Mahabharat:  महाभारत काल में कुरुवंशज कौरव कहलाए तो पांडु वंशज पांडव, इन्हीं दोनों में यह महायुद्ध हुआ, लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि महाभारत युद्ध न तो कौरवों ने लड़ा, न पांडवों ने. दरअसल कुरुवंश के नाम पर सिर्फ इकलौते योद्धा भीष्म थे, जो सिर्फ अपनी प्रतिज्ञा से बंधे होने के चलते दुर्योधन के पक्ष से युद्ध में उतरे थे. आइए जानते हैं कि आखिर कौन थे दुर्योधन समेत बाकी कौरव और युधिष्ठिर समेत सभी पांडव. 


धतराष्ट्र की संतानें कौरव और पांडु के बेटे पांडव कहलाए, लेकिन दोनों ही भाइयों की ये संतानें सामान्य तौर पर उनकी नहीं थीं. पांडु को जब लंबे समय तक कोई संतान नहीं हुई तो पत्नी कुंती और माद्री ने देवताओं का आह्वान किया. कुंती ने क्रमश: धर्मराज, इन्द्र और पवनदेव से प्रार्थना की तो युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम हुए. उसी तरह माद्री ने दो अश्विन कुमारों का आह्वान किया तो नकुल और सहदेव पैदा हुए.


वहीं गांधारी ने वेदव्यास से पुत्रवती होने का वरदान लिया. गर्भ धारण को दो वर्ष बीत गए, लेकिन संतान नहीं हुई तो गुस्से में गांधारी ने पेट पर मुक्के से प्रहार किया, जिससे गर्भ गिर गया. वेदव्यास को तुरंत पता चल गया और उन्होंने गांधारी से आकर कहा कि मेरा दिया वर मिथ्या नहीं जाता. तुम जल्द सौ कुंड तैयार करवाकर उनमें घी भरवा दो. वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांस पिण्ड पर अभिमंत्रित जल छिड़का, जिससे पिण्ड के अंगूठे के आकार के बराबर सौ टुकड़े हो गए. वेदव्यास ने इन्हें सौ कुंडों में रखवा दिया और दो वर्ष बाद खोलने का आदेश देकर चले गए. दो वर्ष बाद सबसे पहले कुंड से दुर्योधन, फिर बाकी कुंडों से धृतराष्ट्र के बाकी 99 पुत्र और बेटी दुशाला का जन्म हुआ.


द्रौपदी-द्रोण का जन्म भी दुर्लभ घटना का परिणाम
पांचाली द्रौपदी का जन्म भी रहस्य था, दरअसल यज्ञ से उत्पन्न होने के चलते उनका असली नाम यज्ञसेनी था. द्रौपदी नाम महाराज द्रुपद की पुत्री होने के कारण पड़ा. महर्षि भारद्वाज का वीर्य किसी द्रोणी (यज्ञकलश या पर्वत की गुफा) में स्खलित होने से जिस पुत्र का जन्म हुआ, उसे द्रोण कहा गया. यह भी कहा जाता है कि भारद्वाज ने गंगा में स्नान करती घृताची को देखा तो आसक्त हो गए और वीर्य स्खलन हो गया, जिसे उन्होंने द्रोण (यज्ञकलश) में रख दिया. इससे उत्पन्न बालक ही आगे चलकर द्रोण कहलाए.