जिस फिल्म ने बीते बरस के गुजरते-गुजरते हिंदी बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया, वह अब ओटीटी प्लेटफॉर्म पर है. अल्लू अर्जुन आज हिंदी के दर्शकों के लिए अनजाना नाम नहीं हैं और पुष्पा सुन कर अब किसी को राजेश खन्ना का डायलॉग... ‘पुष्पा, आई हेट टीयर्स’ याद नहीं आ रहा. अल्लू अर्जुन स्टारर पुष्पाः द राइज जोर-शोर से यह घोषणा करती है कि इसे फ्लावर मत समझना, यह फायर है. अमेजन प्राइम पर यह फिल्म हिंदी में रिलीज हुई है. जिसका लोगों को इंतजार था.


मूल रूप से तेलुगु में बनी पुष्पाः द राइज को हिंदी में मिली विशाल सफलता बताती है कि बॉलीवुड के दिग्गज मेकर आम ऑडियंस के लिए फिल्म बनाने की कला भूल चुके हैं. हिंदी फिल्मों के वही सारे फार्मूले जो किसी दौर में हमारे हीरो को एंग्री यंग मैन बनाते थे, वह आपको पुष्पाः द राइज में मिलेंगे. कच्चे घरों और संकरी गलियों में रहने वाला हीरो, जिसका पिता नहीं है. जिसकी मां पर लोगों ने जुल्म किए हैं. हीरो, जो काम के नाम पर कुलीगीरी या मजदूरी करता है लेकिन जिसके दिल में आसमान की ऊंचाइयां छूने की आग धधक रही है. हीरो, जिसकी खूबसूरत हीरोइन पहले ना-ना कहती है और फिर मुस्करा कर शर्माते हुए धीरे-से हां कह देती है. जिस खूबसूरत हीरोइन को कामी विलेन हड़प लेना चाहता है. लेकिन हीरो अपने क्रोध की लपटों और हाथियों जैसे बल से सब कुछ ध्वस्त करते हुए आखिर में ऊंचाई हासिल कर ही लेता है. उसके पास अब क्या नहीं है. वह किसी से भी यह कहने की हैसियत रखता है कि मेरे पास गाड़ी है, बंगला है, पैसा है... और इस बार उसके पास मां भी है और प्रेमिका भी. पुष्पाः द राइज एंग्री मैन का यही नया अवतार है. 'पुष्पा' कुछ नहीं से अपना सफर शुरू करता है और पौने तीन घंटे खत्म होते-होते आप पाते हैं कि अंत में उसके पास सब कुछ है.


पुष्पा की कहानी में आपको भले ही लगे कि इसमें नया क्या है. लेकिन इसका अंदाज-ए-बयां नया है. अपने समय और जमाने के हिसाब से है. इसका हीरो बॉलीवुड के चिकने-अहंकारी चेहरों से विपरीत है. वह दढ़ियल है और उसे अपनी स्थिति पर गर्व है. उसका आत्मविश्वास, उसकी कद-काठी और उठने-बैठने-चलने का ढंग उसे आज के बॉलीवुड सितारों से अलग बनाता है. फिल्म को जिस तरह से शूट किया गया है, वह एक अलग दृश्य-अनुभव है. अभावग्रस्त हीरो का एक-एक दृश्य भव्य अमीरी से रचा गया है. फिल्म में जिन लाइट्स और कलर्स का इस्तेमाल किया गया है, वह बॉलीवुड फिल्मों के बनाए फ्रेम को तोड़ते हैं और यह आंखों को सुखद लगता है. ऐक्शन यहां शानदार और नया है. किसी हॉलीवुड फिल्म की नकल नहीं है. इसी तरह अल्लू अर्जुन, रश्मिका मंदाना और समांथा के डांस आकर्षित करते हैं. उनके स्टेप्स लय के साथ उत्तेजना जगाते है. इस म्यूजिक और डांस में रिपीट वैल्यू है.


पुष्पाः द राइज आंध्र प्रदेश के शेषाचलम के लाल चंदन के वृक्षों के घने-अंधेरे जंगलों की कहानी है. यहां पुष्प राज (अल्लू अर्जुन) लॉरी ड्राइवर है, जो काटे गए पेड़ों को जंगल से बाहर निकाल कर अलग-अलग ठिकानों तक पहुंचाता है. चंदन के स्मगलिंग माफिया पर पुलिस की नजर है और वह तस्करों को पकड़ती भी है. मगर असली खिलाड़ी पुलिस की पहुंच से बाहर होते हैं. पुष्पा अपने माफिया सरदारों को तरकीबें बताता है कि कैसे पुलिस की आंखों में धूल झोंक कटे हुए लाल चंदन के पेड़ों को सही जगहों तक पहुंचाया जा सकता है. यहीं से उसकी तरक्की की राह निकलती है और जिंदगी में खूबसूरत श्रीवल्ली (रश्मिका मंदाना) भी आती है. मगर वक्त एक-सा नहीं रहता और अपनी महत्वाकांक्षा की वजह से इसी धंधे में लगे लोगों से पुष्पा का संघर्ष शुरू हो जाता है. उसी दौरान पुलिस का एक खतरनाक और क्रूर अफसर भंवर सिंह शेखावत (फहद फासिल) भी पुष्पा के इलाके में आ जाता है. अब पुष्पा क्या करे. यह कहानी दूसरे भाग यानी पुष्पाः द रूल में देखने को मिलेगी. दूसरा भाग 2022 में ही रिलीज होगा.


इसमें संदेह नहीं कि यह फिल्म देखने लायक है. इतना जरूर है कि श्रीवल्ली और पुष्पा के प्रसंग में कुछ संवाद और दृश्य फेमिनिस्टों को अखर सकते हैं. उन्हें पुष्पा द्वारा नायिका का पीछा करने, उसका एक ‘किस’ पैसों से खरीदने की कोशिश करने समेत कुछ अन्य जगहों पर फिल्म स्त्री-विरोधी मानसिकता का शिकार लग सकती है. मगर यह गहरे और अलग विश्लेषण की बातें हैं. पुष्पाः द राइज के हिंदी संवादों को अच्छे लिखा और डब किया गया है. एक रोचक कहानी के खांचे में सजी मसाला फिल्म का पूरा मजा पुष्पाः द राइज में आता है. हिंदी में लंबे समय बाद दिख रहा है कि दर्शक हीरो के अंदाज को याद रखें और कुछ उसे कॉपी करने की भी कोशिश करें. फिल्म की मेकिंग से लेकर सभी एक्टरों के काम तक पूरा मामला यहां बांधे रखने वाला है. एक बार आप फिल्म देखना शुरू करें तो समय का पता ही नहीं चलता. फिल्म खत्म होने पर दूसरा पार्ट की प्रतीक्षा बनी रहती है.