लद्दाख: गलवान घाटी में हुई हिंसा के बाद एलएसी पर रूल ऑफ इंगेजमेंट अब बदल चुके हैं. यानि जिस लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल पर पिछले 45 साल में कभी फायरिंग नहीं हुई थी अब वहां पिछले एक महीने में चार बार फायरिंग की अलग अलग घटनाएं सामने आ चुकी हैं. यही वजह है कि पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर आईटीबीपी के जवानों को फायरिंग की ड्रिल सीखाई जा रही है. एबीपी न्यूज की टीम भी आईटीबीपी के एक ऐसे ही फॉरवर्ड ट्रैनिंग कैंप पहुंची जहां से जवानों को एलएसी पर कूच करने की तैयारी की जा रही थी.


पूर्वी लद्दाख में इंडो तिब्बत बॉर्डर पुलिस यानि आईटीबीपी के एक फॉरवर्ड ट्रैनिंग कैंप में एबीपी न्यूज की टीम पहुंची तो पाया कि वहां पर जवान एलएसी पर जाने की तैयारी कर रहे हैं. लेकिन उससे पहले उन्हें फिट बनाया जा रहा था और एलएसी पर चीनी सैनिकों को परास्त करने की फाइनल ट्रैनिंग दी जा रही थी. क्योंकि इसके बाद पूर्वी लद्दाख से सटी 826 किलोमीटर लंबी एलएसी पर ट्रेनिंग नहीं चीनी सैनिकों से सीधे दो-दो हाथ होने की नौबत आ सकती है.


यही वजह है कि आईटीबीपी के उस्ताद (इंस्ट्रेक्टर) जवानों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग दे रहे थे. ये अनआर्म्ड कॉम्बेट यानि बिना हथियारों के लड़ने की तैयारी थी. क्योंकि एलएसी पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच कभी फायरिंग नहीं होती थी, इसलिए जवानों को बिना हथियारों के लड़ना सीखाया जाता है. मार्शल आर्ट आईटीबीपी के हर जवान की ट्रेनिंग का हिस्सा है. इसके लिए मसूरी स्थित आईटीबीपी एकेडमी में इसकी ट्रेनिंग दी जाती है, लेकिन जब जवान पूर्वी लद्दाख में तैनाती के लिए आते हैं, तो इस फॉरवर्ड ट्रेनिंग कैंप में एक बार फिर जूडो कराटे और दूसरे मार्शल आर्ट्स की ट्रैनिंग दी जाती है.



आपको बता दें कि वर्ष 2017 में फिंगर एरिया का विवाद हो या फिर गलवान घाटी की हिंसा, वहां भारत और चीन के सैनिकों के बीच बिना हथियारों के ही लड़ाई हुई थी, इसीलिए आईटीबीपी के जवानों को अन-आर्मड कॉम्बेट की तैयारी जरूर कराई जाती है.


लेकिन गलवान घाटी की हिंसा और पिछले एक महीने में एलएसी पर फायरिंग की चार घटनाओं ने भारत को चीन के खिलाफ रूल्स ऑफ इंगेजमेंट बदलने पर मजबूर कर दिया है. अब भारतीय सैनिकों को एलएसी पर हथियार इस्तेमाल करने की पूरी छूट दे दी गई है. इसीलिए आईटीबीपी के इस फॉरवर्ड ट्रैनिंग कैंप में आईटीबीपी के जवानों को फायरिंग की ड्रिल सीखाई जा रही है. जवानों के हाथों में स्वदेशी इंसास राइफल है और सामने दुश्मन का कट-आउट. कट-आउट को देखकर जवानों को गोली चलाना सीखाया जा रहा है. यानि एक गोली एक दुश्मन के सिद्धांत के तहत राइफल से गोली निकले तो वो दुश्मन का सीना छलनी जरूर करके लौटे.


यही नहीं जवानों को दुश्मन पर धावा बोलने की ड्रील भी सीखाई जा रही है. इ‌सके लिए दुश्मन की चौकी या पोस्ट के करीब स्मोक यानि धुआं कर दुश्मन को चकमा देकर उसपर हमला बोला जाता है.