विदुर नीति: विदुर महाभारत के सबसे लोकप्रिय पात्रों में से एक हैं. उनकी शिक्षाएं विदुर नीति कहलाती है. विदुर धर्मराज के अवतार माने जाते हैं. वे एक दासी पुत्र थे,लेकिन विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. वे हमेशा सत्य बोलते थे और सत्य के मार्ग पर ही चलते थे. वे पहले ऐसे व्यक्ति थे जिसने महाभारत के युद्ध को विनाशकारी बताया था. वे कौरवों और पांडवों के भी प्रिय थे. ये दोनों ही विदुर का आदर करते थे. यहां तक की भगवान कृष्ण के भी वे प्रिय थे. आइए जानते हैं आज की विदुर नीति....


सुखी वही है जो कर्जदार नहीं है


विदुर के अनुसार कलियुग में वही व्यक्ति सुखी है जो कर्जदार नहीं है. कर्ज लेने वाला व्यक्ति हमेशा दुखी और चिंतित रहता है उसके जीवन में तनाव बना रहता है. उसके दिन का चैन और रात की नींद छिन जाती है. व्यक्ति को सदैव कर्ज लेने से बचना चाहिए. कर्ज लेने वाले व्यक्ति का आत्मविश्वास रसातल में चला जाता है. वह कभी भी प्रसन्न नहीं रहता है. घर परिवार में कलक पैदा हो जाती है. घर में अशांति का वातावरण बनने लगता है. कर्ज लेते समय तो अच्छा लगता है. लेकिन जब इसे लौटाने का समय आता है तो व्यक्ति अपने आप को असहाय महसूस करने लगता है. कर्ज देने वाले के तानों को भी सुनना पड़ता है. कर्ज एक रोग है. इस रोग से व्यक्ति को सदैव अपने आप को सुरक्षित रखना चाहिए.


आय से अधिक व्यय नहीं करना चाहिए


जो व्यक्ति आय से अधिक व्यय करते हैं उन्हें नष्ट होने से कोई नहीं बचा सकता है. जो व्यक्ति व्यय करते समय इस बात का ध्यान नहीं रखते हैं वे आगे चलकर दुखों को उठाते हैं. आय श्रम से उत्पन्न होता है. जिस चीज में श्रम लगता है उसे बड़े ही सहेज कर रखना चाहिए. ये पूंजी कहलाती है. जो इस बात को भूलकर भोगविलास में इसे खर्च करने लगते हैं उन्हें समय आने पर संकटों का सामना करना पड़ता है. आय या पूंजी के महत्व को समझना चाहिए. ये बुरे वक्त में मदद के काम आती है. जरूरत पड़ने पर मदद करती है. इसलिए इसका व्यय बहुत ही सोच समझकर करना चाहिए.


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