मराठाओं की धरती महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मुद्दा भड़का हुआ है. जालना में एक सितंबर को भड़की हिंसा के बाद राजनीति गरमाई हुई है. मराठाओं के लिए नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग करने वाले हजारों प्रदर्शनकारियों पर पुलिस के लाठीचार्ज के बाद हिंसा भड़की थी. जिसके बाद हिंसा बड़े पैमाने पर जुलूस, प्रदर्शन और बंद के रूप में महाराष्ट्र के कई जिलों में फैल गई.


मराठाओं के आंदोलन ने राज्य सरकार की मुसीबतों को बढ़ा दिया है. आंदोलन पर आश्वसनों को लागू करने के लिए मराठा आंदोलनकारियों ने राज्य सरकार को अल्टीमेटम दे रखा है. मनोज जारंगे अब इस मुद्दे पर पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. बल्कि आंदोलन तेज करने की धमकी दे रहे हैं.


कब और क्यों भड़की हिंसा?


29 अगस्त को मराठाओं के लिए नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग को लेकर हजारों प्रदर्शनकारी जालना जिले के अंतरवली सारथी गांव में इकट्ठा हुए थे. यहां मराठा मोर्चा के संयोजक और आंदोलन का नेतृत्व कर रहे मनोज जारांगे भूख हड़ताल पर बैठे थे. जब जारांगे की हालत बिगड़ने लगी तो पुलिस ने उनको भूख हड़ताल खत्म कर अस्पताल में भर्ती होने के लिए मजबूर किया. इसको लेकर आंदोलनकारी नाराज हो गए और प्रदर्शन करने लगे.


हालात इतने खराब हो गए कि भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस का सहारा लेना पड़ा. बाद में प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया और वाहनों को आगे के हवाले कर दिया. जालना में हुई इस घटना के बाद सोलापुर, औरंगाबाद और नागपुर समेत महाराष्ट्र के कई शहरों में मराठा समुदाय के लोग धरने पर बैठ गए.


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मराठा आरक्षण की लड़ाई क्या है?


दरअसल राज्य में मराठा आरक्षण की लड़ाई लंबे समय से लड़ी जा रही है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार ने इस ओर कोई कदम नहीं उठाया. राज्य सरकार तो मराठाओं को फिर से आरक्षण देने की पूरी कोशिश में हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा की जो दीवार खड़ी कर रखी है, उसे भेद पाना बेहद मुश्किल है.


साल 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने कानून बनाकर मराठा समुदाय को 13% आरक्षण दिया था, मगर मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने मराठा आरक्षण पर रोक लगा दी और कहा कि आरक्षण को लेकर 50 फीसदी की सीमा को नहीं तोड़ा जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने साल 1992 में आरक्षण की सीमा को अधिकतम 50 फीसदी तक सीमित कर दिया था.


आखिर मराठा आरक्षण क्यों मांग रहे हैं?


मराठा समुदाय के लोगों की मांग है कि हमें नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण दिया जाए, जैसे पिछड़ी जातियों को मिला हुआ है. मराठाओं का दावा है कि समुदाय में एक छोटा तबका है तो समाज में ऊंची पैठ रखता है, लेकिन समुदाय के बाकी लोग गरीबी में जी रहे हैं. जबकि सुप्रीम कोर्ट इस बात से इनकार कर चुका है कि मराठा समुदाय पिछड़ा हुआ है.


सु्प्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि मराठाओं को आरक्षण लागू करने की जरूरत नहीं है. संविधान के आर्टिकल 16 के तहत अन्य पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया गया है. यानि उन लोगों के लिए सीटें आरक्षित रखी गई हैं, जो सामाजिक और शैक्षिक स्तर पर पिछड़ी हुई हैं.


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मराठों की आर्थिक स्थिति क्या है?


मराठा समुदाय राज्य की कुल आबादी का करीब 30 फीसदी है. सामाजिक और आर्थिक दोनों रूप से ये समुदाय काफी पिछड़ा हुआ है. खासकर उच्च शिक्षा संस्थानों में मराठा समुदाय का अधिक प्रतिनिधित्व नहीं है. नौकरियों और उद्योग के क्षेत्र में भी मराठा समुदाय का यही हाल है. यहां भी प्रतिनिधित्व काफी कम है. हालांकि मराठाओं का एक तबका ऐसा भी है जो आर्थिक रूप से संपन्न है. इन लोगों के पास जमीन और राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण है.


साल 2018 में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (SBCC) की एक रिपोर्ट बताती है कि महाराष्ट्र में करीब 37.28 फीसदी मराठा गरीबी रेखा (BPL) से नीचे रह रहे हैं. इस समुदाय के 76.86 फीसदी परिवार कृषि और कृषि श्रम पर निर्भर हैं. बड़ी बात यह है कि रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013 से 2018 तक 23.56 फीसदी यानि करीब 2152 मराठा समुदाय के किसानों ने आत्महत्या की. आत्महत्या का मुख्य कारण कर्ज और फसल की बर्बादी थी.


ताजा आंदोलन का नेता कौन?


मराठा आरक्षण की मांग को लेकर ताजा आंदोलन मराठा मोर्चा के संयोजक मनोज जारांगे के नेतृत्व में चल रहा है. जारांगे ने सरकार को प्रस्ताव दिया है कि सरकार को मराठों को कुनबी समुदाय में शामिल कर देना चाहिए, जो ओबीसी कोटा में आता है. मनोज जारांगे पाटिल पिछले करीब 13 सालों से मराठा आरक्षण को लेकर काम कर रहे हैं. वह एक समाजसेवी हैं. जारांगे बीड के मटोरी के रहने वाले हैं, लेकिन अब जालना के अंकुशनगर में रहते हैं. कहा जाता है कि मराठा आंदोलन के लिए उन्होंने अपनी जमीन भी बेच दी. 


आरक्षण की मांग को लेकर सरकार की नाक में नकेल कसने के लिए जारांगे ने मार्च निकाले, आमरण अनशन किया, सड़क जाम की. वह साल 2011 से  मराठा आरक्षण आंदोलन में सक्रिय हैं. मनोज शुरुआत में कांग्रेस से जुड़े, लेकिन बाद में उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर अपना शिवबा संगठन बनाया. मनोज के परिवार में पत्नी, चार बच्चे, तीन भाई और माता-पिता हैं.



किन किन बड़े नेताओं का साथ मिला?


ताजा घटनाक्रम के बाद मराठा आंदोलनकारियों को विपक्षी दलों का बखूबी साथ मिल रहा है. हालांकि सरकार को भी उनके आंदोलन से कोई दिक्कत नहीं है. हिंसा के बाद से मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और अन्य लोगों के सरकारी प्रतिनिधिमंडल ने कम से कम पांच मौकों पर जारांगे से मुलाकात की है और उन्हें अपनी भूख हड़ताल वापस लेने के लिए मनाने की कोशिश की है, लेकिन जारांगे टस से मस होने के लिए तैयार नहीं हैं. 


विपक्षी दलों की बात करें तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के अध्यक्ष शरद पवार, शिवसेना-UBT के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे, कांग्रेस के अशोक चव्हाण, परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के अध्यक्ष राज ठाकरे, वंचित बहुजन अघाड़ी के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर, छत्रपति के वंशज छत्रपति संभाजीराजे भोसले और छत्रपति उदयनराजे भोसले और अन्य लोग आंदोलनकारियों के साथ एकजुटता प्रकट करने के लिए वहां पहुंचते रहे हैं.