Shershaah Review: फौजी के रुतबे से बड़ा कोई रुतबा नहीं होता. वर्दी की शान से बड़ी कोई शान नहीं होती. देश प्रेम से बड़ा कोई धर्म नहीं होता. अमजेन प्राइम पर रिलीज हुई फिल्म शेरशाह (Shershaah) शुरू से अंत तक यही एकमात्र संदेश देती है. तमिल में बतौर निर्देशक आठ फिल्में बना चुके विष्णुवर्द्धन पहली बार हिंदी में आए हैं. निर्माता करन जौहर की यह फिल्म कारगिल युद्ध (1999) के परमवीर चक्र विजेता शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के जीवन से प्रेरित है. बात-बात में विवादों से उबल जाने वाले इस दौर में निर्माता फिल्म से पहले डिसक्लेमर में साफ कर देते हैं कि इसे शहीद की हू-ब-हू कहानी न माना जाए. यह सिर्फ उनके जीवन की घटनाओं से प्रेरित है. जिसमें सेना से जुड़े दृश्यों को फिल्माने में बहुत सावधानी बरती गई है. कोई भूल-चूक हो भी तो वह जानबूझ कर या किसी की भावनाओं को आहत करने के लिए नहीं है. सिनेमा संवेदनशील दौर में संभल-संभल कर कदम बढ़ा रहा है. जरा-सी गलती निर्माता-निर्देशक-कलाकार को देशद्रोही-समाजद्रोही बता कर कठघरे में खड़ा कर सकती है.


कारगिल युद्ध का यूं तो कई हिंदी फिल्मों में जिक्र आया है मगर इस पर एलओसी, लक्ष्य, स्टंप्ड, धूप, टैंगो चार्ली और मौसम से लेकर गुंजन सक्सेना जैसी फिल्में बनी हैं. मगर शेरशाह इनसे अलग है क्योंकि यह पूरी तरह एक शहीद की असली बहादुरी पर केंद्रित है. फिल्म Shershaah खास तौर पर दिखाती है कि हमारी सेना के जांबाजों ने कैसे 16 हजार से 18 हजार फीट ऊंची ठंडी-बर्फीली चोटियों पर चढ़ते-बढ़ते हुए दुश्मन पाकिस्तानी फौज को परास्त किया था. वह कैप्टन विक्रम बत्रा और उनके जैसे बहादुर ही थे, जिनकी बदौलत देश ने तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ के आदेश पर हमारी सीमा में घुसी पाकिस्तानी सेना को ठिकाने लगाया. पाकिस्तान का झूठ और ढिठाई ऐसी थी कि उसने युद्ध छेड़ने के आरोप से इंकार करते हुए अपने सैनिकों की लाशें स्वीकारने तक से इंकार कर दिया था. तब हमारी सेना ने पूरे सम्मान के साथ उन्हीं चोटियों पर दुश्मन सिपाहियों को दफन किया. फिल्म में यह बात बताई गई है, जो निश्चित ही पाकिस्तान को आईना दिखाएगी.




दो घंटे से अधिक की शेरशाह (Shershaah) में यूं तो सैनिक के रूप में विक्रम बत्रा के पराक्रम पर फोकस है लेकिन इसे आम लोगों के लिए मनोरंजक बनाने के वास्ते लव स्टोरी भी सधे हुए अंदाज में पिरोई गई है. चंडीगढ़ के एक कॉलेज में पढ़ने वाले विक्रम बत्रा (सिद्धार्थ मल्होत्रा) को सिख-बाला डिंपल (कियारा आडणाणी) से मोहब्बत हो जाती है. जो धीरे-धीरे बढ़ते हुए शादी के इरादों तक पहुंचती है मगर डिंपल के पिता को रिश्ता मंजूर नहीं. बावजूद इसके जब लगता है कि यह प्यार सुखद अंजाम तक पहुंचेगा, तभी कारगिल युद्ध शुरू हो जाता है और घरवालों से मिलने आया विक्रम तुरंत ड्यूटी पर लौट जाता है. जब दोस्त उससे कहता है कि जल्दी लौटना तो विक्रम का जवाब होता हैः तिरंगा लहरा कर आऊंगा, नहीं तो उसमें लिपट कर आऊंगा.


Shershaah निर्देशक विष्णुवर्द्धन ने कैप्टन विक्रम बत्रा के शौर्य को विस्तार से फिल्माया है और पाकिस्तानियों द्वारा कब्जाई दो चोटियों को छुड़ाने में उनकी भूमिका पर विशेष फोकस किया है. युद्ध-मिशन पर जाते कैप्टन विक्रम बत्रा को कोडवर्ड मिलता है, शेरशाह. मिशन सफल होने पर उनकी तरफ से क्या संकेत दिया जाएगा, अपने सीनियर के इस सवाल पर बत्रा का जवाब होता हैः ये दिल मांगे मोर. पहले नायक पॉइंट 5140 चोटी को पाकिस्तानियों से आजाद करता है और फिर पॉइंट 4875 को. पॉइंट 4875 को पाकिस्तानियों से मुक्त कराने का सीधा मतलब था, युद्ध का खत्म होना क्योंकि इस चौकी से दुश्मन भारतीय सीमा में 70 किलोमीटर तक के इलाके को नियंत्रित कर सकता था. इससे पहले कि पाकिस्तानी फौज को यहां नए सिरे से हथियार और रसद पहुंचते, कैप्टन बत्रा और उनकी टुकड़ी ने अपनी जान पर खेल कर पॉइंट 4875 पर बनी पाकिस्तानी पोस्ट को नष्ट कर दिया. इसी में वह शहीद हो गए. बत्रा की उम्र तब मात्र 24 साल थी. पॉइंट 4875 की गिनती दुनिया के सबसे खतरनाक युद्ध स्थलों में की जाती है.




शेरशाह (Shershaah) में कारगिल युद्ध का पूरा अभियान रोचक ढंग से दिखाया गया है और लड़ाई के दृश्यों को विश्वनीय ढंग से फिल्माया गया है. फिल्म दर्शक को युद्धभूमि में ले जाती है. नवयुवक विक्रम बत्रा की भूमिका को सिद्धार्थ मल्होत्रा ने खूबसूरती से निभाया है और उनका अभिनय यहां अच्छा है. सैनिक की कद-काठी में वह जमे हैं. वहीं कियारा आडवाणी भी डिंपल की भूमिका में संजीदा दिखती हैं. अन्य सहयोगी कलाकार अपनी-अपनी जगह सही हैं. शेरशाह की कथा, पटकथा और संवाद संदीप श्रीवास्तव ने लिखे हैं. उन्होंने अपना काम सफलतापूर्वक किया है. कमलजीत नेगी ने कैमरे पर पूरा नियंत्रण रखा और युद्ध के दृश्यों को जीवंत बनाया है. ऐक्शन दृश्य भी यहां रोमांचित करने वाले हैं. 15 अगस्त आ रहा है और यह देशभक्ति के जज्बे का दौर है. ऐसे में शेरशाह निश्चित ही इस मौसम की फिल्म है.