कुछ दशक पहले तक बाजार में 'मेड इन इंडिया' का मतलब घटिया सामान का पर्याय था. 90 के दशक के पहले सरकारी नियंत्रण की व्यवस्था में विदेशी रेडियो, मोटर साइकिल, टीवी खरीदना सिर्फ अमीरों का शौक था. लेकिन जब भारत ने पूरी दुनिया के लिए बाजार खोला तो इस आंधी में भारत में बनने वाला सामान विदेशी चमक-दमक के सामने फीका पड़ता गया.


भारतीय बाजार में विदेशी सामानों की भरमार हो गई. दिवाली में जहां चीन की बनीं झालरें चमकने लगीं तो दूसरी ओर दिये बनाने वाले कुम्हारों के घर अंधेरा छा गया. विदेशी ब्रांडेड और डिजाइन कपड़ों के दौर में भारतीय बुनकर की मशीनों की आवाजें धीमी पड़ने लगीं. हथियारों के बाजार में तो भारत शुरू से ही दूसरे देशों पर निर्भर था. 


लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि वक्त बदल रहा है. मोदी सरकार की 'वोकल फॉर लोकल' की नीति अब असर दिखा रही है. अब तो भारत में कार कंपनियां भी  इस नारे का साथ ही अपने प्रोडक्ट उतार रहे हैं.


इसके साथ भी आम भारतीय जो हमेशा 'इम्पोर्टेड' यानी विदेशी टैग वाली चीजें खरीदकर गर्व महसूस करते थे वो भी भी 'वोकल फॉर लोकल' की अहमियत समझ रहे हैं. और इसका नतीजा ये है कि 'आत्मनिर्भर भारत' का मंत्र लेकर देश अब आगे बढ़ चला है और सबसे ज्यादा रोजगार पैदा करने वाला मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर अब मजबूत हो रहा है.





कैसे बदली तस्वीर
1991 में जब भारत ने मुक्त अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाए तो ये मान लिया गया था कि भारतीय बाजार में भारत में ही बनी चीजों की कोई जगह अब नहीं बची है. कुछ दशकों तक तो ये ठीक लगा लेकिन जब भारत में ही व्यापार विदेशी कंपनियां मुनाफा कमाने लगीं देश का पैसा बाहर जाने लगा तो 'आत्मनिर्भरता' की याद आई. 


साल 2014 में 'मेक इन इंडिया' का नारा दिया गया. मतलब था भारत में ही सामान बने और उसको भारत ही नहीं विदेशों में बेचा गया. लेकिन उसके लिए जरूरी था कि पहले इन उत्पादों को भारत का बाजार उपलब्ध कराया जाए.


बीते 8 सालों में इस दिशा में काम भी हुआ है. स्वदेशी वंदे भारत एक्सप्रेस, विमान वाहक पोत, वैक्सीन और खिलौने अब भारत में बनना शुरू हो गए हैं.


देश ने एक दौर ऐसा भी देखा था जब सूई भी विदेश से आती थी. लेकिन सेना के उपकरण, साइकिल, बाइक, मोबाइल, कार, घरेलू उपकरण से लेकर डिवाइस तक भारत में ही बनाए जा रहे हैं. जिसमें भारत का पैसा, श्रम शामिल है.  


अब ये उत्पाद न सिर्फ भारत के बाजार में  बल्कि विदेशी मार्केट में भी अपनी जगह बना रहे हैं. रत्न आभूषण, मसाले, कॉफी, रसायन या संबंधित उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक और मोबाइल के बाजार में भारत में बने प्रोडक्टों की मांग बढ़ी है. 


 




 


600 गुना बढ़ा निर्यात
सरकारी आंकड़ों की मानें तो आजादी के बाद से भारत का निर्यात 600 गुना तक बढ़ा है 1950-51 में भारत से 1.27 अरब डॉलर का निर्यात होता था. साल 2021-22 में यह आंकड़ा 676 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. इसमें वस्तुओं का निर्यात 420 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. कृषि निर्यात 50 अरब डॉलर तक पहुंचा है.


वाहन बाजार में जर्मनी को पीछे छोड़ा
जर्मनी को पीछे छोड़कर भारत अब दुनिया भर में चौथा बड़ा वाहन बाजार बन गया है. साल 2021 में भारत ने 37.6 लाख वाहन बेचे तो इसी वर्ष जर्मनी ने 29.7 लाख वाहन बेचे हैं. 


चीनी का निर्यात 906 फीसद बढ़ा
भारत अब पूरी दुनिया में सबसे बड़ा चीनी निर्यातक और उपभोक्ता दोनों बन गया है. भारत में बनी चीनी का निर्यात पिछले 8 सालों में 906 फीसदी तक बढ़ गया है. साल 2013-2014 में भारत ने 1788 करोड़ रुपये की चीनी विदेशी मार्केट में बेची थी. साल इस वित्तीय साल में अब तक भारत 17987 करोड़ रुपये की चीनी निर्यात कर चुका है.


खादी बन गया ब्रांड
बीते 8 सालों  में खादी अब एक नया ब्रांड बनकर उभरा है. साल 2014 से इसके उत्पादों में बिक्री में 4 गुना से अधिक की बिक्री हुई है. पहली बार था कि खादी ग्रामोद्योग का कारोबार 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया. इतना बड़ा कारोबार करने वाली खादी पहली एफएमसीजी कंपनी बन गई है.


चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक 
पूरी दुनिया में भारत अब चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है. साल 2021-22 में 1303 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ है.


9 गुना बढ़ा रत्न आभूषणों का निर्यात
भारत हीरे और चांदी के निर्यात में नंबर वन है. साल 2021-22 में भारत में 291481 करोड़ रुपये के रत्न-आभूषणों का निर्यात हुआ है. जबकि 2000-01 में यह आंकड़ा मात्र 33734 करोड़ रुपये था.


रक्षा क्षेत्र में बढ़ा 570 फीसदी बढ़ा निर्यात
रक्षा के क्षेत्र में भारत हमेशा से ही दूसरों पर निर्भर रहा है. देश के खजाने का एक बड़ा हिस्सा हथियारों की खरीद और दूसरे सैन्य उपकरणों को खरीदनें में चला जाता है. लेकिन बीते 8 सालों में इस भारत इस सेक्टर में न सिर्फ आत्मनिर्भर बनने की दिशा में है बल्कि इस बाजार में अपने उत्पाद भी उतार रहा है.  2014-15 में भारत ने 1940 करोड़ रुपये के उत्पाद बेचे थे. वहीं  2021-22 में 13 हजार करोड़ रुपये के उत्पाद भारत ने दूसरे देशों को बेचे हैं. इनमें अमेरिका, फिलीपींस, दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका के देश शामिल हैं.


इसके साथ ही भारत अब हथियार निर्यातकों के क्षेत्र में शीर्ष 25 देशों में भी शामिल हो गया है. भारत दुनिया के 100 देशों को अंतरराष्ट्रीय मानकों वाला बुलेटप्रूफ जैकेट निर्यात कर रहा है.


रक्षा क्षेत्र में 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा देने के लिए दो डिफेंस कॉरिडोर बनाए जा रहे हैं. इसके साथ ही स्टार्ट अप्स को बढ़ावा देने के लिए  इनोवेशन पर फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (iDEX) को भी लांच किया गया है. साथ 300 उत्पादों को विदेशी कंपनियों से खरीदने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है.




मीठी क्रांति में भारत की बढ़ी हिस्सेदारी
शहद निर्यात में बीते 8 साल में 257 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. 2013-14 में 194 करोड़ रुपये का शहद भारत ने निर्यात किया था. साल 2022-23 में 692 करोड़ रुपये का शहद भारत इस दूसरे देशों में बेच चुका है.


फॉर्मेसी के सेक्टर में भी भारत का डंका
दवा बाजार में भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है. पूरी दुनिया में कुल निर्यात का 20 फीसदी भारत से होता है. सर्वाइकल कैंसर का पहला टीका भारत में विकसित किया गया है. इसी तरह कोरोना वैक्सीन के निर्माण में भारत ने अग्रणी भूमिका निभाई थी. इस सेक्टर में साल 2013-14 में 26184 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ था. साल 2022-23 में 64320 करोड़ रुपये का निर्यात किया हो चुका है.


विदेशी मार्केट में बढ़ रही है भारतीय खिलौनों की मांग
भारत ने खिलौना बाजार में दूसरे देशों में निर्भरता घटाई है. 2018-19 में 371 मिलियन डॉलर के खिलौने भारतीय बाजार में विदेशों से आए थे. लेकिन 2021-22 ये  घटकर 122 मिलियन डॉलर पर आ गया है. इसके साथ ही भारत ने 2021-22 में 326 मिलियन डॉलर के खिलौनों का निर्यात किया है. जो बीती साल की तुलना में 61 फीसदी ज्यादा है.