Meenakshi Sundareshwar Review: शादियां भले ही स्वर्ग में तय हों मगर शादियों पर फिल्में धरती पर ही बनती हैं. विवाह की थीम वाली कहानियां सफलता की गारंटी भले न दें पर उनमें एंटरटेनमेंट के मौके अधिक होते हैं. मीनाक्षी सुंदरेश्वर नए जमाने की ऐसी शादी की बात करती है, जिसमें रिश्ते का नाम हैः लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप. बदलते वक्त के साथ इंसान को अपनी सोच और व्यवस्था लगातार बदलनी पड़ती है. खास तौर पर इंटरनेट के प्रसार के बाद सोशल मीडिया युग में जिस तेज रफ्तार से पारिवारिक-सामाजिक ताना-बाना बदला है, उसने हर किसी को हैरान किया है. नई चुनौतियां पेश की हैं. मदुरै के तमिल भाषी मीनाक्षी-सुंदरेश्वर की शादी भी इसी की मिसाल है.


सुंदरेश्वर (अभिमन्यु दासानी) का परिवार मैरिज ब्यूरो वालों के बताए पते की जगह मीनाक्षी (सान्या मल्होत्रा) के घर पहुंच जाता है. वहां भी मीनाक्षी के लिए संभावित वर का इंतजार हो रहा है. जब तक दोनों परिवारों की गलतफहमी दूर हो तब तक तार जुड़ जाते हैं और शादी की बात पक्की हो जाती है. ट्विस्ट तब आता है जब शादी के अगले ही दिन सुंदरेश्वर को बेंगलुरु की एक ऐप डेवलप करने वाली कंपनी से जॉब ऑफर लेटर आता है और उसे जाना पड़ता है. कंपनी के मालिक की शर्त है कि वह केवल अविवाहित लोगों को काम पर रखेगा. अनुबंध साल भर का है. सुंदरेश्वर झूठ बोल कर बेंगलुरु में रह जाता है. मीनाक्षी के साथ अब कैसा होगा रिश्ता, कैसे होगा इस रिश्ते का निर्वाह. तमाम दबावों और भावनात्मक उतार-चढ़ावों के बीच क्या टिका रह सकेगा रिश्ता. कहानी इन्हीं पन्नों को खोलती है.




नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई करीब दो घंटे 20 मिनट की इस फिल्म की खूबी लीड ऐक्टरों का अभिनय है. सान्या और अभिमन्यु ने इन किरदारों को जीया है. खास तौर पर सान्या प्रभावित करती हैं. कई मौकों पर लगता है कि वह फिल्म को अपनी क्षमताओं से ही अकेले आगे बढ़ा रही है. सान्या मल्होत्रा ने आमिर खान की छाया में दंगल से शुरुआत करने के बाद तेजी से अपनी पहचान बनाई है. उनका चयन समझदारी भरा है. वह तेजी से लीक से हट काम करने वाली अभिनेत्री के रूप उभरी हैं. विशाल भारद्वाज की पटाखा के गलत चुनाव के अतिरिक्त उनके खाते में बधाई हो, फोटोग्राफ, शकुंतला देवी, लूडो और पगलैट जैसी फिल्में हैं, जिसमें वह अपने किरदारों में बखूबी निखर कर आती हैं.


वहीं पहली फिल्म मर्द को दर्द नहीं होता के लिए फिल्मफेयर का बेस्ट मेल डेब्यू अवार्ड (2018) पाने वाले अभिनेत्री भाग्यश्री के बेटे अभिमन्यु का यह काम पिछली फिल्म से बेहतर है. यहां दोनों ऐक्टर हिंदी भाषी होते हुए, तमिल भाषी किरदारों में हैं और फिट हैं. उनकी मेहनत दिखती है. अभिमन्यु का किरदार जहां शांत-गंभीर है, वहीं सान्या चुलबुली-चंचल और बोलने वाली हैं. दोनों की केमिस्ट्री अच्छी है. खास तौर पहले हाफ में जब उनकी जिंदगी में चीजें सही दिशा में जा रही होती हैं. मगर इसमें संदेह नहीं कि सान्या बीस साबित होती हैं.




फिल्म हालांकि लांग डिस्टेंस रिलेशनशिप/मैरिज की मुश्किलों को सामने लाती है लेकिन उसके केंद्र में प्यार है. इसलिए परेशानियों की तीव्रता यहां कम है. कहानी एक स्तर पर रीयल होने के बावजूद दूसरे स्तर पर रोमांटिक बनी रहती है. यह बात कहानी का मजा थोड़ा कम करती है. लेखक-निर्देशक यहां चूके हैं. परंतु प्रेम के त्रिकोण की संभावना के बावजूद लेखक-निर्देशक उस दिशा में नहीं बढ़े और इसे बॉलीवुड मसालों में डूबने बचा लिया. पूरी फिल्म के रंग-ढंग में साउथ का फ्लेवर है और यह स्क्रीन को खूबसूरत बनाता है.


साउथ की कहानी में अगर सुपरस्टार रजनीकांत की भी एंट्री हो जाए, तो फिर कहने को कुछ बाकी नहीं रह जाता. लेखक जोड़ी अर्श वोरा और विवेक सोनी ने रजनीकांत के साथ कहानी में एक नया एंगल जोड़ा है, जो रोचक है. कहानी में मीनाक्षी और सुंदरेश्वर के परिवार के तमाम सदस्यों की मौजूदगी के बावजूद फोकस लीड़ जोड़ी पर ही है. यहां गीत-संगीत आकर्षक और पारंपरिक बॉलीवुड संगीत से अलग है. गीत राजशेखर ने लिखे हैं. उनमें लयात्मकता और नटखटपन के साथ संवेदना भी है. संगीत और बैकग्राउंड म्यूजिक जतिन प्रभाकरन का है. कैमरा वर्क बढ़िया है. मीनाक्षी सुंदरेश्वर उन युवा दर्शकों को पसंद आएगी, जो हमारे समय की रोमांटिक फिल्में देखना पसंद करते हैं, जिनमें सीधे-सरल प्यार के साथ नए जमाने के रिश्तों की बारीकियां और जटिलताएं भी दिखाई जाती हैं.