Afghanistan Crisis: महज 12 साल की उमर में अमृत अपने माता-पिता के साथ अफगानिस्तान से भाग के भारत आई. तालिबान का खौफ उसकी आंखों में देखा जा सकता है. बेफिक्र हो कर स्कूल जाने और दोस्तों के साथ खेलने की उम्र में उसे ये खौफ सता रहा है कि अभी भी जो रिश्ते के उसके छोटे-भाई बहन अफगानिस्तान में फंसे हैं, उनका क्या होगा. वो किसी तरह से अपने छोटे भाई-बहनो के साथ भारत पहुंची. लेकिन एयरपोर्ट से यहां तक आने का सफर उसके लिए आसान नहीं था. नम आंखों से वो मंजर याद करके कहती हैं कि एयरपोर्ट पर भीड़ के बीच बड़ी मुश्किलों से फ्लाइट तक पहुंची, जिसके बाद पिछले 14 दिन से वो क्वारंटीन थी.


अमृत की मां का ये कहना था कि सबसे ज्यादा डर तालिबान से उनकी बेटियों के लिए था और बेटियों की आबरू बचाने के लिए वो अपना सब कुछ छोड़कर, अपना वतन छोड़कर यहां आ गए. वो कहती हैं कि बम ब्लास्ट हमेशा से होते आएं हैं. खतरा हमेशा रहा लेकिन अब उनकी बेटियों के जीवन का सवाल था, जिसके चलते उनके पास कोई भी चारा नहीं रहा. रणजीत सिंह ने जब अपनी बेटी को 24 साल बाद देखा तो दोनों गले मिल के रो दिए. पिछले 24 सालों से उनकी बेटी हिंदुस्तान में अकेली रह रही थी. ना जाने कितने परिवारों की जमा पूंजी तालिबान के खौफ में पीछे छुट गई और ये परिवार तालिबान से बचते बचाते दो हफ्ते पहले भारत लौटे.


इसी तरह जजवीर सिंह भी महज दो कपड़ों के साथ अपना सबकुछ छोड़कर यहां आ गए. उनका कहना है कि अफगानिस्तान में हालात बहुत खराब हैं. नम आंखों से वो बतातें हैं कि दिन-रात दर-दर भटकने के बाद वो यहां तक पहुंचे लेकिन अब आगे का क्या होगा, इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं है. अपने परिवार का पेट पालने अफगानिस्तान गए हरप्रीत की कहानी भी कुछ यूं ही है. परिवार हिंदुस्तान में था. दो वक्त की रोटी के लिए वो अफगानिस्तान गए तो तालिबान के कब्जे के बाद परिवार की नींदे उड़ गईं. जैसे-तैसे वो सब छोड़-छाड़ के काबूल से दिल्ली वापस लौटे.


घर जाने की मिली इजाजत


ना जाने ऐसे कितने परिवार हैं जिसने अपना सब कुछ खो दिया. तालिबान से बचकर अफगानिस्तान से भारत आए लोगों को आज आईटीबीपी छावला के क्वारंटीन सेंटर से सभी औपचारिकताओं के बाद अपने-अपने घर जाने की मंजूरी मिल गई. इन लोगों में अफगानी सिख समुदाय के 44 लोगों को दिल्ली सिख गुरुद्वारा कमिटी की तरफ से मिली मदद के चलते उनके रहने और खाने पीने का इंतजाम न्यू मावीर नगर के गुरुद्वारा देव जी काबुली में करवाया गया.


दरअसल, अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद डर और दहशत का माहौल था. एयरपोर्ट के वो मंजर कोई नहीं भुला सकता, जिसमें लोग अफगानिस्तान से निकलने की होड़ में थे. उन्हीं लोगों में से कई भारतीय होने के साथ अफगानी सिखों और हिंदू परिवारों को भारत सरकार ने निकाला. इनमें से शुरुआती दौर में वापस लौटे लगभग 78 लोगों को अफगानिस्तान से निकालकर छावला के आईटीबीपी कैंप में रखा गया था.


कोविड के प्रोटोकॉल के तहत उन्हें 14 दिन के लिए क्वारंटीन किया गया. ये क्वारंटीन आज खत्म हुआ, जिसके बाद भारतीय नागरिक अपने-अपने घर चले गए. वहीं लगभग 44 अफगानी सिखों को दिल्ली गुरुद्वारा कमिटी ने उन्हें न्यू मावीर नगर के गुरुद्वारा गुरु अर्जन देव काबुली में रूकने का इंतजाम किया है. वहीं इस दौरान आईटीबीपी कैंप में क्वारंटीन के सभी इंतजाम थे. लोगों को खाने-पीने के अलावा मनोरंजन, इनडोर गेम्स, वाई-फाई और कैंटीन आदि की सुविधा उपलब्ध कराई गईं.



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