Sankashti chaturthi 2021 Vrat Katha: अश्विन मास (Ashwin Month) के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) मनाई जाती है. इसे विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी (Vighanraj Sankashti Chaturthi ) कहा जाता है. इस साल ये चतुर्थी 24 सितंबर (Vighanraj Sankashti on 24th September) को मनाई जाएगी. संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश (Bhagwan Ganesh) को समर्पित है. इस दिन व्रत रखने से भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है. लोगों के संकट दूर हो जाते हैं और घर में सुख-समृद्दि और वैभव का विकास होता है. कहते हैं कि गणेश भगवान की पूजा करने से कुंडली में मौजूद बुध दोष (Budh Dosh) भी दूर हो जाते हैं. 


मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है. घर में शांति बनी रहती है. इस दिन चंद्र दर्शन को शुभ माना जाता है. चंद्र दर्शन के बाद उन्हें अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है. पूरे साल में संकष्टी के 13 व्रत रखे जाते हैं और सभी संकष्टी व्रतों का अलग-अलग महत्व है. विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी के दिन विधि-विधान से पूजा पाठ करने के साथ व्रत भी रखा जाता है. इस दिन कथा सुनने का भी प्रावधान है. बिना कथे सुने व्रत पूरा नहीं माना जाता. विधि-विधान के साथ पूजा करने और कथा सुनने से गणेश जी प्रसन्न हो जाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. 


विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी कथा (Vighanraj Sankashti Chaturthi Katha)


कहते हैं कि बिना व्रत कथा सुने या पढ़े व्रत पूरा नहीं माना जाता और व्रत का फल नहीं मिलता. विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी की कथा इस प्रकार है. एक समय की बात है भगवान विष्णु जी की शादी मां लक्ष्मी जी से होनी तय होती है. विवाह का निमंत्रण सभी देवी-देवताओं को दे दिया जाता है, लेकिन गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया जाता. विवाह के दिन सभी देवी-देवता अपनी पत्नियों के साथ विष्णु जी की बारात में पहुंच जाते हैं लेकिन किसी को गणेश जी वहां दिखाई नहीं देते. सभी आपस में गणेश जी के न आने की चर्चा करने लगते हैं. और इसके बाद भगवान विष्णु जी से गणेश के न आने का कारण पूछते हैं.


भगवान विष्णु देवी-देवताओं के पूछने पर जवाब देते हैं कि गणेश जी के पिता जी भोलेनाथ को न्योता भेज दिया गया है. अगर उन्हें आना होता तो वे अपने पिता भगवान शिव के साथ आ जाते, अलग से न्योता देने की आवश्यकता नहीं है.  वहीं, अगर गणेश जी आते हैं तो उन्हें सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर खाने के लिए चाहिए. दूसरों के घर जाकर इतना कुछ खाना अच्छी बात नहीं है. अगर गणेश जी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं. किसी ने विष्णु जी की सलाह दी कि गणेश जी आ भी जाएं, तो उन्हें द्वारपाल बना कर घर के बाहर बैठा देना. आप तो चूहे पर बैठकर बहुत धीरे-धीरे चलोगे तो पीछे रह जाएंगे. इसलिए घर के बाहर द्वारपाल की तरह बैठाना ही उन्हें सही रहेगा. सभी को ये सुझाव अच्छा लगा भगवान विष्णु को भी ये सुझाव अच्छा लगा. 


गणेश विष्णु जी के विवाह में पहुंच गए और सुझाव के अनुसार उन्हें घर की रखवाली के लिए घर के बाहर बैठा दिया गया. नारद जी ने गणेश जी से बारात में न जाने का कारण पूछा, तो उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु ने मेरा बहुत अपमान किया है. नारद जी ने गणेश जी को सलाह दी कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, ताकि वो रास्ता खोद दें और उनका वाहन धरती में ही फंस जाए. तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा. नाराद जी की सलाह के अनुसार मूषक सेना ने धरती खोद और विष्णु जी का रथ उसी में फंस गया. लाख कोशिश के बाद भी तब उनका रथ नहीं निकला, तो नाराद जी ने कहा कि- आपने गणेश जी का अपमान किया है अगर उन्हें मना कर लाया जाए, तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है. 


भगवान शिव ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेश जी को लेकर आए. गणेश जी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया गया. तब रथ के पहिए निकले. पहिए निकलने के बाद देखा कि वे टूट-फूट गए हैं. अब उन्हें कौन सही करेगा? 


पास के खेतों में खाती काम कर रहे थे, उन्हें बुलाया गया. उन्होंने श्री गणेशाय नमः कहकर गणेश जी की वंदना की. देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया और देवतागगणों को भी सलाह दी कि किसी भी कार्य से पहले गणेश जी की पूजा करने से कार्य में कोई संकट नहीं आता. गणेश जी का नाम लेते हुए विष्णु जी की बारात आगे बढ़ गई और लक्ष्मी मां के साथ उनका विवाह संपन्न हो गया. 


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