World Wetland Day 2024: दुनिया में कहीं पानी है तो कहीं जमीन. लेकिन कुछ जगहें ऐसी भी हैं जहां पानी और जमीन आपस में मिलते हैं. दुनिया में ऐसे हिस्से जहां जमीन और पानी दोनों साथ साथ मौजूद हैं, वेटलैंड कहलाते हैं. दुनिया और प्रकृति के पारिस्थतिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए वेटलैंड होना बहुत ही जरूरी है. इसलिए हर साल दो फरवरी को विश्व आर्दभूमि दिवस यानी वर्ल्ड वेटलैंड डे मनाया जाता है.

 

क्यों जरूरी है वेटलैंड 

 वेटलैंड इसलिए जरूरी है क्योंकि ये पानी के प्रदूषण को कम करता है और जीव जंतुओं और पौधों को भी विकसित करने में मदद करता है. वेटलैंड ही वो जगह है जहां वनस्पतियां और औषधीय पौधे पाए जाते हैं और इनका इस्तेमाल दवाओं के रूप में होता है. 

 

क्यों मनाया जाता है वेटलैंड डे 

वेटलैंड कोई भी हिस्सा हो सकता है, ये तालाब का किनारा भी हो सकता है और नदी और समुद्र का किनारा भी. ऐसी जमीन जो साल भर या साल भर के ज्यादातर समय पानी से भरी रहती हो, वेटलैंड कहलाती है. 2 फरवरी को वेटलैंड डे मनाए जाने का मकसद यही है कि दुनिया में वेटलैंड की अहमियत को समझा जा सके और बचे हुए वेटलैंड को सहेज कर रखा जा सके क्योंकि ये दुनिया के लिए काफी जरूरी है. 

 

कब मनाया जाता है वेटलैंड डे 

दुनिया में झीलों, नदियों और तालाबों के विलुप्त होते अस्तित्व को देखते हुए पहली बार ईरान के रामसर में 2 फरवरी 1971 को वेटलैंड कन्वेंशन आयोजित किया गया था. 1975 में इस कन्वेंशन को पास किया गया और आधिकारिक तौर पर पहला वेटलैंड डे 2 फरवरी 1997 को मनाया गया. भारत की बात करें तो भारत ने इस कन्वेंशन की संधि पर 1982 में साइन किए थे.

 

भारत की चिक्का झील भी है वेटलैंड
  

वेटलैंड कई तरह के होते हैं. तटीय वेटलैंड में खारे पानी की दलदली जमीन और मैंग्रोव्स के साथ साथ एस्टुरीज और लैगून आते हैं. जबकि अन्तरदेशीय वेटलैंड में झील, तालाब, दलदली जमीन और बाढ़े के किनारे आते हैं. वहीं इंसान द्वारा बनाए गए वेटलैंड में मछलियों के लिए बनाए गए तालाब, नमक और धान के खेत आते हैं. आपको बता दें कि ईरान के रामसर वेटलैंड के साथ साथ भारत में ओडिशा की चिक्का झील भी यूनेस्को की लिस्ट में वेटलैंड के रूप में संरक्षित की जा चुकी है.

 

 चिक्का झील के साथ साथ भारत के चार और वेटलैंड भी रामसर स्थल की सूची के रूप में यूनेस्को की धरोहर में शामिल हैं. चूंकि ये वेटलैंड प्रकृति औऱ जीव जंतुओं के साथ साथ औषधीय पेड़ पौधों के लिए भी काफी जरूरी हैं, इसलिए हर साल 2 फरवरी को दुनिया में तरह तरह के कार्यक्रम आयोजित करके सरकारें लोगों को इनका महत्व बताती हैं और इनको संरक्षित करने के प्रयासों को बल दिया जाता है.

 

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