Bhuj Review: बॉलीवुड का सिनेमा आजकल बड़े दिल से देश के इतिहास को पर्दे पर रच रहा है. यह उसका फेवरेट विषय हो गया है. लेकिन इसमें कुछ सुविधा भी है और कुछ दुविधा भी. सुविधा यह कि पन्नों में दर्ज घटना पर आधारित रेडिमेड कहानी मिल जाती है और दुविधा यह कि कितनी हकीकत दिखाएं और कितना फसाना. 


वैसे, अच्छी बात यह है कि देशप्रेम की भावनाएं फिलहाल दर्शकों का प्रेम मिलने की गारंटी बनी हुई हैं, विचार और तर्क लगभग हाशिये पर हैं. इसी कड़ी में ताजा फिल्म है, ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी हॉटस्टार पर आज शाम रिलीज हुई भुजः द प्राइड ऑफ इंडिया. सितारों के लिहाज से इसमें ऐसे नाम हैं जो सहज ही दर्शकों को आकर्षित कर लें. अजय देवगन, संजय दत्त, सोनाक्षी सिन्हा से लेकर अपनी डांस प्रतिभा और मासूम खूबसूरती से तमाम दिलों पर इन दिनों राज कर रहीं नोरा फतेही. इन सबको मिला कर देखें तो सितारों के बहाने फिल्म के लिए एक अच्छी खासी फैन फॉलोइंग बन जाती है.



राजनीति और समाज में इधर राष्ट्रवाद मुख्य स्वर बना हुआ है. ऐसे में 'भुजः द प्राइड ऑफ इंडिया' उन फिल्मों में है, जिसका इंतजार किया जा रहा था. यह बनी तो बड़े पर्दे के लिए थी, मगर कोविड संकट के कारण सिनेमाघरों तक नहीं पहुंच सकी. अधिक विलंब न करते हुए अब इसे छोटे स्क्रीन पर उतारा गया है. फिल्म 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध की सच्ची घटनाओं पर आधारित है. जिसमें तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के मोर्चे पर लगातार पस्त पड़ते पाकिस्तान के हुक्मरानों, सेना अधिकारियों ने सोचा कि भारत पर पश्चिम दिशा से हमला किया जाए.




मोर्चों पर लड़ना भारत के लिए संभव नहीं होगा. अतः पश्चिम में जीत हासिल करके पूर्वी मोर्चे की सौदेबाजी की जाएगी क्योंकि यह बात उन्हें समझ आ चुकी थी कि पूर्वी पाकिस्तान उनके हाथ से निकल गया है. उसकी जगह बांग्लादेश बनेगा. अतः आखिरी उम्मीद पालते हुए पाकिस्तानी तानाशाह और सेनाध्यक्ष ह्याया खान का संवाद था कि पश्चिम में अप्रत्याशित हमले से राजस्थान और गुजरात के इलाकों को जीत कर वह भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ दिल्ली में चाय पीएंगे. बांग्लादेश के एवज में कुछ मोलभाव करेंगे. भुजः द प्राइड ऑफ इंडिया में यह सब विस्तार से समझाया और दिखाया गया है.




पाकिस्तान ने अपने इन नापाक इरादों के साथ राजस्थान, पंजाब और गुजरात की हवाई पट्टियों पर बम बरसाए थे. खास तौर पर/कच्छ स्थित भुज की हवाई पट्टी पर सैकड़ों बम बरसा कर उसे पूरी तरह बेकार कर दिया था. ताकि जब पाकिस्तान का जमीनी हमला हो भारतीय विमान उसे रोकने के लिए यहां से न उड़ पाएं. हालांकि भारत ने जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान के कराची बंदरगाह और कई हवाई ठिकानों को बर्बाद कर दिया था.




भुजः द प्राइड ऑफ इंडिया की कहानी मुख्यतः भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक (अजय देवगन) के बहादुरी और दूरदर्शी फैसलों की बात करती है. जब पाकिस्तानी हमले से डर कर हवाई पट्टी बनाने वाले इंजीनियर भाग गए, दर्जनों सैनिक घायल होकर अस्पताल पहुंच गए तो उन्होंने पास के गांव के करीब 300 स्त्री-पुरुषों की मदद से रातोंरात फिर से हवाई पट्टी तैयार करा दी. जिससे सैनिकों को लाया वायुसेना का विमान उतर सका और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया गया. 




आम लोगों द्वारा जान पर खेलकर बनाई इस हवाई पट्टी ने न केवल वायुसेना का हौसला बुलंद किया बल्कि पूरी आन-बान-शान से देश की जीत का इतिहास भी स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया. फिल्म बताती है कि आम आदमी समय आने पर कैसे अपना घर-बार त्याग कर देश और सेना के साथ खड़ा हो जाता है.


विजय कार्णिक के रोल में अजय देवगन जमे हैं. अपनी आंखों से अभिनय करने वाले अजय यहां भी दर्शक में भावनाओं का ज्वार पैदा करने में कामयाब हैं. फौज की मदद करने वाले, रॉ की सदस्यता पाए बहादुर ग्रामीण रणछोड़दास पगी बने संजय दत्त ने अपनी चिर-परिचित शैली में बढ़िया संवाद बोले हैं. उनका ऐक्शन भी जबर्दस्त है. निश्चित ही सिनेमाघर में उन्हें इस काम के लिए तालियां मिलतीं. सोनाक्षी सिन्हा अपने रोल को निभाने में कामयाब रही हैं मगर नोरा फतेही अपनी छोटी-सी भूमिका में छाप छोड़ जाती हैं.




फिल्म को भव्य ढंग से शूट किया गया और कैमरा वर्क जबर्दस्त है. वीएफएक्स ने हवाई हमलों और युद्ध के दृश्यों में जान डाली है. एडटिंग कसी हुई है और देखने वाले को पता नहीं लगता कि समय कब तेज हवा की तरह गुजर गया. स्क्रिप्ट में जरा दम होता तो फिल्म का प्रभाव अधिक हो सकता था. रोचक बात है कि इसे चार लोगों ने मिलकर लिखा है. टीवी के लिए कई सीरियल बना चुके अभिषेक दुधैया पहली बार बॉलीवुड में बतौर निर्देशक उतरे हैं और भव्य फिल्म बनाने में सफल रहे. 




उन्होंने फिल्म को इतना अधिक तथ्यपरक रखा है कि कहीं-कहीं डॉक्युमेंट्री जैसा फील कराती है. वार-फिल्म होने के बावजूद निर्देशक ने इसमें गीत-संगीत को भी पर्याप्त जगह दी है. अच्छा यह है कि कहानी में यह गाने रुकावट नहीं बनते. इस 15 अगस्त को आजादी की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर अपनी सेनाओं के शौर्य पर गर्व जगाने वाली यह सटीक फिल्म है.