेकिन जब कर्नाटक चुनाव के नतीजे आ रहे थे तब किसी को इसका अनुमान नहीं रहा होगा कि इन नतीजों में ऐसी-ऐसी संभावनाएं भी छुपी होंगी. पहले पहल तो राहुल गांधी की कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनती नज़र आ रही थी और ऐसा लगा कि एच डी देवगौड़ा की जेडीएस (जनता दल सेक्युलर) किंगमेकर की भूमिका निभाएगी. बाद में पीएम नरेंद्र मोदी की बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) ने ऐसी बढ़त बनाई कि ये पार्टी अपने बूते सरकार बनाने की स्थिति में नज़र आने लगी.

इसके बाद लगा कि जेडीएस ना तो किंग ही होगी और ना ही किंगमेकर. लेकिन एक बार फिर बीजेपी के हाथ से बहुमत फिसल गया और कांग्रेस के बिना किसी शर्त वाले समर्थन को जेडीएस ने स्वीकार कर लिया. लेकिन किसी कीमत पर सरकार बनाने के लिए जाने जाने वाले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने तमाम जोड़-तोड़ के साथ राज्य के पूर्व सीएम येदुरप्पा को आज सीएम पद की शपथ दिलाव दी.

इन सबके बाद एक सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है कि क्या बीजेपी बहुमत साबित कर पाएगी. फिलहाल तो गवर्नर ने बीजेपी को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिनों का वक्त दिया है. लेकिन सब की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं. जहां इस मामले की अगली सुनवाई होनी है. कांग्रेस और जेडीएस को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट उनके हक में फैसला सुनाएगा. कयास लगाए जा रहे हैं कि कहीं कोर्ट कल ही न बहुमत साबित करने के लिए कहे दे.

...तो क्या पाल की तर्ज पर 'अभूतपू्र्व CM' बनने की राह पर हैं येदुरप्पा?

अगर किसी भी स्थिति में बीजेपी बहुमत साबित करने में असफल रहती है तो येदुरप्पा का हाल भी कांग्रेस के 'अभूतपू्र्व सीएम' जगदंबिका पाल जैसा हो सकता है. आइए आपको बताते हैं कि क्या है जगदंबिका पाल के 'अभूतपूर्व सीएम' बनने की कहानी.

पद से हटे किसी भी शख्स के लिए पूर्व या भूतपू्र्व का इस्तेमाल आम है, लेकिन जगदंबिका पाल के लिए 'भूतपू्र्व सीएम' नहीं बल्कि 'अभूतपूर्व सीएम' की उपमा उछाली गई थी. पाल के 'अभूतपूर्व सीएम' बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है.

आपको बता दें कि 67 साल के पाल ने अपनी राजनीति का सबसे लंबा वक्त कांग्रेस में बिताया है. वो पार्टी के लिए विधायक से लेकर सांसद और एक दिन के सीएम भी रहे हैं. लेकिन बाद में पाला बदलकर पाल बीजेपी में शामिल हो गए. फिलहाल वो यूपी के डुमरियागंज से बीजेपी के सांसद हैं.

एक दिन के लिए राज्य के सीएम बने थे पाल

पाल के जीवन में अभूतपू्र्व का तमगा साल 1998 में लगा. दरअसल, पाल एक दिन के लिए यूपी के सीएम बने थे. 21 फरवरी से 22 फरवरी 1998 तक पाल राज्य के सीएम थे. तब कल्याण सिंह की सरकार को राज्य के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने बर्खास्त कर दिया था जिसके बाद पाल को वहां का सीएम बनाया गया था.

21 से 22 फरवरी 1998 के बीच दल-बदल की वजह से बहुमत साबित करने के दौरान यूपी विधानसभा में जमकर मारपीट हुई. इसे देखते हुए तत्कालीन गवर्नर रोमेश भंडारी ने यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी. लेकिन केंद्र ने इससे इंकार कर दिया. इससे उत्साहित होकर कल्याण सिंह ने बाहर से आए विधायकों को मंत्री बना कर देश के इतिहास में यूपी का सबसे बड़ा मंत्रिमंडल बना दिया. इसमें 93 मंत्री रखे गए. वहीं, इससे नाराज दूसरे राजनीतिक दलों ने कल्याण सरकार का तख्ता पलट करने की योजना बना ली.

कल्याण सिंह को उस समय झटका लगा जब बीएसपी से आए विधायकों के सपोर्ट को गवर्नर रोमेश भंडारी ने मान्यता देने से इंकार कर दिया. इसके बाद उन्होंने रातों-रात कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया. इतना ही नहीं उन्होंने जगदंबिका पाल को सीएम पद की शपथ दिलवा दी. इस दौरान यूपी विधानसभा में जैसा घटनाक्रम हुआ था वैसा देश की विधानसभाओं के इतिहास में कभी नहीं हुआ.

कल्याण सिंह और जगदंबिका पाल विधनसभा में स्पीकर के दायीं और बायीं तरफ बैठे हुए थे. इस दौरान विधयक अपनी पसंद के सीएम के लिए वोट कर रहे थे. कल्याण सिंह को आसानी से बहुमत हासिल हो गया जिसके बाद 23 फरवरी को हाई कोर्ट ने कल्याण सिंह सरकार को वापस से राज्य की जिम्मेदारी सौंप दी.

बंगले से कागज़ तक पर 'पूर्व सीएम' हैं पाल

रोचक बात ये है कि हाई कोर्ट ने पाल को पूर्व सीएम तक नहीं माना, बावजूद इसके पाल ने ऑफिशियल काम काज से जुड़े तमाम कागज़ात पर खुद को पू्र्व सीएम लिखवा रखा है. वहीं, पाल ने लखनऊ स्थित अपने बंगले के बाहर भी पू्र्व सीएम की प्लेट लगवा रखी है. यही वजहें हैं कि राज्य की राजनीति और लोगों के बीच वो पूर्व की जगह 'अभूतपू्र्व सीएम' के तौर पर जाने जाते हैं.

वैसे पाल से अलग है येदुरप्पा का मामला

वैसे येदुरप्पा का मामला पाल से बिल्कुल अलग है क्योंकि वो ना सिर्फ कर्नाटक के सीएम रहे हैं बल्कि भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद जब उन्हें बीजेपी से निकाला गया था तब उन्होंने अपनी पार्टी लॉन्च करके 2013 का विधानसभा चुनाव भी लड़ा था. ये और बात है कि उस चुनाव में वो बुरी तरह हार गए और देशभर में 'जनलोकपाल' का शिकार हुई कांग्रेस ये चुनाव जीत गई थी.

अगर येदुरप्पा बहुमत साबित नहीं कर पाते तो 2013 के बाद ये पहला मौका होगा जब बीजेपी अध्यक्ष शाह तमाम जोड़-तोड़ के बावजूद किसी विधनसभा चुनाव के नतीजों को अपने पाले में करने में असफल साबित होंगे.