असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने साफ कहा कि राज्य में वोटिंग केवल सरकारी योजनाओं या आर्थिक सहायता पर निर्भर नहीं करती. उनके अनुसार, असम में कई समुदाय ऐसे हैं, जिनकी राजनीतिक पसंद पैसे या सुविधाओं से नहीं बदलती.

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निजी टीवी चैनल के कार्यक्रम में जब उनसे पूछा गया कि क्या वे बिहार की तरह महिलाओं को नकद सहायता देने की योजना ला सकते हैं तो उन्होंने इस विचार को खारिज कर दिया. सरमा ने कहा कि असम के कुछ समुदाय उनके काम की सराहना तो करते हैं, लेकिन मतदान के समय उनकी तरफ नहीं आते. उन्होंने कहा कि राज्य में मतदान के रुझान सरकारी योजनाओं या वित्तीय प्रोत्साहनों के बजाय विचारधारा से प्रभावित होते हैं. चाहे कितना भी पैसा दिया जाए, चाहे 10,000 रुपये हों या 1 लाख रुपये, कोई भी मुस्लिम मतदाता उन्हें अपना उम्मीदवार नहीं चुनेगा.

योजनाओं से नहीं, विचारों से तय होता है वोट

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मुख्यमंत्री का तर्क था कि किसी भी लोकतंत्र में मतदाता सिर्फ फायदा देखकर वोट नहीं करते. उन्होंने कहा कि योजनाएं चलाना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन यह मानना ठीक नहीं कि लाभ पाने वाला हर नागरिक उसी सरकार को वोट देगा. सरमा के अनुसार, असम में कई वर्ग अपनी वैचारिक सोच, पहचान और राजनीतिक धारणाओं के आधार पर मतदान करते हैं.

असम में जनसांख्यिकीय बदलाव पर चिंता

चर्चा के दौरान सरमा ने राज्य में तेजी से बदलती आबादी को लेकर भी चिंता जताई. उनका कहना था कि वर्षों से जारी अवैध प्रवासन ने जनसांख्यिकीय संतुलन को प्रभावित किया है. सरमा ने बताया कि असम की मुस्लिम आबादी 2021 में करीब 38% थी. 1961 से हर दशक में 4–5% की लगातार बढ़ोतरी दर्ज की गई. 2027 तक यह अनुपात 40% तक पहुंच सकता है. मुख्यमंत्री का कहना है कि अगर यह प्रतिशत 50% पार कर गया तो राज्य के अन्य समुदायों की पहचान और सांस्कृतिक विरासत दबाव में आ सकती है.

रिश्ते अच्छे हैं पर वोट नहीं मिलते

सरमा ने कहा कि उनका व्यक्तिगत संबंध मिया समुदाय की महिलाओं और कई मुस्लिम परिवारों से अच्छा है, लेकिन चुनाव के समय यह व्यवहारिक जुड़ाव वोट में तब्दील नहीं होता. उन्होंने यह भी कहा कि यदि मुस्लिम वोट कांग्रेस के साथ भी चले जाएं, तब भी भाजपा असम में अपनी राजनीतिक स्थिति बनाए रखने में सक्षम है. मुख्यमंत्री ने अंत में कहा कि असम में वही लोग उनके अपने कहे जा सकते हैं, जो खुद को असमिया और भारतीय पहचान से जोड़ते हैं.

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