Tadap Review: एक्टर के लिए कहानी सबसे जरूरी है. बात डेब्यू फिल्म की हो तो अच्छी कहानी आधी नैया पार लगा देती है. हिंदी के दर्शक भावुक होते हैं और नए एक्टर की कमियां नजरअंदाज कर देते हैं. डेब्यू एक्टर स्टार पुत्र है तो भावनाएं कुछ तीव्र होती हैं. मगर सुनील शेट्टी के बेटे अहान की डेब्यू फिल्म तड़प में एक्टर की नाव डुबाने का काम कहानी करती है.


निर्माता साजिद नाडियाडवाला की फिल्म में राइटर रजत अरोड़ा और डायरेक्टर मिलन लूथरिया हीरो से शुरुआत तो हीरोपंती के अंदाज में कराते हैं लेकिन फिर शराब की बोतल पकड़ा कर उसे कबीर सिंह के रास्ते पर डाल देते हैं. इसके बाद क्या करें. लेखक-निर्देशक को रास्ता नहीं सूझता तो वे हीरो उसके हाल पर पिटता हुआ छोड़ देते हैं. यहीं पर अहान शेट्टी की हीरो बनने के लिए की गई बरसों की मेहनत बेकार हो जाती है.


नए एक्टर को नई कहानी चाहिए. नई सोच चाहिए. अव्वल तो बॉलीवुड में इसका अकाल है. फिर बात वंशवाद की हो तो मीलों गहरे खुदाई करने पर भी ताजा आइडिये की धारा नहीं फूटती. रोमांस और ऐक्शन भर से इन्हें बॉक्स ऑफिस सैट लगता है. अहान शेट्टी की लॉन्चिंग रोमांस-एक्शन वाली सुपरहिट तेलुगु फिल्म आरएक्स 100 (2018) के रीमेक से हुई है. आश्चर्य की बात है कि एक्टर हिंदी के सितारे बनना चाहते हैं और अन्य भाषा की रीमेक का सहारा लेते हैं.




नेता, विधायक, सांसद, सीएम की बेटियों से प्यार करने और पिटने वाले जाने कितने हीरो हिंदी फिल्मों ने देखे हैं. यहां भी अनाथ हीरो (अहान शेट्टी) को स्थानीय विधायक की बेटी से प्यार हो जाता है. लंदन रिटर्न हीरोइन (तारा सुतारिया) भी हीरो के प्यार में पड़ जाती है. दो दिल, दो जिस्म एक हो जाते हैं. तब पिता खलनायक बनता है. दर्शक देखते हैं कि पढ़ी-लिखी-मॉडर्न लड़की अचानक गऊ बन कर घरवालों की मर्जी से शादी करने को राजी हो जाती है.


इधर, हीरो नेता के गुंडों से पिटता है, उधर दुल्हन के गले में मंगलसूत्र पड़ता है. फिर तीन साल बीतते हैं और कहानी करवट लेती है. अचानक आप पाते हैं कि कहानी के हर किरदार का कैरेक्टर ढीला है. सबके नट बोल्ट हिलते हैं और अंदर से दूसरा इंसान निकलता है. बात प्यार में हीरो के बलिदान तक पहुंचती है. वह डायलॉग मारता है, ‘हमारी कहानी पूरी नहीं हुई तो क्या, मशहूर बहुत होगी. मैं नजर नहीं आऊंगा, तुम छुप नहीं पाओगी.’




तड़प प्यार की तड़प दिखाती है लेकिन आश्वस्त नहीं करती. सीनियर स्कूलों-कॉलेजों के फोसला ग्रुप आप जानते होंगे. फ्रस्ट्रेटेड वन साइडेड लवर्स एसोसिएशन. नए जमाने के एक तरफा प्यार वाले आशिक की तरह हीरो मचलता है. यहां हीरोइन के कैरेक्टर में बड़ा ट्विस्ट है, जो लेखक-निर्देशक स्थापित करने में सौ फीसदी नाकाम रहे. यहीं फिल्म फेल हो जाती है. जिसका खामियाजा अहान शेट्टी को भुगतना पड़ा. लव स्टोरी में नायिका के यू-टर्न पर अहान के लिए कोई सहानुभूति पैदा नहीं होती. वह इसलिए कि हीरो का किरदार फिल्म में मजबूती से नहीं उभरता, सिवा इसके कि वह चुन-चुन कर लोगों को पीटता है. उसका कोई सोशल कनेक्ट नहीं है. अपनी पीढ़ी से उसका जुड़ाव किसी सीन में नजर नहीं आता. उसका जिंदगी के छोटे से दायरे में एक डैडी है और दूसरा दोस्त.




अहान शेट्टी बीते कुछ वर्षों में लॉन्च हुए स्टार पुत्रों से कहीं बेहतर हैं. अभिनय और लुक दोनों में वह संभावना जगाते हैं. अगर उन्हें लंबी पारी खेलनी है तो नई शुरुआत करनी पड़ेगी. फिर चाहे पिता की तरह ऐक्शन हीरो बनना हो या रोमांटिक हीरो. उन्हें अपनी जनरेशन का सिनेमा समझना पड़ेगा. मुंबई-लंदन से बाहर की वह दुनिया देखनी-समझनी पड़ेगी, जहां सिनेमा के दर्शक रहते हैं. बासी फार्मूलों की फिल्में बनाने वाले निर्देशकों से दूर रहना पड़ेगा. ऐसी कहानियों को इंकार करना पड़ेगा जो दूसरी हीरोपंती या दूसरी कबीर सिंह हों.




तड़प को उसकी कहानी, स्क्रिप्ट और किरदार कमजोर बनाते हैं. निर्देशक ने ऐसे सीन रचे हैं, जो सिनेमाई जादू जगाने में नाकाम हैं. डायरेक्टर ने ऐक्शन के नाम पर चाकू, छुरे, खुखरी, चेन, बल्लियां, डंडे, सरिये, खिड़कियां, लकड़ियां, ट्यूबलाइट, टायर, कांच का इस्तेमाल करके खूब खून बहाया है. तड़प का पहला हिस्सा कुछ ठीक है लेकिन दूसरे को बर्दाश्त करने के लिए हिम्मत चाहिए. तारा और अहान का रोमांस चिंगारी नहीं पैदा करता. फूलों से सजे नकली पुल पर जब दोनों रोमांस करते हुए पूर्णमासी का चांद देखते हैं तो लगता है कि क्या मिलन लुथरिया ने संजय लीला भंसाली की सांवरिया से इस दृश्य की प्रेरणा ली. तारा ने जिस किरदार को चुना है, उसके लिए साहस चाहिए. उन्होंने अपना काम दिए गए निर्देशों के हिसाब से अच्छा किया है. निश्चित ही तड़प का इंतजार अहान शेट्टी के लिए था मगर लेखक-निर्देशक ने उनकी पार्टी खराब कर दी.


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