नई दिल्लीः एक ऐसी शख्सियत जो 'जीने लायक धरती का निर्माण' करना चाहते थे. जिनके बारे में दुनिया कहती थी कि वह मिसाइल बनाते थे लेकिन जब लोगों के बीच जाते थे तो सिर्फ पैगाम-ए-मोहब्बत के सिवा और कुछ नहीं देते थे. एक ऐसी हस्ती जो राष्ट्रपति तो थी लेकिन अपने व्यक्तित्व में इसे झलकने नहीं दिया. उन्होंने 'आम लोगों के राष्ट्रपति' बने रहना पसंद किया. जी हां कुछ ऐसे थे हमारे ग्यारवें राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम यानि अबुल पकिर जैनुलआबेदीन अब्दुल कलाम यानि अब्दुल कलाम.


सिद्धांतों पर कदम बढ़ाने वाले कलाम जो आखिरी सांस तक देश की सेवा की ही बात कर रहे. देश के युवाओं को रिसर्च और इनोवेशन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए स्कूलों, कॉलेजों और सेमिनारों के जरिए छात्रों के बीच जाते रहे. उनकी बस यही सोच थी कि किसी भी तरह युवा पीढ़ी को समृद्ध किया जाए. युवाओं के बीच कार्यक्रम में अब्दुल कलाम कहा करते थे कि 'लोग हमें तभी याद रखेंगे जब हम आने वाली पीढ़ी को एक समृद्ध और सुरक्षित भारत दे पाएं. इस समृद्धि का स्रोत आर्थिक समृद्धि और सभ्य विरासत होगी.'


शिलांग में दिया अंतिम संबोधन


शिलांग में जब छात्र-छात्राओं के बीच मंच से भाषण देने पहुंचे तो शायद ही किसी को अंदाजा होगा कि यह संबोधन उनका अंतिम हो. इस स्पीच के दौरान उन्होंने न सिर्फ मानवता को लेकर चिंता जाहिर की थी बल्कि धरती पर फैले प्रदूषण को लेकर भी चिंता जताई थी.


आज भी लोग जब कुछ कठिन काम का हल निकाल लेते हैं तो कहते हैं कि ये कोई रॉकेट साइंस थोड़े है कि समझ में नहीं आएगा. जी हां उसी रॉकेट साइंस को डॉ कलाम लाखों स्कूली बच्चों के बीच ले गए और उसे सरल शब्दों में समझाया.


डॉक्टर कलाम को कुछ लोग सफल वैज्ञानिक मानते हैं तो कुछ लोग सफल राष्ट्रपति. लेकिन, अगर सूक्ष्मता से देखा जाए तो न तो वे वैज्ञानिक के सांचे में फिट बैठते थे न ही राजनेता के सांचे में वे इन सभी से ऊपर एक सफल इंसान के रूप में दिखते थे.


ऐसा नहीं कि डॉ कलाम का कार्यकाल पूरी तरह से निर्विवाद रहा. राज्यपाल बूटा सिंह की सिफारिश पर बिहार में साल 2005 में राष्ट्रपति शासन लगाया. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को खारिज कर दिया. डॉ कलाम उस दौरान देश के राष्ट्रपति थे.


डॉ कलाम ने छोड़ी अमिट छाप


एयरोनॉटिकल इंजीनियर के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले डॉ कलाम ऐसी अमिट छाप छोड़ेंगे किसी को अंदाजा तक नहीं था. उन्होंने हिन्दुस्तान की दो बड़ी एजेंसियां डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) में काम करते हुए शानदार सफलता हासिल की.


भारत के पहले रॉकेट एसएलवी-3 को बनाने में डॉ अब्दुल कलाम ने अहम भूमिका निभाई तो वहीं पोलर सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल (पीएसएलवी) के निर्माण में भी उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही थी.


भारत रत्न से सम्मानित डॉ कलाम ने भारत निर्मित पहले मिसाइल पृथ्वी और फिर उसके बाद अग्नि को बनाने में भी अहम योगदान दिया. साल 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण किया था उसमें भी डॉ कलाम की विशिष्ट भूमिका थी. 


गरीब परिवार में पैदा हुए थे डॉ कलाम


स्कूली दिनों में अखबार बांटकर पढ़ाई के लिए पैसे जुटाने वाले कलाम देश के राष्ट्रपति पद तक पहुंचे. 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में मछुआरा परिवार में कलाम का जन्म हुआ था.


भारतीय मिसाइल कार्यक्रम में अहम भूमिका निभाने के कारण उन्हें 'मिसाइल मैन' का नाम भी दिया गया. स्वदेशी तकनीक से बनी अग्नि और पृथ्वी मिसाइलों के विकास में उन्होंने काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया. इतना ही नहीं डॉ कलाम की उपलब्धियों को लिखा जाए तो शायद लिखने वालों के लिए समय कम पड़ जाए. 


27 जुलाई 2015 को राष्ट्रपति डॉ कलाम उस ब्रह्मांड की ओर प्रस्थान हो गए जिसके बारे में कहा करते थे ''आसमान की ओर देखिए. हम अकेले नहीं हैं. ब्रह्मांड हमारा दोस्त है.'' शायद यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि डॉ अब्दुल कलाम उन लोगों में से थे जिन्होंने राष्ट्रपती पद की एक नई परिभाषा गढ़ी. जिसे आने वाली पीढ़ियां याद करती रहेंगी.


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