Bhakshak Review: कुछ फिल्में एंटरटेनमेंट के लिए होती हैं. कुछ पैसा कमाने के लिए होती हैं, कुछ क्यों बनाई जाती हैं समझ से परे होता है. लेकिन कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जिन्हें देखते हुए आपकी रूह कांप जाती है. आप बेचैन हो जाते हैं, आपको गुस्सा आता है, आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि ये हम किस तरह के समाज में रहते हैं. यहां तो जानवर भी इंसानों से बेहतर हैं. ऐसी ही फिल्म है भक्षक. ऐसी फिल्म बनाने के लिए हिम्मत चाहिए और देखने के लिए और ज्यादा हिम्मत चाहिए.


कहानी
फिल्म कहानी है शेल्टर होम में नाबालिग लड़कियों के साथ होने वाले दुष्कर्मों की. ऐसा ही कांड यूपी के मुजफ्फरपुर में हुआ था लेकिन यहां जगह का नाम बदल दिया गया है. यहां वो जगह है मुनव्वरपुर. यूट्यूब चैनल चलाने वाली पत्रकार वैशाली सिंह को एक खबरी आधी रात को ये खबर देता है. जिस पर सरकार ने चुप्पी साधी हुई है. न्याय मिलने का कोई तरीका नहीं है. ऐसे में वैशाली और अधेड़ उम्र के उनके कैमरामैन भास्कर यानि संजय मिश्रा ठान लेते हैं कि वो इंसाफ के लिए लड़ेंगे. वो कैसे लड़ते हैं, क्या वैशाली इंसाफ की ये जंग जीत पाती है. इसके लिए आपको नेटफ्लिक्स पर ये शानदार फिल्म देखनी होगी. 


कैसी है फिल्म
पहला सीन ऐसा है कि आपको लगता है कि आप फिल्म नहीं देख पाएंगे. आप हिल जाते हैं लेकिन फिर आप देखना चाहते हैं कि इंसानियत किस हद तक गिरती है और इंसाफ कैसे मिलता है. इस फिल्म को अच्छी रिसर्च के साथ बनाया गया है. एक्टर्स का सेलेक्शन काफी अच्छा है. भूमि पेडनेकर एक पत्रकार और हाउसवाइफ के रोल को किस तरह से निभाती हैं ये फिल्म की सबसे खास बात है. फिल्म का एक भी सीन ऐसा नहीं कि आपको बेकार लगे या ऐसा लगे कि इसकी जरूरत नहीं थी.. ये फिल्म चौंकाती है, डराती है और हिलाती है.


एक्टिंग
भूमि पेडनेकर इस तरह के सिनेमा के लिए ही बनी हैं. वो एक्टर पहले हैं स्टार बाद में और यहां वो एक्टिंग की ऐसी कहानी गढ़ती हैं कि आपको बड़े बड़े स्टार फीके लगने लगते हैं. भूमि ने इस किरदार में खुद को जैसे ढाल लिया है. तारीफ शाहरुख खान की प्रोड्क्शन कंपनी रेड चिलीज की भी करनी होगी कि उन्होंने इस रोल के लिए भूमि को चुना क्योंकि शायद उनसे बेहतर और कोई हो ही नहीं सकता था. भूमि का अभिनय यहां बताता है कि एक्टिंग किसे कहते हैं और एक्टिंग की कैसे जाती है. संजय मिश्रा का काम हमेशा की तरह शानदार है. अधेड़ उम्र के कैमरापर्सन के किरदार को उन्होंने शिद्दत से निभाया है. आदित्य श्रीवास्तव की एक्टिंग भी शानदार है. बंसी साहू के किरदार में आदित्य ने जान डाल दी है. साई तम्हनकर और सूर्या शर्मा की एक्टिंग भी बढ़िया है. बाकी के सभी कलाकारों ने अपने किरदारों के साथ पूरा इंसाफ किया है.


डायरेक्शन
पुलकित ने फिल्म को अच्छे से डायरेक्ट किया है. मुद्दे पर आने में वक्त नहीं लिया और मुद्दे की गंभीरता के हिसाब से फिल्म को ढाला गया है. फिल्म सही जगह पर चोट करती है और जोर से चोट करती है और ऐसी फिल्में अगर चोट ना करें तो उनके बनने का फायदा नहीं है.


कुल मिलाकर ये फिल्म देखी जानी चाहिए और हर हाल में देखी जानी चाहिए.


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