साल 1570 में बादशाह अकबर ने पंजाब के पाटन शहर से आगरा लौटते हुए कई स्थानों की यात्रा की. इस दौरान वे दीपालपुर और लाहौर में स्थानीय हाक़िमों के आतिथ्य में ठहरे. अकबर ने यहां दो-तीन दिन रुककर दावतों का आनंद लिया और फिर हिसार होते हुए अजमेर पहुंचे. अजमेर में उन्होंने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर कुछ दिन बिताए और आगे सीकरी की ओर बढ़े.
Glimpse of Indian History किताब के मुताबिक, सीकरी पहुंचने के बाद अकबर शेख सलीम चिश्ती के घर ठहरे. यह उस समय का अनोखा उदाहरण था, जब एक सम्राट किसी संत के मकान को अपना निवास बना ले. अबुल फजल के अनुसार, अकबर के पुत्रों का जन्म सीकरी में हुआ, जिससे उन्हें यह जगह और अधिक प्रिय लगने लगी. बादशाह ने आदेश दिया कि सीकरी को शाही वैभव से सजाया जाए. परिणामस्वरूप यहां भव्य महल, पत्थर की चारदीवारी, स्कूल, स्नानागार और बाजार का निर्माण हुआ. कुछ ही वर्षों में सीकरी एक संपन्न नगर बन गया, जो फतेहपुर सीकरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
अकबर ने जीवन का अधिकांश समय कहां बिताया?
इन वर्षों में अकबर ने जीवन का अधिकांश समय शिकार, दावतों और दरबारियों के बीच बिताया. चौपड़ खेलने की आदत ने उन्हें हरम की महिलाओं और दरबारियों के साथ लंबे समय तक व्यस्त रखा. कभी-कभी दरबारियों की उद्दंडता उन्हें सख्त कार्रवाई के लिए विवश कर देती थी. 1572 में गुजरात में मिर्जाओं की बगावत और काबुल के शासक मिर्जा हकीम की गतिविधियों ने अकबर को चिंतित किया. उन्होंने नगरकोट और काबुल की ओर सेनाएं रवाना कीं और स्वयं गुजरात अभियान की तैयारी की.
अकबर के शासनकाल में कब आया नया मोड़
इसी बीच अजमेर में अकबर के हरम की एक बेगम ने सितंबर 1572 में पुत्र को जन्म दिया. इस बच्चे का नाम दानियाल रखा गया. बादशाह ने आदेश दिया कि एक महीने बाद दानियाल को पालन-पोषण के लिए आमेर के राजा भारमल को सौंपा जाए.
फतेहपुर सीकरी की स्थापना और दानियाल के जन्म ने अकबर के शासनकाल को एक नया मोड़ दिया. जहां एक ओर उन्होंने अपनी राजधानी को भव्य स्वरूप दिया, वहीं दूसरी ओर गुजरात और काबुल की चुनौतियों का सामना करने के लिए सैन्य तैयारियां भी कीं.
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