UT 69 Review: जब मैंने इस फिल्म का ट्रेलर देखा था तो लगा की ये तो बड़ा खतरनाक है. कोई ऐसा दिखाने की हिम्मत कैसे कर सकता है और ये राज कुंद्रा तो बढ़िया एक्टिंग कर रहे हैं लेकिन दिमाग में ये सवाल भी था पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त और क्या फिल्म ट्रेलर जैसी होगी. राज कुंद्रा, वो नाम जिन्हें हम पहले सिर्फ शिल्पा शेट्टी के पति की तरह जानते थे वो खबरों में और सबकी नजरों में तब आए जब 2021 में उन्हें पोर्नोग्राफी केस में हिरासत में लिया गया. अगर आप सोच रहे थे की इस फिल्म में राज कुंद्रा अपने उस केस पर और उस केस में अपनी भागीदारी को लेकर सफाई देंगे तो ऐसा कुछ नहीं होता और शायद यही वजह है कि ये फिल्म आपको अधूरी लगती है.


कहानी
ये कहानी है राज कुंद्रा की, जिस किरदार को निभाया भी उन्होंने ही है. वो दिन जब एकदम से उनकी जिंदगी बदल जाती है जब उन्हें पोर्नोग्राफी केस में हिरासत में लिया जाता है. कहानी शुरू होती है. राज कुंद्रा को लगा था कि जेल में मुश्किल से 3-4 दिन ही रुकेंगे लेकिन जेल में बिताकर आए 63 दिन. वो 63 दिन जो उन्हें जिंदगी भर याद रहेंगे. जेल में कैसे राज कुंद्रा को सबके सामने पहले नंगा किया गया, फिर VIP सेल में भेजने की जगह उन्हें आम कैदियों के साथ रखा गया और कैसे वो कैदी धीरे धीरे उन्हें अपने परिवार का हिस्सा बना लेते हैं. कहानी उस पूरे वक्त को दिखाती है. कैसे जेल में रहते हुए राज कुंद्रा अपने परिवार से बात करने के लिए तड़पते हैं और और कैसे बार बार बेल खारिज होने पर टूट जाते हैं लेकिन फिर कब और कैसे मिलती है उनको बेल, इसके लिए आपको ये फिल्म देखनी पड़ेगी. जेल के हाल और जेल में रहने वाले कैदियों के इमोशंस को दिलचस्प तरीके से दिखती है राज कुंद्रा की ये फिल्म.


कैसी है फिल्म
एक शब्द में कहूं तो फिल्म एक्टरटेनिंग है और देखी जानी चाहिए. ये फिल्म देखने में बहुत लोगो की दिलचस्पी इसलिए बनी रही थी ताकि उन्हें राज कुंद्रा की सच्चाई और उनका पहलू पता चल सके और अगर आप भी इस फिल्म को सिर्फ इसलिए देखना चाहते हैं तो आप निराश हो जाएंगे क्योंकि पूरी फिल्म में इस तरह का कोई सीन नहीं है जहां राज कुंद्रा ने किसी से भी अपनी कहानी और इस केस पर खुल कर बात की हो लेकिन तब भी इस फिल्म में कई ऐसी बातें हैं जिससे आपको इसे देखने में मजा आए. पूरी फिल्म जेल में ही शूट की गई है और वहां पूरे दिन में क्या क्या होता है, किस किस तरह के कैदी होते हैं और अपना समय काटने के लिए वो क्या क्या करते हैं, इस तरह के सीन्स अच्छे से दिखाए गए हैं. 


जेल के हालात काफी अच्छी तरह और डिटेलिंग के साथ दिखाए गए कि कैसे 40 लोगों के सेल में 250 लोगों को रखा जाता है और खाने के लिए कैसा बेस्वाद खाना दिया जाता है. फिल्म में शिल्पा शेट्टी के साथ राज कुंद्रा के फोन पर बात करने के सीन तो हैं लेकिन जिस तड़प से वो पहली बार उनसे बात करते हुए दिखाए जा सकते थे वैसे नहीं दिखाए गए. फिल्म देखने से पहले आपको लगता है कि राज कुंद्रा के जेल में बिताए दिन काफी डार्क और बुरे होंगे कि आप रो पड़ेंगे लेकिन ऐसा भी नहीं होता है. असल में, काफी सीन में आपको हंसी आती है यानी ह्यूमर डाला गया है. कहीं कहीं ऐसी जगह भी ह्यूमर है जहां उसकी जरुरत नहीं थी. फिल्म में कई सीन फिर भी आपको काफी पसंद आ सकते हैं जैसे कैदियों का साथ में गणेश चतुर्थी मनाना, रात को एक साथ बैठकर टीवी देखना या.. आईपीएल देखते हुए बेटिंग पर बात करना. क्योंकि फिल्म में राज कुंद्रा ने जेल से बाहर की दुनिया पर ना बात की और ना कोर्ट की एक भी सुनवाई दिखाई और ना ही अपने केस का एक बार भी जिक्र किया, इसलिए ये फिल्म आपको अधूरी लगती है.


एक्टिंग  
UT 69 राज कुंद्रा की डेब्यू फिल्म है और ये कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने अच्छी एक्टिंग की है. फिल्म के पहले हाफ में जरूर आपको उनकी एक्टिंग ढीली लगती है  लेकिन दूसरे हाफ में फिल्म थोड़ी बेहतर होती दिखती है. राज कुंद्रा के साथ साथ फिल्म में बाकि कैदियों की कास्टिंग भी बहुत अच्छी तरह हुई है और सभी ने कमाल का काम भी किया है. सभी ने अपने कैरेक्टर को अच्छे से निभाया है.


डायरेक्शन और सिनेमाटोग्राफी
शाहनवाज अली और उनकी टीम ने अच्छा डायरेक्ट किया है लेकिन उससे अच्छा काम किया है सिनेमाटोग्राफर ने. कई शॉट बहुत बारीकी से दिखाए गए और इसलिए स्टोरीटेलिंग में आपको मजा भी आता है. फिर चाहे 250 कैदियों के एक ही सेल में एक के ऊपर एक पैर रखकर सोने वाले शॉट हो या बाहर खुले में जैसे तैसे नहाने और संडास जाने के. 


कुल मिलाकर ये फिल्म देखी जा सकती है. अगर इसे फिक्शन की तरह देखेंगे तो ज्यादा मजा आएगा. अगर फिल्म की राइटिंग में और दम होता तो ये फिल्म आपको रुला भी देती और ये एक बहुत ही जबरदस्त फिल्म लगती लेकिन तब भी ये एक एंटरटेनिंग फिल्म जरूर है. 


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