13 दिसंबर यूं तो एक आम सी तारीख है. लेकिन इतिहास के पन्नों में ये तारीख अपनी एक गहरी छाप छोड़े हुए है क्योंकि इसी दिन 2001 में भारत की संसद पर आतंकी हमला हुआ था. हमले में 9 लोग शहीद हुए थे. जवाबी कार्रवाई में लश्कर ए तैयबा के 5 आतंकियों को सुरक्षाकर्मियों ने ढेर कर दिया था.




इस हमले में आतंकियों से लोहा लेते हुए दिल्ली पुलिस के 5 जवान शहीद हुए थे, जिसमें नानक चंद, रामपाल, ओमप्रकाश, बिजेंद्र सिंह और घनश्याम शामिल हैं. इसके अलावा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की एक महिला कांस्टेबल कमलेश भी इस आतंकी हमले में शहीद हो गई थीं. संसद की सुरक्षा में तैनात दो सुरक्षा कर्मी जगदीश प्रसाद यादव और मातबर सिंह नेगी भी अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे. इसके साथ ही संसद भवन में मौजूद एक पार्क में पेड़-पौधों की देख-रेख करने वाले माली देशराज की भी जान चली गई थी. इस तरीके से कुल 9 लोग इस घटना में शहीद हुए थे.


इस आतंकी हमले को हो चुके हैं 21 साल


संसद भवन पर हुए इस आंतकी हमले को आज 21 साल पूरे हो चुके हैं. हर साल इस हमले को याद कर इसमें शहीद हुए शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है. प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति सभी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.




आज 21 साल हो चुके हैं हम सभी ने इस हमले को लेकर कई बार जानकारी अलग अलग माध्यमों से हासिल करने की कोशिश की होगी. इसके बारे में पढ़ा होगा, लेकिन आज इस हमले की 21 वीं बरसी पर हम एक ऐसे शख्स की जुबानी आपको उस दिन की पूरी कहानी बताने जा रहे हैं जो शायद ही आपने कहीं पढ़ी हो.


'एबीपी न्यूज' के वीडियो जर्नलिस्ट ने बताई पूरी घटना


इसको लेकर एबीपी न्यूज (तब के स्टार न्यूज) के वीडियो जर्नलिस्ट भान प्रकाश ने बताया कि आम दिनों की तरह ही उस दिन खबरों की तलाश और कवरेज के लिए घर से निकले थे. ड्यूटी संसद के शीतकालीन सत्र में कवरेज को लेकर लगी थी. लेकिन मुझे ये नहीं मालूम था कि आज मैं अपने कैमरे में कुछ ऐसी तस्वीरे कैद करूंगा जो आने वाले समय में इतिहास बन जाएंगी. 




हमले के दौरान कवरेज करते मीडियाकर्मी (PTI/File)


66 साल के भान प्रकाश जो फिलहाल रिटायर हो चुके हैं और अपने घर पर उन पुराने दिनों को याद करते हैं जब वो फील्ड में जाकर अपने कैमरे में अलग-अलग तस्वीरों को रिकॉर्ड करते थे. 13 दिसंबर 2001 को देश की संसद पर हुए आतंकी हमले को लेकर उन्होंने बताया कि सभी मीडिया कर्मी उस समय संसद के गेट नंबर 12 के पास खड़े थे. ये जगह ही मीडिया कर्मियों के लिए निश्चित की गई थी. हालांकि इससे पहले मीडिया कर्मी गेट नंबर 1 पर खड़े होकर ही कवरेज करते थे. लेकिन वहां से निकलने वाले सांसदों और मंत्रियों की परेशानी को देखते हुए मीडिया को गेट नंबर 12 पर शिफ्ट कर दिया गया था.


'पोटा बिल' को लेकर छिड़ी हुई थी संसद में बहस


भान प्रकाश बताते हैं कि संसद का सत्र चल रहा था कई मुद्दों को लेकर संसद के दोनों सदनों में बहस छिड़ी हुई थी. इसके चलते बार-बार सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी जाती थी. इसी दौरान उस गुरुवार को सुबह जब संसद की कार्यवाही शुरू हुई तो संसद में पोटा बिल को लेकर बहस शुरु हो गई. इसके बाद संसद की कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया.


पोटा बिल को आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए 2 अप्रैल 2001 को लागू किया गया था. पोटा डेटा कानून की जगह आतंकवाद निरोधी अधिनियम पोटा कानून लाया गया था. इसी कानून को लागू होने से पहले संसद में एक बिल लाया गया था. इसको लेकर उस दिन पक्ष और विपक्ष दोनों में बहस छिड़ी हुई थी. इसके चलते संसद की कार्यवाही को अगले 40 मिनट के लिए स्थगित कर दिया गया था


हमले के दौरान 100 से ज्यादा मौजूद थे सांसद और मंत्री


संसद की कार्यवाही स्थगित होने के बाद वहां मौजूद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी समेत कई नेता अपने सरकारी निवास के लिए निकल गए थे. लेकिन उस समय के गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत कई बड़े मंत्री और लगभग 100 से ज्यादा सांसद सदन के भीतर ही मौजूद थे. 




आतंकियों से लोहा लेते सुरक्षाकर्मी (PTI/File)


भान प्रकाश बताते है कि दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित होने के बाद सभी मीडिया संस्थानों के कैमरामेन और रिपोर्टर मंत्री और सांसदों की बाइटें लेने के लिए इंतजार कर रहे थे. सुबह 11 बजे का वक्त था, सर्दी की सुबह खिली हुई धूप निकली हुई थी. सदन से बाहर आकर सासंद और मंत्री धूप सेंक रहे थे. गेट नंबर 12 के पास एक पेड़ के नजदीक सभी मीडिया कर्मी खड़े हुए थे.


संसद के गेट नंबर 11 से शुरू हुआ था हमला


तभी 11 बजकर 29 मिनट पर एक सफेद रंग की एंबेसडर कार संसद भवन की ओर बढ़ी चली आ रही थी. ये गाड़ी गेट नंबर 11 की ओर आ रही थी जो एक वीआईपी गेट था. यहां से उपराष्ट्रपति का काफिला गुजरता था. इसके अलावा प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी जैसे बड़े नेताओं की गाड़ियों को ही सिर्फ निकलने की अनुमति थी.


लेकिन वहां एक सफेद गाड़ी को आता देख सुरक्षाकर्मी हैरान हो गए. इसके अलावा वो गाड़ी नॉर्मल स्पीड से तेज रफ्तार से संसद भवन की ओर बढ़ रही थी, जिसके बाद उसे वहां मौजूद सुरक्षाकर्मी ने रोकने की कोशिश की पर गाड़ी नहीं रुकी और वहां पर खड़ी उपराष्ट्रपति की गाड़ी में जाकर भिड़ गई. वहां तक उपराष्ट्रपति की सुरक्षा में तैनात कर्मियों ने जब ये देखा तो आतंकियों की गाड़ी को रोकने की कोशिश की. 


उपराष्ट्रपति का काफिला गेट नंबर 11 के बाहर खड़ा था, जो उनके निकलने का इंतजार कर रहा था. लेकिन तभी इस हलचल के बाद सभी सुरक्षाकर्मी अलर्ट हो गए. सभी ने वॉकी-टॉकी से अनाउंसमेट कर दी. वीडियो जर्नलिस्ट भान प्रकाश ने बताया कि उस दौरान संसद की सुरक्षा में तैनात जेपी यादव ने होशियारी दिखाते हुए सबसे पहसे संसद भवन के अंदर के गेटों को बंद करवाया. उनके पास उस दौरान कोई हथियार नहीं था. बावजूद इसके उन्होंने आतंकियों को संसद भवन के अंदर जाने से रोकने की कोशिश की. वरना आतंकी संसद भवन के अंदर घुस जाते और अंदर 100 से ज्यादा सासंद, मंत्री और कई वरिष्ठ नेता थे, जिनकी जान खतरे में पड़ जाती.


मानव बम के रूप में हथियारों से लैस थे आतंकी


लेकिन तभी एक आतंकी ने सुरक्षाकर्मी जेपी यादव के पीछे से उनके सिर पर गोली मार दी, जिसमें वो वहीं शहीद हो गए. इससे पहले आतंकी अपनी गाड़ी से उतरकर अंधाधुंध फायरिंग करने लगे. इसमें सबसे पहली गोली वहां मौजूद एक माली को लग जाती है, जो गेट नंबर 11 के पास एक पार्क में मौजूद था. इसके बाद सुरक्षाकर्मी जेपी यादव को भी गोली लगती है. वीडियो जर्नलिस्ट ने बताया कि ये पांचों आतंकी हथियारों से लैस संसद भवन में घुसे थे और मानव बम बनकर आए थे. 


जब आतंकी गेट नंबर 1 के पास भागते हैं तब एक पुलिसकर्मी अपनी पिस्टल से एक आतंकी पर गोली चलाता है, गोली लगते ही आतंकी जमीन पर गिर जाता है और जमीन पर गिरते ही बम की तरह फट जाता है. 


पहली बार अपने कैमरे में कैद किया था 'लाइव' आतंकी हमला


इसके बाद दोनों तरफ से फायंरिंग होने लगती है. सुरक्षाकर्मी और आतंकियों के बीच फायरिंग होती है. ये पूरी घटना वहां मौजूद वीडियो जर्नलिस्ट भान प्रकाश अपनी आंखों से देख रहे थे. उन्होंने बताया कि गाड़ी से उतरकर आतंकी किसी प्रकार के वायर्स बिछाते हैं लेकिन उन 5 आतंकियों में से एक आतंकी खुद उन तारों में फंसकर गिर जाता है. 


'जब बंदूक लेकर अपनी ओर आते देख उड़ गए थे होश'


आतंकी लगातार फायरिंग करते हुए गेट नंबर 11 से गेट नंबर 1 की तरफ भागते हैं. जहां से बीजेपी नेता मदन लाल खुराना बाहर निकल रहे थे. तभी दिल्ली पुलिस के एक जवान ने उन्हें अंदर करते हुए गेट बंद कर दिया. उन्होंने बताया 'एक आतंकी मीडिया कर्मियों की तरफ भी भागते हुए आता है. उसके हाथ में एके-47 राइफल थी, उसके कंधे पर बैग टंगा हुआ था और वो आतंकी हमारी तरफ भागते हुए आ रहा था..तब हमें लगा कि आज ये हमारी जिंदगी का आखिरी दिन है. लेकिन तभी एक अन्य आतंकी उसे रोक लेता है और वहां से आगे की ओर बढ़ जाता है. हालांकि एक पेड़ के पास आतंकी एक बैग छोड़कर चले जाते हैं जिसमें हेंड ग्रेनेड और कई अन्य हथियार थे. इसके साथ ही उस बैग में कुछ ड्राई फ्रूट्स भी थे.




उन्होंने बताया इस दौरान हम लोगों के लिए कहीं बचकर निकलने की जगह नहीं थी. कई मीडिया कर्मियों ने दीवार फांदकर जान बचाई क्योंकि सभी गेट बंद हो गए थे. संसद के परिसर में अंधाधुध फायरिंग हो रही थी. दोनों तरफ से गोलियां चल रही थीं. उस समय हम लोगों ने जमीन पर लेटकर अपनी जान बचाई. इसके साथ ही हम इस पूरी घटना को अपने कैमरे में कैद करने की भी कोशिश कर रहे थे.. तस्वीरें ले रहे थे. वीडियो रिकॉर्ड कर रहे थे. 


एक कैमरामैन को लग गई थी गोली


भान प्रकाश ने बताया कि इस आतंकी हमले में ANI के एक कैमरा मैन विक्रम बिष्ट को गोली लगी थी, जिसके बाद उन्हें हमारे साथी ही अस्पताल लेकर गए. हालांकि एक महीने इलाज के बाद उनकी मौत हो गई. 


वीडियो जर्नलिस्ट भान प्रकाश कहते हैं कि पहली बार इस तरह से किसी आतंकी हमले को नजदीक से कवर किया था. काफी दिनों तक इसकी याद जेहन में रही थी, लेकिन कभी ये नहीं लगा कि इस प्रोफेशन को छोड़कर कुछ और किया जाए क्योंकि कैमरा मैन का काम उन तस्वीरों को कैद करना होता है जो बाद में लोगों तक पहुंचती हैं. कोई भी घटना एक कैमरामैन की नजर से ही दुनिया टीवी पर देखती है.