Chatrapathi Movie Review: क्या हम बेवकूफ हैं...क्या हमारे माथे पर लिखा है कि हम पागल हैं कि हमें कुछ भी दिखाया जाएगा और हम देख लेंगे...ये फिल्म देखते हुए यही ख्याल दिमाग में आते हैं. लोगों को लगता है कि बॉलीवुड ही कुछ नहीं करता और  खराब फिल्में बनाता है लेकिन ये फिल्म देखकर लगता है कि इससे खऱाब कुछ नहीं हो सकता और रीमेक सिर्फ बॉलीवुड वाले नहीं साउथ वाले भी बनाते हैं और बॉलीवुड से भी घटिया बनाते हैं. ऐसी खराब फिल्म को अगर बॉर्डर पर चला दिया जाए तो दुश्मन भी भाग जाएगा वो भी इंटरवल से पहले.


ये फिल्म साल 2005 में आई एस एस राजामौली और प्रभास की फिल्म छत्रपति का ही रीमेक है. राजमौली इस वक्त देश के सबसे बड़े फिल्ममेकर है. प्रभास बाहुबली हैं और ये रीमेक देखकर मुझे लगा कि राजामौली को इसके मेकर्स पर मानहानि का दावा ठोक देना चाहिए कि मेरी फिल्म के साथ ऐसा क्यों किया और जिन दर्शकों ने ये फिल्म देखनी उनके पैसे वापस करने के साथ ही उन्हें कुछ भत्ता भी देना चाहिए. 


शुरुआत से ही ऐसा लगता है कि ये चल क्या रहा है. ये कोई 70 के दशक की फिल्म है क्या, बेकार का ड्रामा जो कहीं इम्प्रेस नहीं करता और फिर जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती है आपका गुस्सा बढ़ने लगता है. आपको लगता है कि तबीयत खराब हो रही है और फिर तो ऐसे ऐसे सीन आते हैं कि आपकी तबीयत वाकई खराब हो जाती है लेकिन जनहित में इस फिल्म को पूरा देखना जरूरी था क्योंकि दर्शकों को इस टॉर्चर से बचाना जो था. 


कहानी
सबको रॉकी भाई बनना है. जी हां यही कहानी है, एक आम सा लड़का जो एक जगह काम करता है. गैरकानूनी धंधों का हिस्सा वो अचानक उस धंधे पर कब्जा कर लेता हैं. इस कहानी में एक मां है. एक सौतेला भाई है और सैकड़ों विलेन और गुंडे हैं. कहानी इतनी पुरानी और सड़ी हुई लगती है कि आपको लगता है कहीं गलती से कोई पुरानी फिल्म तो नहीं चल गई. आगे की कहानी देखने के लिए आपको थिएटर जाने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि कहानी है ही नहीं.


एक्टिंग
Bellamkonda Sreenivas कोई खास इम्प्रेस नहीं करते. काफी लाउड लगते हैं और कमजोर कहानी औऱ स्क्रीनप्ले की वजह से उनकी एक्टिंग और खराब लगती है. नुसरत भरुचा की ये पैन इंडिया फिल्म है. नुसरत अच्छी एक्ट्रेस हैं लेकिन यहां वो कुछ खास नहीं कर पाती. काफी देर तक वो फिल्म में हैं ही नहीं और जब आती हैं तो लगता है कि अरे ये भी हैं. शऱद केलकर जैसे अच्छे एक्टर को भी वेस्ट कर दिया गया है.


म्यूजिक
पहले से खराब इस फिल्म में जब हर थोड़ी देर में गाना आता है तो वो आपके सब्र का इम्तिहान लेता है. अब आप हर थोड़ी देर में तो थिएटर से बाहर नहीं जा सकते ना.


ये 2005 में आई फिल्म का रीमेक है. उस वक्त ये कहानी अच्छी लगी होगी लेकिन आज वक्त बदल गया है और फिल्म मेकर्स को भी ये सोचना चाहिए क्योंकि दर्शकों को अगर आप बेवकूफ समझेंगे तो दर्शक अपने तरीके से जवाब देंगे.