Supreme Court On Encroachments: सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को देश भर में सार्वजनिक भूमि पर हुए अतिक्रमण को लेकर चिंता व्यक्त की और कहा कि यह एक ‘दुखद कहानी’ है जो पिछले 75 वर्षों से जारी है जिससे प्रमुख शहर ‘झुग्गी बस्तियों में बदल गए हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सुनिश्चित करने की प्राथमिक जिम्मेदारी स्थानीय प्राधिकार की है कि किसी भी संपत्ति पर अतिक्रमण न हो, चाहे वह निजी हो या सरकारी और इससे निपटने के लिए उन्हें खुद को सक्रिय करना होगा.


न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा, ‘‘यह समय है कि स्थानीय सरकार जग जाए क्योंकि एक अतिक्रमण हटा दिया जाता है, दूसरी जगह वही अतिक्रमण स्थानांतरित हो जाता है तथा ऐसे व्यक्ति भी होंगे जो इसमें हेरफेर कर रहे हैं और वे पुनर्वास का लाभ भी उठा रहे होंगे. यह इस देश की दुखद कहानी है. यह अंततः करदाताओं का पैसा है जो बर्बाद हो जाता है.’’


सार्वजनिक भूमि पर हर जगह हो रहा है अतिक्रमण


शीर्ष अदालत दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें गुजरात और हरियाणा राज्यों में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने से संबंधित मुद्दों को उठाया गया है. पीठ ने कहा कि सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण हर जगह हो रहा है और समस्या का समाधान करना होगा. पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, सभी प्रमुख शहर झुग्गी बस्तियों में बदल गए हैं. किसी भी शहर को देखें, अपवाद हो सकता है जिसे हम नहीं जानते हैं. चंडीगढ़ कहा जाता है, अपवाद है लेकिन फिर भी चंडीगढ़ में भी मुद्दे हैं.’’


रेलवे की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने पीठ से कहा कि प्राधिकार इस संबंध में देश भर में कार्रवाई करेगा. शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘यह हर जगह हो रहा है. हमें वास्तविकता का सामना करना होगा. समस्या को हल करना होगा और इसे कैसे हल करना है, संबंधित सरकार को यह जिम्मेदारी लेनी होगी.’’


सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण की जिम्मेदारी स्थानीय सरकार की


पीठ ने कहा, ‘‘यह सुनिश्चित करने की प्राथमिक जिम्मेदारी स्थानीय सरकार की है कि किसी भी संपत्ति, निजी या सरकारी अथवा सार्वजनिक संपत्ति पर कोई अतिक्रमण न हो. यह पिछले 75 वर्षों से जारी एक दुखद कहानी है.’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि रेलवे यह सुनिश्चित करने के लिए ‘समान रूप से जिम्मेदार’ है कि उसकी संपत्तियों पर कोई अतिक्रमण नहीं हो और इस मुद्दे को उसके संज्ञान में लाए जाने के तुरंत बाद उसे अनधिकृत कब्जाधारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करनी चाहिए.


पीठ ने यह भी रेखांकित किया कि गुजरात में सूरत-उधना से जलगांव रेलवे लाइन परियोजना अभी भी अधूरी है क्योंकि रेलवे संपत्ति पर 2.65 किलोमीटर की सीमा तक अनाधिकृत ढांचे खड़े हैं. 


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