कुछ दिन पहले ही पटना में विपक्षी दलों की बैठक हुई थी. कांग्रेस, एनसीपी, सपा, टीएमसी, आम आदमी पार्टी और शिवसेना सहित तमाम दलों ने बीजेपी के खिलाफ मिलकर लड़ने का संकल्प लिया. विपक्षी दलों के इस महामिलन के खतरे को बीजेपी भांप रही थी. राजनीति में अवधारणा की अहम भूमिका है. वोटों के जिस कुल योग को विपक्षी लोकसभा चुनाव 2024 में जीत की कुंजी मान रहे थे, बीजेपी ने महाराष्ट्र में उसी पर 'सर्जिकल स्ट्राइक' करके इरादे जता दिए हैं.


महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार 55 साल के राजनीतिक करियर में पहली बार उसी चाल का शिकार हो गए हैं जिसके दम पर उन्होंने खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की थी. उनको भतीजे अजित पवार ने मात दे दी है. फिलहाल अब महाराष्ट्र की राजनीति का असर पूरे देश में देखा जाना बाकी है जिसमें प्रमुख केंद्र बिहार हो सकता है. 


बीजेपी ने पूरा ध्यान हिंदी पट्टी के इस बड़े राज्य पर केंद्रित कर दिया है क्योंकि इस राज्य में लोकसभा की 40 सीटें हैं. लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी और नीतीश कुमार की पार्टी ने मिलकर 39 सीटें जीत ली थीं. लेकिन अब नीतीश कुमार आरजेडी के साथ हैं. आरजेडी और जेडीयू कुल वोट बैंक बीजेपी से बहुत ज्यादा है.


जातिगत समीकरणों में उलझी बिहार की राजनीति में बीजेपी को अकेले दम पर कुछ नहीं कर पाएगी इस हकीकत से पार्टी के नेता पूरी तरह परिचित हैं. लेकिन बीजेपी यहां आसानी वॉक ओवर दे देगी यह भी मानना बड़ी भूल है. 


लोकसभा चुनाव 2024 के नजदीक आते ही गृह मंत्री अमित शाह लगातार बिहार की रैली कर रहे हैं. अभी कुछ दिन पहले ही वो चंपारण के चनपटिया गए थे और उसके बाद लखीसराय गए.  शाह का दौरा पिछले हफ्ते पटना में 15 विपक्षी दलों के 32 नेताओं की बैठक के बाद हुआ. 


शाह की रैली में बिहार भाजपा अध्यक्ष सम्राट चौधरी और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह सहित राज्य में पार्टी के सभी शीर्ष नेता मौजूद थे. लखीसराय मुंगेर लोकसभा क्षेत्र के अंदर आता है जिसका प्रतिनिधित्व जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह करते हैं. 




 सभी दौरों में अमित शाह ने नीतीश कुमार पर जमकर हमला कर रहे हैं. ऐसे में ये सवाल उठने लगा है कि कहीं बीजेपी की नजर नीतीश कुमार पर तो नहीं है या फिर महाराष्ट्र की तरह बिहार में भी बिसात बिछाए जाने की तैयारी है. दरअसल विपक्षी एकता के लिए कवायद नीतीश कुमार के साथ ही शरद पवार भी कर रहे थे. बीजेपी ने महाराष्ट्र में एनसीपी को तगड़ा झटका दे दिया है. इस घटनाक्रम के बाद शरद पवार कमजोर हो गए हैं लेकिन अभी नीतीश कुमार की ओर से चुनौती बरकरार है.


अमित शाह के बिहार दौरे पर चार बयानों पर एक नजर  


23 सितंबर 2022- 'रंगभूमि मैदान' पूर्णिया


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्णिया दौरे में नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा ' बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास कोई सिद्धांत नहीं है. उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए बीजेपी की पीठ में छुरा घोंपा और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव से हाथ मिला लिया.


नीतीश पर निशाना साधते हुए अमित शाह ने कहा' नीतीश कांग्रेस विरोधी विचारधारा के साथ पैदा हुए और पीएम बनने की चाहत को पूरा करने के लिए बीजेपी के साथ हाथ मिलाया और अब आरजेडी और कांग्रेस की गोद में जा कर बैठ गए हैं. 


11 अक्टूबर 2022- सिताब दियारा 


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर उनके गांव सिताब दियारा पहुंचे. इस दौरे में भी अमित शाह ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधा था. अमित शाह ने नीतीश कुमार का नाम लिए बगैर कहा था कि जेपी के आंदोलन से निकले बिहार के नेता आज सत्ता के लिए कांग्रेस की गोद में बैठे हैं. जेपी ने जीवन भर सत्ता की न सोचकर सिद्धांतों के लिए काम किया. लेकिन आज 5-5 बार सत्ता के लिए पाला बदलने वाले लोग बिहार के मुख्यमंत्री बनकर बैठे हैं. 


23 फरवरी 2023 - पश्चिमी चंपारण



बीजेपी कार्यकर्ताओं की बैठक में अमित शाह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर आरजेडी के साथ 'एक गुप्त समझौता' करने का आरोप लगाया. अमित शाह ने कहा, "बिहार की जनता को यह मालूम नहीं है कि नीतीश कुमार लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने वाले हैं." अमित शाह का खास जोर तेजस्वी यादव को लालू प्रसाद यादव का बेटा बताने पर था. शाह ने नीतीश कुमार पर बिहार में कथित जंगलराज लौटाने का आरोप भी लगाया.


29 जून 2023- लखीसराय 


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 29 जून को लखीसराय दौरे पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए उन्हें 'पलटू बाबू' करार दिया, उन्होंने कहा कि नीतीश लालू प्रसाद की आंखों में धूल झोंक रहे हैं. 


शाह ने नीतीश कुमार के बारे में कहा, 'पलटू बाबू नीतीश कुमार पूछ रहे थे कि नौ साल में (केंद्र द्वारा) क्या किया गया. कम से कम उन लोगों के लिए कुछ सम्मान रखें जिनके साथ आप बैठे और जिनकी वजह से आप मुख्यमंत्री बने. नीतीश के बारे में अमित शाह के इस बयान के बाद ये कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या बीजेपी की नजर नीतीश कुमार पर है.


अमित शाह ने विपक्षी दलों पर भी साधा निशाना



अमित शाह ने विपक्षी दलों की बैठक और एकता के उनके वादे पर हमला करते हुए शाह ने कहा कि एनडीए को धोखा देने वाले नेताओं को सख्त सजा दी जानी चाहिए. उन्होंने आगे कहा, "ये 20 (विपक्षी) दल वे हैं जो 2004-2014 तक 20 लाख करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार और घोटालों में लिप्त थे. 


अमित शाह ने अपने भाषण में कांग्रेस को 'अजीब पार्टी' बताया. उन्होंने कहा, 'राजनीति में पहली बार किसी नेता को लॉन्च किया जाता है. हम एक ऐसी पार्टी से आते हैं जहां एक नेता को लॉन्च नहीं किया जाता है, जनता उसे लॉन्च करती है. लेकिन कांग्रेस 20 साल से राहुल बाबा को लॉन्च कर रही है. इस बार भी कांग्रेस ने उन्हें पटना में लॉन्च करने की नाकाम कोशिश की है'. 


'नीतीश की पार्टी को तोड़ना बीजेपी का मकसद'


वरिष्ठ पत्रकार मानव कौल ने एबीपी न्यूज को फोन पर बताया कि ये तो साफ है कि बिहार पर गृह मंत्री अमित शाह खास ध्यान दे रहे हैं. अमित शाह के तेवर से ये साफ हो गया है कि पार्टी 2024 लोकसभा के चुनाव की तैयारी कर रही है. अमित शाह ने जिस तरह विपक्ष पर निशाना साधा वो ये साफ बता रहा था कि महाविपक्ष के जुटान को बीजेपी गंभीरता से ले रही है. हो सकता है कि बीजेपी बिहार में भी जेडीयू को भी तोड़ दे.


केन्द्रीय गृह मंत्री ने 27 मिनट के अपने भाषण में 8 बार नीतीश कुमार का नाम लिया. ये इस बात की तरफ इशारा है कि बीजेपी नीतीश पर ध्यान दे रही है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि बीजेपी नीतीश को बीजेपी में लाना चाहेगी, इससे पार्टी को नुकसान के सिवाए नफा नहीं होगा. वो नीतीश की पार्टी को तोड़ना चाह रही है, बीजेपी का मकसद नीतीश की पार्टी को तोड़ कर विपक्षी एकता को कमजोर करना है. 


''महाराष्ट्र की तर्ज बिहार में अपना रही बीजेपी' 


वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी ने बताया कि बीजेपी ने राजनीति के लिए कुछ मॉडल बनाए हैं, जिसमें से एक हिंदू राष्ट्र बनाना है. बीजेपी लोकसभा 2024 से पहले इसी का इस्तेमाल कर रही है. समान नागरिक संहिता इसी का एक उदाहरण है. जिन राज्यों में इस कानून की मुखालफत की जा रही है बीजेपी पहले इन्हीं राज्यों को टारगेट कर रही है. बीजेपी एनसीपी के मॉडल को नष्ट करने के लिए पूरी कोशिश कर रही है. इसी तरह जेडीयू भी बीजेपी के निशाने पर है. लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी बिहार में नीतीश को अप्रसांगिक बनाना चाहती है.


बिहार पर खास ध्यान इसलिए दिया जा रहा है क्योंकि यूपी और बिहार हिंदी पट्टी के दो ऐसे राज्य हैं जहां पर सबसे ज्यादा सीटें हैं. बीजेपी को ये लगता है कि यूपी में बीजेपी पूरी तरह से कामयाब है, लेकिन बिहार में वो खुद को हारा हुआ महसूस कर रही है, और जीतने के लिए सबसे पहले नीतीश को तोड़ना जरूरी है. उसके बाद बीजेपी तेजस्वी यादव पर निशाना साध सकती है. 


ओम सैनी ने बताया कि विपक्षी एकता की कवायद के बीच बिहार में अब तक जेडीयू में टूट होती रही है. करीब दर्जन भर नेता जेडीयू छोड़ कर जा चुके हैं.  इस बीच विपक्षी एकता को सबसे बड़ा झटका महाराष्ट्र में लगा है. बीजेपी पूरी कोशिश कर रही है कि जेडीयू से और लोग भी नीतीश का साथ छोड़ दें. 


वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क का कहना है पिछले करीब 20 साल में ज्यादातर समय तक बिहार में जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन का शासन रहा है. बिहार एकमात्र हिन्दी भाषी राज्य है, जहां बीजेपी कभी अपने दम पर सरकार नहीं बना पाई. बीजेपी जब भी सरकार में रही है, नीतीश कुमार के पीछे खड़ी रही है. चुनावों से पहले बीजेपी लगातार आम लोगों से संपर्क और समर्थन हासिल करने में जुटी है. बीजेपी चुनावों के प्रयोगशाला है वो हर दिन चुनाव की ही तैयारी करती है.


ऐसे में अब बिहार में जिस तरह से विपक्ष को साथ लाने की कवायद शुरू की गई जवाब में बीजेपी भी नए-नए पैंतरे आजमा रही है. बीजेपी ने बिहार में शुरू से ही अपने पुराने नेताओं को तरजीह नहीं दी . हमेशा नीतीश की ‘बी’ टीम बनी रही. अब लोकसभा चुनाव से पहले जिस तरह नीतीश विपक्ष को साथ ला रहे हैं वो कहीं न कहीं बीजेपी को परेशान कर रहे हैं और वो नीतीश की पार्टी को अपना निशाना बनाने की कवायद शुरू कर सकती है.


ओम प्रकाश अश्क का कहना है कि बिहार के मौजूदा राजनीतिक हालात साल 2015 में हुए विधानसभा चुनावों की तरह है. साल 2015 में महागठबंधन ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा था और बीजेपी को बिहार में 53 सीटें ही मिल पाई थी. इन चुनावों में आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस ने ही 243 में से 178 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी. बीजेपी बिहार में महागठबंधन की ताकत से डर रही है.