Mahima Shani dev ki : पिता के तेज से बचाने के लिए मां छाया शनिदेव को सूर्यलोक के जंगल में छुपाकर रखती हैं. यहां बढ़ रहे शनिदेव की तलाश में घूम रहे देव और दानव आपस में संघर्ष शुरू कर देते हैं. इस दौरान उन्हें अन्याय से रोकने के लिए कर्मफलदाता शनि भी जंगल से बाहर आ जाते हैं. इसी दौरान एक दिन शुक्राचार्य आदेश पर सूर्यलोक में उस शक्ति का पता लगाने आता है. 


वह भूख से व्याकुल होकर एक उड़ते हुए कौवे को पकड़कर खाने लगता है, इसी बीच कौवा उससे प्रार्थना करता है, लेकिन तभी उसकी चीख सुनकर शनिदेव वहां आ जाते हैं. वे कौए को राक्षस से बचाकर राक्षस को कड़ा सबक सिखाते हैं. जिससे वह वहीं ढेर हो जाता है. इस संघर्ष के बीच काफी देर हो जाती है और सुबह होने लगती है. इधर जंगल में मां छाया शनि को पास न पाकर व्याकुल हो उठती है और सूर्य देव के उदय होने का समय देखकर परेशान हो उठती हैं. वह शनिदेव की खोज में हर तरफ भटकती हैं, तब तक सूर्यदेव की किरण हर दिशा में तेजी से बढ़ने लगती हैं. यह देखकर खुद शनि भी पिता के तेज से बचने के लिए जंगल की ओर से भागते हैं, लेकिन किरणें उनकी तेजी से पीछा करती हैं. खुद के भस्म होने की संभावना से वह चिंतित हो उठते हैं, तभी उनका बचाया हुआ कौआ अपना दिव्य रूप बदलता है और वृहद आकार में आकर शनिदेव को उठाकर उ़ड जाता है.


सूर्य की किरणों के तेज से कौवे ने शनिदेव को बचा लिया. दोनों ने एक दूसरे की जान बचाई, जिसके चलते दोनों के संबंध प्रगाढ़ हो गए. मगर मां की नजरों में आने से पहले ही कौवा वहां से उड़ जाता है. शनिदेव की मदद के लिए उनका आशीर्वाद पाने के लिए कौए को शुभ माना जाने लगा. पौराणिक मान्यता है कि शनिदेव के वरदान के चलते कौवा कभी बीमार नहीं पड़ता है और आयुवर्ग में सर्वाघिक समय बिताता है.


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