Thursday Upay: गुरुवार का दिन भगवान विष्णु और बृहस्पति देव (Thursday Lord Vishnu or Brahaspati Dev Puja) को समर्पित है. इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के बृहस्पति रूप का पूजन (Brahaspati Pujan) किया जाता है. मान्यता है कि बृहस्पति देव (Brahaspati Dev) देवताओं के गुरु हैं. इस कारण ही इस दिन को गुरुवार या फिर बृहस्पतिवार (Guruvar Ya Brahaspastivar) के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि गुरुवार के दिन भगवान विष्णु का पूजन (Lord Vishnu Pujan) करने से ज्ञान, गुण, विवेक की प्राप्ति होती है.


इतना ही नहीं, इस दिन केले के वृक्ष (Bnana Tree) और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की विधिवत्त पूजन आदि करने से व्यक्ति के परिवार के सारे दुख और संकट दूर हो जाते हैं. कहते हैं कि भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की विधि-विधान के साथ पूजन करने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और संकटों से छुटकारा मिलता है. पूजन के समय भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) को हल्दी, गुड़, चने का भोग लगाया जाता है. धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि इस दिन व्रत कथा (Vishnu Vrat Katha) श्रवण और कहने से कई गुना पुण्य का फल मिलता है. इस दिन आरती (Guruvar Aarti) का भी विशेष महत्व है. बृहस्पति देव की आरती (Brahaspati Dev Aarti) करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. 


बृहस्पति देव की आरती (Brahaspati Dev Aarti Hindi Lyrics)


ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।


भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥


जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।


सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।


तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी।


पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।


मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।


किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।


अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।


श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।


ओम जय जगदीश हरे...॥


जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।


कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥


ओम जय जगदीश हरे...॥ 


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