2 मई से 4 मई का दिन महाराष्ट्र की राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के लिए काफी सस्पेंस भरा रहा. 2 मई को शरद पवार ने एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे का ऐलान किया और 5 मई की शाम को अपने उसी ऐलान को वापस ले लिया. लेकिन सियासी हलकों में अब ये माना जा रहा है कि ऐसा करके शरद पवार ने एक तीर से कई निशाने लगा दिए हैं. 


दरअसल 2 मई को दक्षिण मुंबई के यशवंतराव चव्हाण प्रतिष्ठान में शरद पवार ने अपने राजनीतिक आत्मकथा का लोकार्पण किया. इस आत्मकथा में उन्होंने कांग्रेस और शिवसेना के खिलाफ कई तीखी टिप्पणियां की हैं. इससे पहले की उनकी लेखनी किसी तरह का हड़कंप मचा पाती शरद पवार ने कार्यक्रम में ही साल 1999 में स्वयं स्थापित अपनी पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ने का ऐलान कर सबको चौंका दिया.


उसी कार्यक्रम में शरद पवार ने ये भी ऐलान किया कि अगला एनसीपी अध्यक्ष तय करने के लिए एक वरिष्ठ नेताओं की कमेटी बनाई जाएगी और यही कमेटी अगले अध्यक्ष का नाम तय करेगी. इस ऐलान के बाद कुल पांच नामों की चर्चा होने लगी, जिसमें से कोई एक एनसीपी का अगला अध्यक्ष हो सकते थे. 


कौन थे ये पांच नाम


सुप्रिया सुले: शरद पवार के इस्तीफे के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा चलने लगी कि उनकी बेटी सुप्रिया सुले को एनसीपी का नया अध्यक्ष बनाया जा सकता है क्योंकि वो राष्ट्रीय राजनीति करती आई हैं. 


अजित पवार: सुप्रिया के बाद अजित पवार का नाम भी सामने आने लगा. कई लोगों का मानना था कि अजीत एनसीपी के अगले अध्यक्ष बनाए जा सकते थे क्योंकि उनकी इस पार्टी पर अच्छी पकड़ है. कई सारे विधायक भी अजित पवार के साथ है. 


प्रफुल्ल पटेल: एक वर्ग का तो ये भी मानना था कि अगला अध्यक्ष पवार खानदान से कोई नहीं होगा. इसके बाद प्रफुल्ल पटेल के अध्यक्ष बनने की खबर सामने आने लगी. हालांकि प्रफुल्ल पटेल ने साफ शब्दों में यह कह दिया है कि उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद की लालसा नहीं है. 


जयंत पाटिल और दिलीप वाल्से-पाटिल: प्रफुल्ल पटेल के अलावा और दो नाम और चर्चा में थे. जिसमें से एक शरद पवार के खास जयंत पाटिल का नाम था और दूसरा दिलीप वाल्से-पाटिल, दिलीप भी शरद पवार के काफी करीबी माने जाते हैं. 


शरद पवार ने किया फैसला वापस लेने का ऐलान  


इस बीच एनसीपी के कार्यकर्ताओं ने जगह जगह शरद के इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन करना शुरू कर दिया. जिस वक्त शरद पवार इस्तीफे का ऐलान कर रहे थे उस वक्त ही अजीत पवार को छोड़कर बाकी वरिष्ठ नेताओं ने मंच पर उनसे गुजारिश की थी कि वह अपना फैसला वापस ले लें.


इसके अलावा राज्य भर के कार्यकर्ताओं ने इस फैसले के खिलाफ जगह जगह पर अनशन करना शुरू किया. यहां तक कि कुछ लोगों ने अपने खून तक से उन्हें खत लिखकर भेजना शुरू किया ताकि शरद पवार अपना फैसला वापस ले सकें. 


शरद पवार की पार्टी के लोगों ने तो उन पर अपने ऐलान को वापस लेने का दबाव बनाया ही थी. पार्टी के बाहर से भी उन पर दबाव बनाया गया और उनके पास अलग अलग पार्टियों के नेताओं के फोन आने लगे. यहां तक की कांग्रेस, डीएमके के साथ कई क्षेत्रीय पार्टियों के तरफ से भी शरद पवार को फोन किए गए कि वे अपने फैसले पर पुनर्विचार करें. 


जिसके बाद 5 मई की सुबह एनसीपी दफ्तर में शरद पवार ने दो कमेटी बनाई थी उसकी बैठक हुई और उस बैठक में ये प्रस्ताव पारित किया गया कि शरद पवार ने जो अपना इस्तीफा दिया है उसको ये कमेटी खारिज करती है और शरद पवार से गुजारिश करती है कि वे एनसीपी अध्यक्ष के पद पर बने रहें. 


कमेटी के इस फैसले के बाद शरद पवार ने कुछ घंटो का वक्त मांगा. जिसके बाद शाम को करीब पांच बजे उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए लोगों को सूचना दी कि उन्होंने अपना ये इस्तीफे का फैसला वापस ले लिया है और अब वही एनसीपी के अध्यक्ष रहेंगे.  


इस्तीफा देकर एक तीर से लगाए कई निशाने


1. सियासी जानकारों की मानें तो पहले इस्तीफा देकर उसके बाद उसे वापस लेकर शरद पवार ने एक तीर से कई निशाने लगाए हैं. एक तो उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम के जरिए ये परखने की कोशिश की कि उनकी नेतृत्व पार्टी में कितने पानी में है. और दूसरा उन्होंने पार्टी में अपनी स्थिति को और मजबूत कर लिया है. 


2. शरद के इस्तीफे के ऐलान के बाद से जिस तरह के लोग भावुक हुए और उनके पास आए. जिस तरह से तमाम नेताओं ने उनके प्रति अपना समर्थन दिखाया, इससे पार्टी में जो छोटे छोटे गुट बन रहे थे वह एक बार फिर एकजुट हो गए. 


3. शरद पवार ने अजित पवार की बगावत को शांत कर दिया है, जिनको लेकर खबरें आ रही थीं कि वे बीजेपी के साथ नजदीकी बढ़ा रहे हैं. 


4. शरद पवार ने इस्तीफा वापस लेने के फैसले से पार्टी में अपने उत्तराधिकारी को लेकर चल रही लड़ाई पर भी विराम लगा दिया है, जो उनके भतीजे अजित पवार और सुप्रिया सुले के बीच चल रही थी. 


5. महाविकास अघाड़ी गठबंधन के नेता के तौर पर बढ़ रही उद्धव ठाकरे की लोकप्रियता को भी शरद पवार ने थाम लिया है. अब इन सबके सहारे शरद पवार एक बार फिर महाराष्ट्र के सबसे बड़े सियासी नेता के तौर पर सामने आए हैं.


अजीत के बगावत की निकाली हवा


सियासी हलकों में सबसे अहम इस बात को माना जा रहा है कि शरद पवार ने अपने दोनों फैसले से अजित पवार से कथित तौर पर फिर से बगावत की कोशिश की हवा निकाल दी है. दरअसल पिछले कुछ दिनों से ये बात चल रही थी कि अजित पवार बीजेपी से संपर्क में हैं और पार्टी को तोड़कर बीजेपी के साथ जा सकते हैं. हाल फिलहाल में अजीत पवार ने कुछ ऐसे बयान भी दिए थे जिसमें उन्होंने बीजेपी और पीएम मोदी की तारीफ की थी.


इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबरों के मुताबिक बीजेपी ने अतीज पवार को अगला सीएम बनाने की तैयारी पूरी कर दी थी. खबर है कि सुप्रीम कोर्ट में सत्ता संघर्ष का फैसला होने के बाद संभव है कि एकनाथ शिंदे का सीएम पद चला जाए. ऐसे में बीजेपी अजित पवार को सीएम बनाने की तैयारी कर रही थी.


इसके अलावा हाल ही में पीएम के शिक्षा डिग्री और अडाणी के मुद्दे के दौरान भी अजित पवार ने प्रधानमंत्री और बीजेपी का समर्थन करते हुए बयान दिया था. हालांकि उस वक्त पीएम के समर्थन में शरद पवार भी उतरे थे लेकिन शक के दायरे में अजीत पवार ही थे. उनपर बार-बार ये शक जताया जा रहा था कि वह आने वाले समय में कुछ राजनीतिक खेल कर सकते हैं. लेकिन शरद पवार के इस्तीफा देकर उसे वापस लेने का जो घटनाक्रम हुआ, उसमें शरद के समर्थन में खड़े नेताओं ने अजीत पवार की हवा निकाल दी.


पहले भी पार्टी से बगावत करने की कोशिश कर चुके हैं अजीत


अजित पवार की महत्वकांक्षाओं में सबसे बड़ा रोड़ा शरद पवार ही हैं. उन्होंने कई बार अजित पवार की उठती गर्दन को नीचे दबाने का काम किया है. साल 2019 में जब देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर अजित पवार ने सरकार बनाने का प्लान बनाया था तो उस वक्त भी शरद पवार ने उस प्लान को तीन दिन में फेल कर दिया था. पवार के एक इशारे पर विधायक एकजुट हो गए और अजित पवार गिने-चुने विधायकों के साथ खड़े रह गए. 


शरद पवार के इस्तीफे पर खुश थे अजीत 


शरद पवार ने जब इस्तीफे का एलान किया था उस वक्त पूरी एनसीपी में खलबली मच गई. लेकिन अजित पवार अकेले ऐसे शख्स थे जो इस फैसले से खुश थे. अजित पवार ने साफ तौर पर कहा कि ये फैसला कभी न कभी लिया जाना था और इसे सभी को स्वीकार करना चाहिए. 


शरद के इस्तीफे के बाद जब पार्टी के अन्य नेता भावुक होकर उन्हें अपना ये फैसला वापस लेने के लिए जोर दे रहे थे उस वक्त भी पवार ने कहा था, 'आगे जिसे भी जिम्मेदारी दी जाएगी वो पवार साहेब के मार्गदर्शन में ही काम करेगा. इसलिए आप बार-बार फैसला वापस लेने की बात न करें. पवार साहेब ने अब फैसला ले लिया है, सभी को उसका सम्मान करना चाहिए." 


कार्यकारी अध्यक्ष से तय होगी अजीत की भूमिका 


अब जब ये तय हो चुका है शरद पवार ही एनसीपी के अध्यक्ष होंगे तो सारा मामला इस बात पर केंद्रित हो गया है कि पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष पद पर अगली दावेदारी किसकी है. शरद पवार चाहते हैं कि उनकी बेटी सुप्रिया सुले कार्यकारी अध्यक्ष बने. लेकिन दूसरी तरह छगन भुजबल जैसे नेता अजित पवार का समर्थन कर रहे हैं. 


1999 में एनसीपी का किया गठन


साल 1998 के मध्यावधि लोकसभा चुनाव के बाद शरद पवार विपक्ष के नेता चुने गए थे, लेकिन साल 1999 में जब 12वीं लोकसभा भंग हुई तो शरद पवार, पी ए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस छोड़ दिया और बाद में नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का गठन किया. 


एनसीपी का गठन 10 जून 1999 को किया गया था. उस वक्त सोनिया गांधी ने राजनीति में कदम ही रखा था और उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की तैयारी शुरू कर दी गई थी. शरद पवार सहित कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया.  इसके बाद, कांग्रेस ने पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया और तीनों नेताओं ने मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) बनाई. एनसीपी के अध्यक्ष पवार चुने गए. पीए संगमा और तारिक अनवर पार्टी महासचिव बनाए गए.