नई दिल्ली: अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई आज भी तकनीकी सवाल पर उलझी रही. कोर्ट में इस बात पर बहस होती रही कि 'इस्लाम में मस्ज़िद की अनिवार्यता' के सवाल को संविधान पीठ के पास भेजा जाए या नहीं. अगली सुनवाई 27 अप्रैल को होगी.


क्या है मस्ज़िद की अनिवार्यता का सवाल


दरअसल, 1994 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा था कि मस्ज़िद इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. इस्माइल फारुखी बनाम भारत सरकार मामले में अयोध्या में विवादित ज़मीन के सरकारी अधिग्रहण को चुनौती दी गई थी. कहा गया था कि मस्ज़िद की जगह को सरकार नहीं ले सकती. कोर्ट ने अधिग्रहण को कानूनन वैध ठहराया. साथ ही कहा कि नमाज तो इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है, लेकिन इसके लिए मस्ज़िद अनिवार्य नहीं है.


एक मुस्लिम पक्षकार की तरफ वरिष्ठ वकील राजीव धवन दलील दे रहे हैं कि ये फैसला मुस्लिम पक्ष के दावे को कमज़ोर कर सकता है. इसलिए सबसे पहले इस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए.


आज क्या हुआ


पिछली दो सुनवाई से संविधान पीठ के गठन की मांग कर रहे राजीव धवन ने आज भी दलीलें जारी रखीं. उन्होंने कहा- "आपने बहुविवाह का मसला संविधान पीठ को सौंपा. मस्ज़िद में नमाज पढ़ना इससे ज़्यादा ज़रूरी मसला है. यहां प्रेस के लोग बैठे हैं. देख रहे हैं कि इस सवाल को कितनी अहमियत मिल रही है."


चीफ जस्टिस ने धवन से कहा, "आप अपनी बात रखिए. दलील दीजिए कि क्यों मामले को संविधान पीठ में भेजा जाए. हम दूसरे पक्षों को भी सुनेंगे. इसके बाद ही फैसला होगा."


क्यों बार-बार टल रहा है मामला


11 अगस्त 2017


5 दिसंबर 2017


8 फरवरी 2018


14 मार्च 2018


23 मार्च 2018


और


6 अप्रैल 2018 यानी आज की तारीख. ये अयोध्या मामले की पिछली छह तारीखें हैं. हर बार लोगों को लगता है कि कोर्ट मामले की विस्तृत सुनवाई शुरू करेगा. ये तय किया जाएगा कि विवादित ज़मीन पर किसका हक है. लेकिन हर बार बात किसी तकनीकी मसले पर उलझ जाती है.


30 सितंबर 2010 को इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आया था. हाई कोर्ट ने विवादित ज़मीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच बांटने का आदेश दिया था. इसके खिलाफ सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. तब से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.


कोर्ट ने सभी पक्षों को मामले से जुड़े दस्तावेजों के अनुवाद और दूसरी औपचारिकताएं पूरी करने को कहा. सात साल बाद 11 अगस्त 2017 को जब ये मामला लगा तब तक ये काम पूरा नहीं हुआ था. कोर्ट को बताया गया कि कुल सात भाषाओं के हज़ारों पन्ने हैं, जिनका अनुवाद होना है.


उस दिन कोर्ट ने तीन महीने में सुनवाई से पहले की सभी तकनीकी ज़रूरतें पूरी करने को कहा. कोर्ट ने कहा 5 दिसंबर से मसले पर लगातार सुनवाई शुरू कर दी जाएगी.


5 दिसंबर को सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने सुनवाई डेढ़ साल तक टालने की मांग कर डाली. उन्होंने कहा कि चूंकि ये एक राजनीतिक मुद्दा है, इसलिए, लोकसभा चुनाव के बाद जुलाई 2019 में इसकी सुनवाई हो.


हालांकि, कोर्ट ने इस दलील को अनसुना कर दिया और सुनवाई की अगली तारीख 8 फरवरी तय कर दी. कोर्ट ने कहा अनुवाद किए गए 19,950 पन्नों का सभी पक्ष आपस मे लेन देन कर लें.


8 फरवरी से पहले ये बात सामने आई कि अब अनुवाद और कागज़ों के लेन देन का काम पूरा हो चुका है. लेकिन उस दिन फिर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने नई मांग उठा दी. बोर्ड ने कहा कि हिन्दू पक्ष जिन धार्मिक किताबों का हवाला देगा, उसे उनके अनुवाद दिए जाएं.


मामला 14 मार्च को लगा तो मुस्लिम पक्ष के एक और वकील राजीव धवन ने इस्माइल फारुखी मामले को उठा दिया. उन्होंने कहा कि सबसे पहले इस्लाम मे मस्ज़िद की अनिवार्यता पर फैसला हो. इसके लिए 5 या 7 जजों की संविधान पीठ बनाई जाए.


14 मार्च के बाद, 23 मार्च और आज यानी 6 अप्रैल की तारीख को भी राजीव धवन अपनी मांग के समर्थन में बहस करते रहे. पिछली 3 तारीख से हर बार 2 घंटे बोल रहे धवन की दलीलें अब तक पूरी नहीं हुई हैं. 27 अप्रैल को भी वो जिरह जारी रखेंगे.