Award Wapsi Gang: कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष रहे बृजभूषण शरण सिंह को लेकर जो विवाद चल रहा है, उसमें अंतरराष्ट्रीय पहलवान विनेश फोगाट ने अपना मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार और अर्जुन पुरस्कार लौटाने का ऐलान कर दिया है. इससे पहले बजरंग पूनिया ने भी अपना पद्मश्री पुरस्कार लौटाने का ऐलान किया था. इतना ही नहीं पद्मश्री वीरेंद्र सिंह यादव ने भी अवॉर्ड वापसी का ऐलान किया है. वहीं, साक्षी मलिक ने तो कुश्ती से ही संन्यास ले लिया है. 


वैसे यह पहला मौका नहीं है जब मोदी सरकार असहमत लोगों ने अवार्ड वापसी का ऐलान किया हो. इससे पहले भी तमाम मुद्दों पर मोदी सरकार से असहमत लोगों ने अवार्ड वापस किए और उन्हें लेकर एक टर्म गढ़ा गया. नाम दिया गया अवार्ड वापसी गैंग. बता दें अवॉर्ड वापसी का ट्रेंड सिर्फ मोदी सरकार में ही नहीं है, बल्कि भारत में अवॉर्ड वापसी का इतिहास काफी पुराना है. इसने अंग्रेजों से लेकर इंदिरा गांधी तक को परेशानी में डाल दिया था.


गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर के अवार्ड लौटाया
भारत में सबसे पहला बड़ा अवॉर्ड वापस किया था नोबेल पुरस्कार विजेता और भारत के महान साहित्यकार गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने. अंग्रेजों ने रविंद्रनाथ टैगोर को 'नाइटहुड' की उपाधि दी थी, जिसके बाद उन्हें सर कहा जाता था. लेकिन जब 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ तो इसके विरोध में रविंद्रनाथ टैगोर ने अपनी नाइटहुड की उपाधि अंग्रेजों को लौटा दी थी. 


जब भारत आजाद हुआ तो उसके बाद भी बहुत से लोगों ने अलग-अलग मुद्दों पर सरकार से असहमति जताते हुए अपने अवॉर्ड वापस कर दिए थे. कुछ लोग तो ऐसे भी थे. अवॉर्ड वापस करने वालों की लिस्ट में सबसे बड़ा नाम है देश के महान साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु का है. 


फणीश्वरनाथ रेणु ने अवार्ड वापस किया
जिन लोगों ने थोड़ा बहुत हिंदी साहित्य पढ़ा होगा, उसने फणीश्वरनाथ रेणु की कृति मैला आंचल जरूर पढ़ी होगी. उनकी लिखी कहानी 'मारे गए गुलफाम' पर बॉलीवुड में तीसरी कसम नाम से फिल्म भी बनी थी, जिसमें राजकपूर और वहीदा रहमान मुख्य भूमिका में थे. साहित्य में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. लेकिन जब इंदिरा गांधी ने 26 जून 1975 को देश में आपातकाल लगा दिया तो इसके विरोध में रेणु ने अपना पद्मश्री सम्मान सरकार को लौटा दिया था. 


वहीं, इसी आपातकाल के विरोध में ही कर्नाटक के एक और बड़े साहित्यकार के शिवराम करंथ ने अपना पद्मभूषण सम्मान सरकार को लौटाया था, लेकिन तब किसी ने भी इन दोनों साहित्यकारों को अवॉर्ड वापसी गैंग का सदस्य नहीं बताया, बल्कि खुले दिल ने उनके सम्मान लौटाने के फैसले की तारीफ ही की.


इसके अलावा इंदिरा गांधी के आदेश पर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में भिंडरावाले के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन ब्लू स्टार के खिलाफ साहित्यकार खुशवंत सिंह ने भी अपना पद्म भूषण सम्मान लौटा दिया था. उनके साथ ही पत्रकार और लेखक संधू सिंह हमदर्द ने भी ब्लू स्टार के विरोध में अपना पद्मश्री लौटाया था. 


कैफी आजमी ने किया विरोध
मशहूर साहित्यकार कैफी आजमी ने तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह की उर्दू पर की गई टिप्पणी के लिए अपना पद्मश्री वापस कर दिया था. कश्मीरी लेखक और पद्मश्री से सम्मानित साहित्यकार अख्तर मोहिउद्दीन ने कश्मीरी अलगाववादी मकबूल भट्ट को दी गई फांसी के खिलाफ साल 1984 में अपना पद्मश्री सम्मान लौटा दिया था.
हालांकि, तब भी किसी ने न तो खुशवंत सिंह को और न ही अख्तर मोहिउद्दीन को अवॉर्ड वापसी गैंग बताया था. 


इतना ही नहीं हिंदी के लेखक और सांसद रहे सेठ गोविंद दास और हिंदी के महान उपन्यासकार वृंदावनलाल वर्मा ने ऑफिशियल लैंग्वेज ऐक्ट 1963 पास होने के बाद 1968 में अपना पद्म विभूषण लौटा दिया था. इसी ऐक्ट के विरोध में साहित्यकार गोपाल प्रसाद व्यास ने अपना पद्मश्री लौटा दिया था.


मोदी सरकार खोजा गया टर्म 'अवॉर्ड वापसी'
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद जब कुछ लोगों ने सरकार की नीतियों से असहमत होकर अपने अवॉर्ड वापस करने का ऐलान किया, तो उनके लिए एक टर्म गढ़ दिया गया अवॉर्ड वापसी गैंग. इसकी शुरुआत हुई साहित्यकार अशोक वाजपेयी के साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने के ऐलान से. उसके बाद तो एक-एक करके और भी नाम जुड़ते गए और फिर नयनतारा सहगल, उदय प्रकाश, कृष्णा सोब्ती, मंगलेश डबराल, काशीनाथ सिंह, राजेश जोशी, केकी दारूवाला, अंबिकादत्त, मुनव्वर राना, खलील मामून, सारा जोसेफ, इब्राहिम अफगान, अमन सेठी जैसे बड़े साहित्यकारों ने अपने अवॉर्ड वापसी का ऐलान कर दिया.


इस लिस्ट में 50 के करीब साहित्यकार थे, जिन्हें एक खास तबके की ओर से अवॉर्ड वापसी गैंग कहा गया था और जिसके मुखिया के तौर पर उदय प्रकाश का नाम लिया गया, जबकि कहा गया कि इस अवॉर्ड वापसी के पीछे का पूरा दिमाग साहित्यकार अशोक वाजपेयी का है. हालांकि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल ने तो किसानों के प्रदर्शन को अपना समर्थन देते हुए दिसंबर 2020 में अपना पद्मभूषण लौटा दिया था.


इससे पहले दादरी में हुई मॉब लिंचिंग का विरोध करते हुए पुष्प मित्र भार्गव ने भी 2015 में अपना पद्म भूषण लौटा दिया था, जो उन्हें साल 1986 में मिला था. शिरोमणि अकाली दल के सुखदेव सिंह ढींढसा को साल 2019 में पद्म भूषण अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था, लेकिन किसान आंदोलन के समर्थन में साल 2020 में उन्होंने अपना अवॉर्ड वापस कर दिया.


अब एक बार फिर से कुश्ती को लेकर अवॉर्ड वापसी शुरू हुई है, तो फिर से उसी तरह की बातें की जा रही हैं, जिसमें गैंग शब्द जुड़ा है. लेकिन इंदिरा के जमाने में किसी ने अवॉर्ड वापसी के लिए कभी गैंग जैसे शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था.


यह भी पढ़ें- विपक्ष के पीएम फेस पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश का अहम बयान, 'हम पहले ये देखेंगे कि...'