क्या इंडिया नाम ब्रिटिश गुलामी का प्रतीक है? भारत बनाम इंडिया के विवाद में यह सवाल सुर्खियों में बना हुआ है. पूर्व क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग की टिप्पणी ने इस सवाल की महत्ता को और ज्यादा बढ़ा दिया है. सहवाग ने अपने पोस्ट में लिखा कि हम भारतीय हैं, इंडिया अंग्रेजों द्वारा दिया गया एक नाम है. 


हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र पांचजन्य ने भी इंडिया नाम के नकारात्मक ऐतिहासिक अर्थों की ओर इशारा किया था. 27 जुलाई के संपादकीय में पांचजन्य ने लिखा था- इंडिया शब्द का कोई भौगोलिक अर्थ नहीं है. इसे पश्चिमी अक्रांताओं ने अपने हिसाब से उपयोग किया. 


पांचजन्य ने आगे लिखा है कि इंडिया शब्द से सांस्कृतिक अथवा राजनीतिक पहचान होने का तो सवाल ही नहीं उठता. हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी ने कैबिनेट बैठक में बीजेपी मंत्रियों से इंडिया बनाम भारत के विवाद में नहीं पड़ने के लिए कहा है.


इंडिया बनाम भारत का विवाद कैसे शुरू हुआ?
बेंगलुरु की एक मीटिंग में कांग्रेस, जेडीयू, डीएमके समेत 26 दलों ने विपक्षी गठबंधन का नाम I.N.D.I.A (Indian National Developmental Inclusive Alliance) रखा. सत्ताधारी दल बीजेपी ने इस पर सवाल उठाए और इसे इंडिया की बजाय घमंडिया कहा. संघ प्रमुख मोहन भागवत भी इस विवाद में कूदे और उन्होंने लोगों से भारत बोलने के लिए कहा.


इसी बीच राष्ट्रपति भवन से जारी एक आमंत्रण पत्र ने इस विवाद में घी डालने का काम किया. जी-20 को लेकर जारी आमंत्रण पत्र में President Of Bharat लिखा था. कांग्रेस और विपक्षी दलों ने तुरंत इस मुद्दे को उठाया.


विपक्षी दलों का कहना था कि सरकार संविधान के साथ खिलवाड़ कर रही है, जबकि सत्तापक्ष ने पहले से चले आ रहे नाम को इस्तेमाल करने की ही बात कही. राष्ट्रपति भवन ने अब तक इस पर कोई सफाई नहीं दी है.


क्या इंडिया नाम ब्रिटिश गुलामी का प्रतीक है?


पार्ट-1: सिंधु घाटी, मेगास्थनीज और कोलंबस का इंडिया
इतिहास के प्राध्यापक मयंक शेखर मिश्रा के मुताबिक लगभग सारे इतिहासकार इस पर सहमत हैं कि इंडिया सिंधु के अपभ्रंश से निकला हुआ शब्द है. ठीक उसी तरह जिस तरह हिंदू शब्द है. इसलिए सिंधु घाटी सभ्यता को इंडस वैली सभ्यता भी कहते हैं.


200 ईसा-पूर्व ग्रेको-इंडियन साम्राज्य की स्थापना हुई थी, जिसमें आधुनिक अफगानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिमी भारत के विभिन्न हिस्सों को कवर करता था. 260 ईसा-पूर्व यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने इंडिका नामक पुस्तकें लिखी थी. 


इस पुस्तक में उन्होंने भारत और उसके सभ्यताओं के बारे में विस्तार से बताया है. इतिहासकारों के मुताबिक भारत के बारे में सबसे पहले और सबसे सटीक जानकारी मेगास्थनीज के पुस्तक इंडिका से ही मिलती है.


इंडिका में मेगास्थनीज ने भारत की संस्कृति, परंपरा और कामकाज का जिक्र किया है. वे चंद्रगुप्त शासनकाल में भारत आए थे. 


मयंक शेखर मिश्रा कहते हैं- भारत में अंग्रेजों के आने के वर्षों पहले से विदेशी भारत को इंडिया नाम से जानते थे. इसका उदाहरण कोलंबस की यात्रा है. कोलंबस इंडिया की खोज में निकले थे, लेकिन वे कैरिबियन द्वीप पहुंच गए. कोलंबस ने इसका नाम इंडिया से मिलता जुलता वेस्टइंडीज रखा.


1498 में बास्को डी गामा के भारत आने के बाद पुर्तगालियों का दबदबा यहां बढ़ता गया. पुर्तगालियों ने गोवा समेत कई जगहों पर कब्जा कर लिया. भारत में पुर्तगालियों ने अपने सम्राज्य को 'इम्पेरियो इंडियनो डी पुर्तगाल' नाम दिया. पुर्तगालियों के बाद भारत में अंग्रेजों की एंट्री हुई.


पार्ट-2 : ब्रिटिश शासन में भारत और इंडिया
ईस्ट इंडिया कंपनी के जरिए भारत में एंट्री करने के बाद 1857 में अंग्रेजों ने हुकूमत सीधे अपने हाथों में ले ली. एनसीईआरटी के मुताबिक 1857 तक अंग्रेजों ने भारत के 63 प्रतिशत भूभाग और 68 प्रतिशत लोगों पर शासन किया. 


अंग्रेजों के शासन काल में भारत का विस्तार दक्षिण से लेकर बर्मा (अब म्यांमार) तक हुआ. इतिहासकार इयान जे बैरो के मुताबिक भारत में शासन अपने हाथ में लेने के बाद अंग्रेजों ने कामकाज की भाषा में इंडिया का जिक्र करना शुरू किया.


आधुनिक इतिहासकारों के मुताबिक अंग्रेजों का मुख्य उद्देश्य भारत का विस्तार कर व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाना था. इसलिए इंडिया नाम का इस्तेमाल शुरू किया. 


पार्ट-3 : संविधान सभा में इंडिया और भारत 
18 सितंबर 1949 को संविधान सभा में नाम को लेकर बहस हुई. एचवी कामथ ने इसका प्रस्ताव रखा. इसके मुताबिक देश का एक नाम 'इंडिया दैट इज भारत' होगा. कामथ के मुताबिक भारत के उत्पत्ति नाम पर कई भाषाविद् और इतिहासकार एकमत नहीं है, इसलिए इस पर विवाद हो रहा है.


कामथ का इशारा द्रविडियन इतिहासकारों की ओर था. द्रविड इतिहासकारों के मुताबिक भारत जिस भरत राजा के नाम पर रखा गया है, उसके बारे में कहीं स्पष्ट जिक्र नहीं है. कुछ इतिहासकार राजा भरत के आर्यावर्त का भी उल्लेख करते हैं.




(आर्यावर्त का नक्शा. Source- University Of Minnesota)


आर्यावर्त की सीमाएं सिंधु नदी से मगध तक फैली हुई थी, लेकिन उसके नक्शे में दक्षिण के राज्य शामिल नहीं हैं. इतना ही द्रविड़ों का दावा है कि भारत में वे आर्य से पहले आए, इसलिए वे खुद को मूल निवासी भी मानते हैं.


कामथ के इस प्रस्ताव को संविधान सभा ने बहुमत से स्वीकृत कर लिया. 


नाम बदलना कितना मुश्किल, 4 प्वॉइंट्स...


1. संवैधानिक शक्तियों के तहत भारत का नाम रखा गया है. इसमें संशोधन के लिए सरकार को विशिष्ट बहुमत की जरूरत होती है. यानी संसद से इसे पास कराने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में सरकार को दो तिहाई बहुमत चाहिए होगा. राज्यसभा में अभी सरकार के पास 2 तिहाई बहुमत नहीं है.


2. सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि सरकार संविधान के मूल स्ट्रक्चर में संशोधन नहीं कर सकती है. जानकारों का कहना है कि भारत और इंडिया नाम एकजुट रखने के लिए ही रखा गया. अगर नाम बदलने से इसकी मूल भावनाएं खत्म होती है, तो यह बेसिक स्ट्रक्चर का मसला बन सकता है.


3. 2016 और 2020 में इंडिया और भारत का मसला सुप्रीम कोर्ट जा चुका है. दोनों बार कोर्ट ने कहा कि इंडिया और भारत दोनों को अलग-अलग नहीं माना जा सकता है. कोर्ट के मुताबिक किसी एक के नाम को दबाकर दूसरे को महत्व नहीं दिया जा सकता है. नाम बदलने का मामला अगर फिर से कोर्ट में गया तो सरकार की किरकिरी हो सकती है.


4. एक अनुमान के मुताबिक अगर सरकार इंडिया का नाम बदलती है, तो पासपोर्ट समेत कई जगहों पर बदलाव करना पड़ेगा. नाम बदलने पर 14,304 करोड़ खर्च हो सकते है, जो देश के रेवेन्यु का 6% है.