Vaishakh Amavasya 2024: पंचांग के अनुसार अभी वैशाख का महीना चल रहा है. हर मास अमावस्या तिथि पड़ती है. यह तिथि विशेषकर पितरों को समर्पित होती है. इस दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान आदि किए जाते हैं, जिससे पितरों को तृप्ति मिलती है.


वैशाख माह की अमावस्या तिथि को बहुत खास माना जाता है, जोकि 8 मई 2024 को है. मान्यता है कि वैखाश अमावस्या पर शाम के समय दीपदान करना चाहिए. इससे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता.


पितरों का पर्व है अमावस्या तिथि


अमावस्या के दिन स्नान-दान, व्रत और पूजा-पाठ का महत्व है. लेकिन पितरों के लिए यह तिथि विशेष महत्व रखती है. अमावस्या को पितरों का पर्व कहा जाता है. क्योंकि इसी तिथि में पितृ अमृतपान करते हैं और पूरे माह संतुष्ट रहते हैं.


ऐसी भी मान्यता है कि अमावस्या तिथि पर सूर्यास्त के बाद वायु के रूप पितृ घर के चौखट पर रहते हैं. क्योंकि पितृ अपने परिजनों से श्राद्ध व तर्पण की इच्छा रखते हैं. इसलिए अमावस्या के दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण या पितृ पूजन जरूर करना चाहिए. इससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और पितृ प्रसन्न होकर परिवार वालों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.


अमावस्या पर अमृतपान करते हैं पितृ


विष्णु, मत्स्य और गरुड़ पुराण के अनुसार, हर महीने के कृष्ण पक्ष की द्वितिया तिथि से चतुर्दशी तिथि तक देवतागण चंद्रमा से अमृतपान करते हैं और फिर चंद्रमा का प्रवेश सूर्य मंडल में होता है. सूर्य की अमा नामक किरण को ही अमावस्या तिथि कहा जाता है.


कैसे पड़ा अमावस्या तिथि का नाम


वहीं मत्स्य पुराण के 14वें अध्याय के अनुसार, पितरों की एक मानस कन्या ने कठिन तपस्या की थी. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान देने के लिए सभी पितृगण उपस्थित हुए. पितृगण में एक पितर था, जिसका नाम अमावसु था. अमावसु के सुंदर रूप पर कन्या आकर्षित हो गई और उसने अमावसु से विवाह करने की इच्छा जताई. लेकिन अमावसु ने इंकार कर दिया. अमावसु का धैर्य देख यह तिथि पितरों को प्रिय हुई और इसके बाद से ही अमावसु के नाम से इस तिथि का नाम अमावस्या पड़ा.


वैशाख अमावस्या की कथा (Vaishakh Amavasya 2024 Katha)


वैशाख अमावस्या से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, धर्मवर्ण नाम का एक ब्राह्मण था. उसने किसी महात्मा के मुख से सुना कि, घोर कलियुग में विष्णु जी के स्मरण से अधिक पुण्य किसी अन्य काम में नहीं होगा. जैसा पुण्य यज्ञ से मिलता है, उससे कहीं ज्यादा पुण्य केवल श्रीहरि के सुमिरन मात्र के मिल जाएगा.


धर्मवर्ण ने महात्मा की इस बात को आत्मसात कर लिया और सांसारिक जीवन छोड़कर भ्रमण के लिए निकल पड़े. भ्रमण करते हुए वो पितृलोक पहुंच गए. धर्मवर्ण ने देखा कि, पितृलोक में पितृ बहुत कष्ट में हैं. पितरों ने बताया कि, उनकी यह स्थिति धर्मवर्ण के सन्यास के कारण हुई, क्योंकि अब उनके लिए पिंडदान करने वाला कोई नहीं है. पितरों ने धर्मवर्ण से कहा कि, तुम गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो और संतान उत्पन्न करो, जिसके पिंडदान से हमें तृप्ति मिले.


धर्मवर्ण ने पितृगण को वचन दिया कि वह ऐसा ही करेगा. इसके बाद धर्मवर्ण ने गृहस्थ जीवन की शुरुआत की और वैशाख अमावस्या पर विधि-विधान से पितरों का पिंडदान कर उन्हें कष्ट से मुक्त कराया.


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