दक्षिण के पठार पर बसा औरंगाबाद शहर पहले खाड़की कहलाता था, जब औरंगजेब दक्षिण का सूबेदार बना तो उसने उसे अपनी राजधानी बनाई और नाम बदलकर औरंगाबाद कर दिया. इसी शहर में उसकी पहली पत्नी दिलरास बानो बेगम का मकबरा बना, जिसे आज बीबी का मकबरा कहा जाता है.

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साल 1657 में दिलरास बानो का निधन हो गया और उन्हें औरंगाबाद में दफनाया गया. पहले उनके लिए एक साधारण मकबरा बनाया गया था, लेकिन उनके पुत्र आजमशाह इससे संतुष्ट नहीं हुए. उन्होंने अपने पिता औरंगजेब से आग्रह किया कि उनकी मां की याद में ताजमहल जैसा आलीशान मकबरा बनाया जाए.

बीबी का मकबरा का निर्माण और डिजाइनऔरंगजेब खर्च के खिलाफ थे, लेकिन बेटे की जिद पर उन्होंने छह लाख रुपये दिए. मकबरे का डिजाइन अताउल्लाह ने तैयार किया, जो ताजमहल के डिजाइनर अहमद लाहौरी का पुत्र था. निर्माण कार्य शिल्पकार हंसपतराय को सौंपा गया. इसमें मकराना का संगमरमर और सफेद प्लास्टर का इस्तेमाल हुआ. गुलाम मुस्तफा नाम के तत्कालीन लेखक की किताब तारीख नामा में खर्च के बारे में जिक्र किया गया है, जिसके मुताबिक मकबरे को बनवाने में पूरे 6 लाख 68 हजार रुपये का खर्च आया था, जबकि ताजमहल की लागत करीब 3.2 करोड़ रुपये थी.

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ताजमहल की नकल या अलग पहचानबीबी का मकबरा ताजमहल से मिलता-जुलता दिखता है, लेकिन उसमें वह भव्यता नहीं है. संसाधनों की कमी के कारण इसमें पच्चीकारी का काम नहीं हो सका. इसके बावजूद यह अपनी सुंदरता और शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है और इसे डक्कन का ताजमहल कहा जाता है. यह औरंगजेब के समय की सादगी और सीमित संसाधनों का प्रतीक है. आज यह स्मारक एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है और मुगल वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण माना जाता है.

ताजमहल का इतिहासताजमहल मुगल वास्तुकला का सबसे बेहतरीन और अद्वितीय उदाहरण है. इसका निर्माण सम्राट शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में कराया था. ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू हुआ और यह 1653 में पूरी तरह बनकर तैयार हुआ. इसे बनाने में लगभग 22 साल लगे और हजारों शिल्पकारों ने इसमें अपनी कला का योगदान दिया.

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