My Melbourne Review: बड़े वक्त बाद एक ऐसी फिल्म आई है जिसमें चार फिल्में हैं, दो घंटे की इस फिल्म में चार अलग अलग कहानियां हैं. हर कहानी लगभग आधे घंटे की है और कुछ ना कुछ कहकर जाती है, समझाकर जाती है, महसूस कराकर जाती है. ये चारों कहानियां एंड में एक दूसरे से नहीं मिलती, क्योंकि ये एक टिपिकल बॉलीवुड फिल्म नहीं है. ये एक अलग तरह का सिनेमा है, जो बड़े आराम से कुछ कहने की कोशिश करता है, लेकिन क्या आप इसे सुनना चाहेंगे, सुनना जरूर चाहिए क्योंकि अगर सुनेंगे नहीं तो ऐसा सिनेमा बनेगा नहीं.
कहानीइस फिल्म में पहली कहानी है नंदिनी जो इंद्रनील नाम के शख्स की जो इंडिया का है और LGBT कम्यूनिटी से है, मेलबर्न में अपने पार्टनर के साथ रहता है. सालों बाद उसके पिता उससे मिलने आते हैं, उसकी मां की अस्थियां लेकर. क्या पिता अपने बेटे की च्वाइस को अपना पाएगा? यही इस कहानी में देखने को मिलता है. दूसरी कहानी है Jules, जो एक रेस्टोरेंट में काम करने वाली लड़की साक्षी और एक बेघर महिला की कहानी है, दोनों के बीच कैसे दोस्ती होती है, यही इस कहानी में देखने को मिलता है.
तीसरी कहानी है Emma जो एक डांसर की कहानी है जिसे ठीक से सुनाई नहीं देता और इस वजह से उसके साथ भेदभाव होता है. फिर कैसे वो अपने सपने को पूरा करती है. चौथी कहानी है Setara जो एक 15 साल की अफगानी रिफ्यूजी की कहानी है, जो अतीत के जख्मों को भुलाकर क्रिकेट के जरिए नई जिंदगी शुरू करना चाहती है. लेकिन उसकी मां क्यों ऐसा नहीं चाहती?
कैसी है फिल्म? ये एक अलग तरह की फिल्म है, ये सबके लिए नहीं है. लेकिन जिनके लिए है उनके दिल को जरूर छू जाएगी. इस तरह की फिल्में कम बनती हैं, क्योंकि ऐसी फिल्मों का दर्शक कम है. आज दर्शक खऱाब कंटेट में कमियां निकालता है लेकिन फिर नादानियां जैसी खराब फिल्म इसलिए देखता भी है क्योंकि उसे उसको ट्रोल करना है. यहां इन चारों कहानियों के जरिए खुद से प्यार करने, दूसरों को माफ करने देने, खुद पर भरोसा जताने जैसी कई बातों को बड़े प्यार से समझाया गया है. फिल्म में हर कहानी आधे घंटे में खत्म हो जाती है इसलिए चीजें जल्दी जल्दी बदलती हैं. कोई धूम धड़ाके वाली चीजें नहीं हैं, बेकार का एक्शन नहीं है, इमोशन्स हैं और ऐसे हैं कि अगर आप उन्हें समझ गए तो इस फिल्म को पंसद करेंगे.
डायरेक्शन
Emma नाम की कहानी को रीमा दास ने डायरेक्ट किया है, नंदिन को ओनिर ने, Jules को इम्तियाज अली ने और Setara को कबीर खान ने डायरेक्ट किया है. चारों कहानियों का मिजाज अलग है लेकिन चारों कुछ ना कुछ कहकर जाती हैं. डायरेक्शन अच्छा है और आप कहानियों से कनेक्ट कर जाते हैं. आखिरी कहानी में क्रिकेट की वजह से एक मसाला भी आता है लेकिन इमोशन के साथ.
कुल मिलाकर इस तरह की फिल्में बननी चाहिए और इन्हें देखना जाना चाहिए तो थिएटर जाइएगा.
रेटिंग- 3 स्टार्स
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