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18 नवंबर को क्लाइमेट चेंज पर CCPI की रिपोर्ट जारी हुई. इसमें 63 देशों को शामिल किया गया, जिसमें भारत की रैंकिंग 23वें नंबर पर आई. जबकि 2024 की रिपोर्ट में यह 10वें नंबर पर थी. अब आप सोचेंगे कि यह इतनी बड़ी बात नहीं लगती. लेकिन आप पूरी तरह से गलत हो सकते हैं, क्योंकि शायद आप क्लाइमेट चेंज के इंडेक्स में 13 नंबर नीचे खिसकने का खामियाजा नहीं जानते. यह 13 नंबरों से भारत में भुखमरी बढ़ सकती है, डेंगू-मलेरिया और कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं, बच्चे भूखे मर सकते हैं और मुंबई-कोलकाता जैसे बड़े शहर तक पानी में डूब सकते हैं. ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि क्लाइमेट चेंज क्या है, इसके बिगड़ने पर भारत को क्या खामियाजा भुगतना होगा और यह सेहत के लिए कितना खतरनाक है...

सवाल 1- CCPI क्या है, जिसमें भारत 10वें पायदान से गिरकर 23वें पर पहुंच गया?जवाब- क्लाइमेट चेंज परफॉर्मेंस इंडेक्स (CCPI) एक इंडिपेंडेंट रिपोर्ट है, जो हर साल 63 देशों और यूरोपीय यूनियन (EU) की क्लाइमेट चेंज से लड़ने की परफॉर्मेंस को चेक करती है. ये देश मिलकर दुनिया की 90% से ज्यादा ग्रीनहाउस गैसें छोड़ते हैं. इस रिपोर्ट को जर्मनवॉच, न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट और क्लाइमेट एक्शनल नेटवर्क इंटरनेशनल मिलकर बनाते हैं. इसमें देशों को 4 चीजों पर मार्क्स दिए जाते हैं-

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  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कितना कम कर रहे हो.
  • रिन्यूएबल एनर्जी कितनी बढ़ा रहे हो.
  • एनर्जी का इस्तेमाल कितनी समझदारी से कर रहे हो.
  • क्लाइमेट पॉलिसी कितनी मजबूत है.

सबसे खास बात यह है कि टॉप तीन जगह हमेशा खाली रहती हैं, क्योंकि अभी तक कोई देश परफेक्ट नहीं हो पाया है.

नई रिपोर्ट में भारत 23वें पायदान पर है, जबकि 2024 की रिपोर्ट में 10वें पायदान पर था. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि भारत ने कोयले को छोड़ने की कोई फिक्स डेडलाइन नहीं रखी और अभी भी नए कोल माइन्स की नीलामी हो रही है.

सवाल 2- क्लाइमेट चेंज असल में क्या है?जवाब- क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन वो लंबे समय का बदलाव है जो पृथ्वी के तापमान और मौसम पैटर्न में हो रहा है. हमारी पृथ्वी पर एक पतला सा कंबल है जो हवा में मौजूद गैसों से बना है. ये कंबल सूरज की गर्मी को अंदर तो आने देता है लेकिन बाहर निकलने नहीं देता, ताकि पृथ्वी न ज्यादा ठंडी हो न ज्यादा गर्म हो. पहले यह कंबल ठीक था, मौसम अच्छा रहता था. लेकिन अब हम इंसान कार, फैक्ट्री और बिजली प्लांट जैसी चीजों से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) जैसी ग्रीन हाउस गैसें हवा में छोड़ रहे हैं.

यह गैसें सूरज की गर्मी को पृथ्वी के वायुमंडल में फंसा लेती हैं, जिसे ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं. पहले मौसम धीरे-धीरे बदलता था, लेकिन अब 100-200 सालों में ही बहुत बड़ा बदलाव हो रहा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, 1800 से अब तक पृथ्वी का तापमान करीब 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है और यह बढ़ता जा रहा है.

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की लेटेस्ट रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगर हमने गैसें कम नहीं कीं तो 2100 तक तापमान 2.5-4 डिग्री तक बढ़ सकता है.

सवाल 3- क्लाइमेट चेंज इतना ज्यादा खतरनाक क्यों है?जवाब- क्लाइमेट चेंज सिर्फ गर्मी नहीं बढ़ाता, बल्कि पूरी पृथ्वी के सिस्टम को बिगाड़ देता है...

  • अगर तापमान 1.5 डिग्री से ज्यादा बढ़ा तो टिपिंग पॉइंट्स क्रॉस हो जाएंगे. जैसे अमेजन के जंगल सूखकर जलना शुरू हो जाएगा या ग्रीनलैंड-अंटार्कटिका की बर्फ तेजी से पिघलेगी.
  • समुद्र का स्तर बढ़ेगा, तूफान-बाढ़-सूखा ज्यादा खतरनाक होंगे और फूड सिक्योरिटी खतरे में पड़ जाएगी.
  • गर्मी इतनी बढ़ेगी कि लोग बाहर निकल नहीं पाएंगे, फसलें जल जाएंगी और भुखमरी फैलेगी. जानवर-पक्षी अपना घर खो देंगे, कई प्रजातियां हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी.
  • IPCC की रिपोर्ट के मुताबिक, 1.5 डिग्री लिमिट पार करने से 14% स्पीशीज विलुप्त हो सकती हैं और 2 डिग्री पर ये 18% तक पहुंच जाएगा.
  • अगर 2-3 डिग्री बढ़ गया तो समुद्र का पानी इतना बढ़ जाएगा कि मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे शहरों के बड़े हिस्से डूब जाएंगे.
  • 2100 तक 3-4 डिग्री तक तापमान बढ़ सकता है और ये इंसानों के रहने लायक नहीं रहेगा.

सवाल 4- क्लाइमेट चेंज बिगड़ने से भारत को क्या खामियाजा भुगतना पड़ेगा?जवाब- क्लाइमेट चेंज अगर और बिगड़ गया तो भारत को बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी...

1. पानी की भयंकर कमी और नदियां सूखेंगी

  • IPCC की रिपोर्ट्स के मुताबिक, हिमालय के ग्लेशियर 2 गुना तेजी से पिघल रहे हैं. 2100 तक हिमालय के 50-70% ग्लेशियर खत्म हो सकते हैं, जो अभी तेजी से पिघल रहे हैं. ये ग्लेशियर गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी बड़ी नदियों को पानी देते हैं, जो उत्तर भारत की लाइफलाइन हैं.
  • इनके पिघलने से पहले तो नदियों में पानी ज्यादा आएगा और बाढ़ आएगी, लेकिन 2050-2100 तक ग्लेशियर 30-70% तक कम हो जाएंगे. इससे नदियों का पानी कम हो जाएगा.

2. खेती और खाने की भारी समस्या

  • ADB की रिपोर्ट (2024) कहती है कि ज्यादातर खेती और लेबर प्रोडक्टिविटी घटने से हाई एमिशन सीनैरियो में 2070 तक भारत की GDP 24.7% तक घट सकती है. गेहूं और चावल की पैदावार 10-40% तक कम हो सकती है.
  • भारत की 56% से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर है. क्लाइमेट चेंज से मानसून अनियमित हो रहा है, सूखा और बाढ़ बढ़ रही है. अभी हाल यह है कि हीटवेव से फसलें जल रही हैं, जिसके नतीजे में 2022-2025 में गेहूं की पैदावार 10-35% कम हुई थी.

3. समुद्र का पानी बढ़ना और शहरों का डूबना

  • समुद्र का स्तर लगातार बढ़ रहा है. 1901 से अब तक 20-25 सेमी बढ़ चुका है, 2100 तक 1 मीटर तक बढ़ सकता है. ऐसा ही होता रहा तो आने वाले समय में तटीय इलाके डूब जाएंगे. नमक का पानी खेतों में घुसेगा, जिससे फसलें खराब होंगी.
  • IPCC रिपोर्ट्स के मुताबिक, विशाखापट्टनम में 62 सेंटीमीटर और भावनगर में 87 सेंटीमीटर तक बढ़ोतरी हो सकती है. मुंबई-कोलकाता में एक्सट्रीम फ्लडिंग बढ़ेगी.

4. अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान

  • ओवरसीज डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट और वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2100 तक भारत की GDP 3-10% तक कम हो सकती है. वहीं, ADB की 2024 रिपोर्ट के मुताबिक, 2070 तक 24.7% GDP लॉस हो सकता है. हीट से लेबर प्रोडक्टिविटी 5-10% घट रही है.
  • 2024 में भारत में गर्मी से 247 बिलियन पोटेंशियल लेबर आवर्स खराब हुए, यानी लोग इतने घंटे काम नहीं कर पाए, जिससे अर्थव्यवस्था को भी नुकसान हुआ. खेती और कंस्ट्रक्शन में सबसे ज्यादा असर पड़ा.

इसके अलावा भारत में हीटवेव और सूखा भी बढ़ सकता है. भारत में अभी गर्मी 45-50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रही है. हीटवेव से हर साल हजारों मौतें हो रही हैं. बाढ़-सूखा से लाखों लोग गरीबी की ओर धकेले जा रहे हैं.

क्लाइमेट चेंज भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा है क्योंकि हमारी आबादी ज्यादा है, गरीबी ज्यादा है और हम खेती-नदियों पर निर्भर हैं. जर्मनवॉच की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत टॉप 10 सबसे प्रभावित देशों में शामिल है. अगर क्लाइमेट चेंज को अभी नहीं रोका तो आने वाली पीढ़ियां बहुत मुश्किल में होंगी. लेकिन अच्छी बात ये है कि भारत सोलर एनर्जी में तेजी से आगे बढ़ रहा है. हमें कोयला छोड़ना होगा, पेड़ लगाने होंगे और पानी बचाना होगा. रिपोर्ट्स कहती हैं कि अभी एक्शन लिया तो नुकसान कम किया जा सकता है.

सवाल 5- क्लाइमेट चेंज का बिगड़ना हमारी सेहत के लिए कितना खतरनाक है?जवाब- क्लाइमेट चेंज का बिगड़ना हमारी सेहत के लिए बेहद खतरनाक है, और ये कोई दूर की बात नहीं बल्कि अभी हो रहा है. वैज्ञानिक रिपोर्ट्स बताती हैं कि ये अब दुनिया की सबसे बड़ी हेल्थ थ्रेट बन चुका है, खासकर भारत जैसे देशों में जहां गर्मी, बीमारियां और पॉल्यूशन पहले से ही समस्या हैं...

1. हीटवेट से सेहत पर खतरा

  • गर्मी बढ़ने से हीटवेव ज्यादा और खतरनाक हो रही हैं. भारत में 2024 में हर व्यक्ति को औसतन 19.8 हीटवेव डेज झेलने पड़े, जिनमें से 6.5 दिन सिर्फ क्लाइमेट चेंज की वजह से एक्स्ट्रा थे. 1990 के मुकाबले हर भारतीय को अब 366 घंटे ज्यादा ऐसे टेंपरेचर झेलने पड़ते हैं जहां बाहर काम करना खतरनाक हो जाता है.
  • ग्लोबली हीट से जुड़ी मौतें 1990 से 63% बढ़कर सालाना 5.46 लाख हो गई हैं. भारत में बुजुर्गों (65+ उम्र) में हीट से मौतें 55% से ज्यादा बढ़ी हैं. हीट स्ट्रोक, डिहाइड्रेशन, हार्ट अटैक, किडनी डैमेज और सांस की तकलीफ भी बढ़ी. गर्भवती महिलाओं और बच्चों पर ज्यादा असर हुआ, जिससे प्रीमैच्योर बर्थ और लो बर्थ वेट बढ़ रहा है.

2. मच्छरों से फैलने वाली बीमारियां

  • गर्मी और बारिश का पैटर्न बदलने से मच्छर ज्यादा जीते हैं और नए इलाकों में फैल रहे हैं. पहले मलेरिया सिर्फ निचले इलाकों में था, अब हिमालय तक पहुंच गया है. डेंगू पूरे भारत में फैल रहा है, कोस्टल एरिया में भी. डेंगू ट्रांसमिशन पोटेंशियल 1950 से 49% तक बढ़ गया है. 2019 में 1.57 लाख डेंगू केस थे, जो 2024 में 2.3 लाख से ज्यादा हो गए.
  • पहले मच्छर सिर्फ मानसून में एक्टिव होते थे, लेकिन अब साल भर एक्टिव रहते हैं. इससे डेंगू-मलेरिया के केस साल भर बढ़ रहे हैं. इससे हजारों मौतें हो रही हैं.

3. हवा की गंदगी से सांस की बीमारियां और कैंसर

  • क्लाइमेट चेंज फॉसिल फ्यूल (कोयला, पेट्रोल) के इस्तेमाल को और बढ़ावा दे रहा है, जिससे PM2.5 पॉल्यूशन बढ़ता है. भारत में कोयले से 2022 में 3.94 लाख प्रीमैच्योर मौतें हुईं और पेट्रोल से 2.69 लाख मौतें हुईं.
  • अस्थमा, लंग कैंसर, हार्ट डिजीज और बच्चों में सांस की समस्या भी लगातार बढ़ रही है. दिल्ली जैसे शहरों में PM2.5 100+ µg/m³ रहता है, जो सुरक्षित लिमिट से ढाई गुना ज्यादा. यानी लोग अपनी जान हथेली पर रखकर घूम रहे हैं.

4. खाने की कमी से कुपोषण और कमजोरी

  • सूखा, बाढ़ और फसलें खराब होने से फूड सिक्योरिटी खतरे में पड़ रही है. 2023 में ड्राउट और हीटवेव से 124 मिलियन लोग ज्यादा फूड इनसिक्योरिटी में आए. भारत में चावल-गेहूं की पैदावार घट रही है.
  • इससे बच्चों में कुपोषण बढ़ेगा, इम्यूनिटी कम होगी और बीमारियां आसानी से लगेंगी.

क्लाइमेट चेंज सेहत का सबसे बड़ा दुश्मन बन रहा है. गर्मी बढ़ने से हीट स्ट्रोक, दिल की बीमारियां, किडनी फेल होना आम हो जाएगा. मच्छर ज्यादा जीवित रहेंगे तो डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया जैसी बीमारियां साल भर फैलेंगी. खराब हवा से अस्थमा, कैंसर बढ़ेगा. बाढ़-सूखे से कुपोषण होगा, बच्चे कमजोर पैदा होंगे. मानसिक सेहत भी खराब होगी. फसल खराब होने से डिप्रेशन और सुसाइड बढ़ेंगे. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2030-2050 तक हर साल 2.5 लाख ज्यादा मौतें सिर्फ क्लाइमेट चेंज से होंगी.