नई दिल्ली: सोमवार शाम गुजरात की जिस बस पर जम्मू कश्मीर में हमला हुआ, वो 02 जुलाई को बालटाल पहुंची थी. जानकारी के मुताबिक, बस के यात्रियों ने तो अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन करा रखा था, लेकिन बस का रजिस्ट्रेशन नहीं था. यही वजह है कि बस सुरक्षा काफिले से बाहर ही थी.


जानकारी के मुताबिक, 02 तारीख को गुजरात के ये बस बालटाल पहुंची और बस में सवार सभी 58 यात्री बाबा बर्फानी के दर्शन करने के बाद 05 जुलाई को सोनमर्ग और दूसरी जगह पर घूमने गए. तीन दिन यहां पर्यटन करने के बाद 08 जुलाई को बस श्रीनगर पहुंच गई. यहां 02 दिन घूमने फिरने के बाद ये बस 10 जुलाई यानि जिस दिन आतंकी हमला हुआ शाम पांच बजे बस श्रीनगर से जम्मू/कटरा के लिए निकल गई.

लेकिन जैसे ही बस श्रीनगर शहर से बाहर निकली पंपोर में बस का टायर पंचर हो गया. करीब दो घंटे बस का पंचर लगाने में निकल गया. शाम करीब सात बजे बस एक बार फिर हाईवे नंबर 44 से जम्मू की और रवाना हो गई. लेकिन बस अभी करीब 45 किलोमीटर दूर अनंतनाग शहर में दाखिल होने ही वाली थी कि बुटुंग इलाके पर पहले से ही घात लगाकर बैठे आतंकियों ने बस पर हमला बोल दिया.

माना जा रहा है कि आतंकियों की संख्या कम से कम चार (04) थी. क्योंकि हमले के बाद पुलिस को मौका ए हमले से 100 से ज्यादा राउंड गोलियों की खोल मिले. एक एके47 राइफल की मैगजीन में 30 गोलियां आती हैं. मौके से दो मिसफायर ग्रेनेड भी मिले. इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि आतंकियों ने यूबीजीएल का इस्तेमाल किया होगा. लेकिन वो काम नहीं किया. अगर ये बस ग्रेनेड बस को हिट करता तो ये बस को काफी नुकसान करता और मरने वालों की संख्या कहीं ज्यादा हो सकती थी.

इस दौरान बस के ड्राइवर सलीम ने सूझबूझ दिखाई और बस को गोलियों की बौछार के बीच भगाकर करीब 500 मीटर दूर डीआईजी ऑफिस ले गया. इकनी देर में पास में ही सीआरपीएफ कैंप के अधिकारी और जवानों की क्यूआरटी गोलियों की आवाज सुनकर वहां पहुंच गई. डीआईजी दफ्तर में मौजूद जवान भी बस पर पहुंच गए.

इस क्यूआरटी में तैनात सीआरपीएफ के अधिकारी ने एबीपी न्यूज को बताया (ऑफ-कैमरा) कि जब वो बस में पहुंचा तो देखा कि दो लोग दम तोड़ चुके हैं और करीब डेढ दर्जन यात्री घायल हैं. तुरंत घायलों को और बस को अनंतनाग डिस्ट्रिक पुलिस लाइन ले जाया गया. वहां से यात्रियों को अस्पताल ले जाया गया.

आईये अब आपको बता दें कि आखिर इस बस के साथ सीआरपीएफ और जम्मू कश्मीर पुलिस का घेरा क्यों नहीं था?

दरअसल, इस बस का रजिस्ट्रेशन नहीं था हालांकि यात्री रजिस्ट्रेड थे. क्योंकि बस रजिस्ट्रटेड नहीं थी इसलिए ये सुरक्षा घेरे में नहीं थी. जो बस श्राइन बोर्ड पर रजिस्ट्रेड होती हैं वहीं बस काफिले के साथ चलती है़ बाकी एक-दुक्का चलती है. लेकिन उन्हें भी दिशा निर्देश दिए जाते हैं कि वे दिन ढलने के बाद हाईवे पर ना चलें. लेकिन क्योंकि इस बस में पंचर हो गया था इसलिए ये बस शाम को हाईवे पर चल रही थी. जिसका फायदा आतंकियों ने लिया और हमला कर दिया.

सीआरपीएफ के मुताबिक, अमरनाथ यात्रा के श्रद्धालुओं की सुरक्षा का पूरा प्रोटोकॉल होता है. सीआरपीएफ के कमांडेंट रजनीश अहलावत ने एबीपी न्यूज से खास बाचतीत में बताया कि श्राइन बोर्ड पर रजिस्ट्रेड सभी बसों को सुरक्षा घेरा दिया जाता है. बस के काफिले के आगे-पीछे सीआरपीएफ और जम्मू कश्मीर पुलिस के एस्कॉर्ट गाडियां चलती हैं. साथ ही सुरक्षाबल आरओपी यानि रोड ऑपनिंग पार्टी का घेरा सड़क और हाईवे पर होता है. सुबह छह बजे से ही आरओपी के लिए जवान चप्पे चप्पे पर तैनात किए जाते हैं. खास तौर से हाईवे से सटे संवेदनशील इलाके और वो रास्ते और गलियों पर जो हाईवे को कनेक्ट करते हैं.

शाम सात बजे सभी आरओपी हट जाती हैं और फिर रातभर हाईवे पर ढाई ढाई किलोमीटर के फासले पर सुरक्षाबल अपनी बख्तरबंद गाड़ियों से पैट्रोलिंग करते हैं. हाईवे से सटे हिंटरलैंट और रिहाइशी इलाकों की सिक्योरिटी-ग्रिड की जिम्मेदारी सेना की होती है. जिम्मेदारी ये कि कोई आतंकी इन इलाकों से निकलकर हाईवे पर ना आ जाए.

सोमवार को हमले के बाद भी श्रद्धालुओं के जोशखरोश में कोई कमी नहीं आई है. अमरनाथ यात्रा जारी है. मंगलवार को 3289 यात्री बाबा बर्फानी के दर्शन को लिए निकले. ये सभी 105 गाड़ियों में जम्मू से निकले. दो रास्ते हैं अमरनाथ जाने के. एक है अनंतनाग से श्रीनगर और सोनमर्ग होते हुए बालटाल. दूसरा है अनंतनाग से पहलगाम होते हुए. इस रूट पर यात्रियों को काफी लंबा पैदल या फिर घोड़े खच्चर पर जाना पड़ता है.

एबीपी न्यूज एक ऐसी ही दो बसों में सवार हुआ. एक बस बाबा बर्फानी के दर्शन के बाद बालटाल से लौट रही थी और दूसरी जो पहलहाग को रास्ते जा रही थी अमरनाथ गुफा के लिए. यात्रियों ने कहा कि उन्हें सेना और सैनिकों पर पूरा भरोसा है कि उन्हें यात्रा के दौरान कुछ नहीं होगा.

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