बढ़ते प्रदूषण और खराब होती वायु गुणवत्ता के बीच श्वसन स्वास्थ्य संबंधी जानकारी हासिल करने की संख्या में 20 फीसद का उछाल आया है. स्वास्थ्य देखभाल पोर्टल प्रैक्टो की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली, हैदराबाद और कोलकाता में अक्टूबर और नवंबर 2020 के बीच प्रश्नों का जवाब चाहनेवाले लोगों की संख्या में 20 फीसद की बढ़ोतरी हुई है.


बढ़ते प्रदूषण के बीच जानकारी लेनेवालों की तादाद में इजाफा


विशेषज्ञ वायु प्रदूषण और कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे का दोनों में एकसाथ संबंध जोड़ रहे हैं, ऐसे में लोग ज्यादा से ज्यादा डॉक्टरों से ऑनलाइन सलाह मांग रहे हैं. जानकारी हासिल करने का संबंध ज्यादातर श्वसन मुद्दों, धूल से एलर्जी, अस्थमा, सांस की तकलीफ, सूखी खांसी से है. प्रैक्टो ने प्रेस रिलीज में बताया कि 21-30 साल और 60 साल से ऊपर के लोगों ने ज्यादा जानकारी मांगी.


21-30 साल की आयु ग्रुप में 34 फीसद और 60 साल से ऊपर की आयु ग्रुप में 28 फीसद लोगों ने जानकारी तलब की. रिपोर्ट में बताया गया कि 79 फीसद पुरुषों ने श्वसन संबंधी स्वास्थ्य जिज्ञासा सामने रखा. मेट्रो शहर दिल्ली, हैदराबाद, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरू, चेन्नई और पुणे के ज्यादातर लोगों ने जानकारी मांगी. गैर मेट्रो में जानकारी हासिल करनेवाले विशाखापत्तनम, लखनऊ, जयपुर, भुवनेश्वर, कानपुर और इंदौर के शहर शामिल रहे.


विशेषज्ञों ने वायु की खराब गुणवत्ता को बताया ज्यादा खतरा


वायु की गुणवत्ता में गिरावट पर बात करते हुए विशेषज्ञ डॉक्टर राजेश भारद्वाज ने कहा, "इसके पीछे कई कारण हैं. ठंड हवा में ज्यादा घनत्व होता है, अणु लंबे समय तक वायु में जमे रहते हैं और सतह पर रहते हैं. ये कम हवा, पराली जलाने, निर्माण कार्य और दिवाली पर पटाखे फोड़ने से स्थिति को और ज्यादा बिगाड़ देता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दूषित कण बंद जगहों के अंदर फंसे रहते हैं."


भारद्वाज ने बताया कि वायु की खराब गुणवत्ता हमारे लिए बहुत ज्यादा खतरा है क्योंकि इसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य खासकर ज्यादा जोखिम वाले लोग जैसे बुजुर्गों, बच्चे और गर्भवती महिलाओं पर पड़ता है. प्रदूषण से शुरू होनेवाली एलर्जी, सांस, दिल की बीमारी शुरू होकर घातक बन जाती है. फिर भी, जरूरी है कि इस समय अगर मामूली असुविधा भी हो रही है, तो डॉक्टरों से संपर्क करना चाहिए.


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