Sawan Month 2022 Shiv Ji Ki Aarti: हिंदू धर्म में सावन के महीने का विशेष महत्व होता है. सावन माह (Sawan Month) भोलेशंकर को प्रिय होता है. इस माह में विधि-विधान से भगवान शंकर की पूजा-अर्चना की जाती है. सावन के महीने में त्रिदेवों की सारी शक्तियां भगवान शिव के पास ही होती है. यह वो समय होता है जब हर कोई बाबा को प्रसन्न करने में लगा रहता है.


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन के महीने में भगवान शिव की विधि विधान से पूजा करने पर हर मनोकामना की पूर्ति होती है. पुराणों के अनुसार सावन में भोले शंकर की पूजा, अभिषेक, शिव स्तुति, और मंत्र जाप जरूर करना चाहिए, क्योंकि इनका खास महत्व होता है. सावन के दिन भोले बाबा की आराधना के साथ आरती का विशेष महत्व होता है. इसलिए सावन में पूजा के दौरान इन आरती को जरूर करें.


सावन माह में करें ये आरती


पहली आरती- ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥


एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥


दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥


अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥


श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥


कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥


ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥


लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥


पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥


जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला। शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ओम जय शिव ओंकारा॥


काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥


त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥


दूसरी आरती- हर हर महादेव की


सत्य, सनातन, सुन्दर शिव! सबके स्वामी ।
अविकारी, अविनाशी, अज, अन्तर्यामी ॥
हर हर हर महादेव ॥ १॥


आदि, अनन्त, अनामय, अकल, कलाधारी ।
अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी ॥
हर हर हर महादेव ॥ २॥


ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, तुम त्रिमूर्तिधारी ।
कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी ॥
हर हर हर महादेव ॥ ३॥


रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय औढरदानी ।
साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता, अभिमानी ॥
हर हर हर महादेव ॥ ४॥


मणिमय-भवन-निवासी, अति भोगी, रागी ।
सदा शमशान विहारी, योगी वैरागी ॥
हर हर हर महादेव ॥ ५॥


छाल-कपाल, गरल-गल, मुण्डमाल, व्याली ।
चिताभस्मतन, त्रिनयन, अयनमहाकाली ॥
हर हर हर महादेव ॥ ६॥


प्रेत-पिशाच-सुसेवित, पीतजटाधारी ।
विवसन विकट रूपधर, रूद्र प्रलयकारी ॥
हर हर हर महादेव ॥ ७॥


शुश्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी ।
अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि-मन-हारी ॥
हर हर हर महादेव ॥ ८॥


निर्गुण, सगुण, निरञ्जन, जगमय, नित्य-प्रभो ।
कालरूप केवल हर! कालातीत विभो ॥
हर हर हर महादेव ॥ ९॥


सत्, चित्, आनँद, रसमय, करुणामय धाता ।
प्रेम-सुधा-निधि, प्रियतम, अखिल विश्व-त्राता ॥
हर हर हर महादेव ॥ १०॥


हम अति दीन, दयामय! चरण-शरण दीजै ।
सब बिधि निर्मल मति कर, अपनो कर लीजै ॥


तीसरी आरती- ॐ जय गंगाधर


ॐ जय गंगाधर जय हर, जय गिरिजाधीशा ।
त्वं मां पालय नित्यं, कृपया जगदीशा ॥
ॐ हर हर हर महादेव ॥


कैलासे गिरि-शिखरे, कल्पद्रुम-विपिने ।
गुंजति मधुकर-पुंजे, कुंजवने गहने ॥
ॐ हर हर हर महादेव ॥


कोकिल-कूजित खेलत, हंसावन ललिता ।
रचयति कलाकलापं, नृत्यति मुदसहिता ॥
ॐ हर हर हर महादेव ॥


तस्मिंल्ललितसुदेशे, शाला मणिरचिता ।
तन्मध्ये हरनिकटे, गौरी मुदसहिता ॥
क्रीडा रचयति, भूषारंचित निजमीशम् ‌।
इंद्रादिक सुर सेवत, नामयते शीशम्‌ ॥
ॐ हर हर हर महादेव ॥


बिबुधबधू बहु नृत्यत, हृदये मुदसहिता ।
किन्नर गायन कुरुते, सप्त स्वर सहिता ॥
धिनकत थै थै धिनकत, मृदंग वादयते ।
क्वण क्वण ललिता वेणुं, मधुरं नाटयते ॥
ॐ हर हर हर महादेव ॥


रुण रुण चरणे रचयति, नूपुरमुज्ज्वलिता ।
चक्रावर्ते भ्रमयति, कुरुते तां धिक तां ॥
ॐ हर हर हर महादेव ॥


तां तां लुप चुप, तां तां डमरू वादयते।
अंगुष्ठांगुलिनादं, लासकतां कुरुते ॥
ॐ हर हर हर महादेव ॥


कपूर्रद्युतिगौरं, पञ्चाननसहितम् ।
त्रिनयन-शशिधर-मौलिं, विषधर-कण्ठयुतम्‌ ॥
ॐ हर हर हर महादेव ॥


सुन्दर-जटायकलापं, पावकयुत-भालम् ‌।
डमरु-त्रिशूल-पिनाकं, करधृतनृकपालम्‌ ॥
ॐ हर हर हर महादेव ॥


मुण्डै रचयति माला, पन्नगमुपवीतम् ‌।
वाम-विभागे गिरिजा, रूपं अतिललितम्‌ ॥
ॐ हर हर हर महादेव ॥


सुन्दर-सकल-शरीरे, कृत-भस्मा-भरणम्‌।
इति वृषभ-ध्वज-रूपं, ताप-त्रय-हरणं ॥
ॐ हर हर हर महादेव ॥


शंखनिनादं कृत्वा, झल्लरि नादयते ।
नीराजयते ब्रह्मा, वेदऋचां पठते ॥
ॐ हर हर हर महादेव ॥


अतिमृदु-चरण-सरोजं, हृत्कमले धृत्वा ।
अवलोकयति महेशं, ईशं अभिनत्वा ॥
ॐ हर हर हर महादेव ॥


ध्यानं आरति समये, हृदये अति कृत्वा ।
रामस्त्रिजटानाथं, ईशं अभिनत्वा ॥
ॐ हर हर हर महादेव ॥


संगतिमेवं प्रतिदिन, पठनं यः कुरुते ।
शिवसायुज्यं गच्छति, भक्त्या यः श्रृणुते ॥
ॐ हर हर हर महादेव ॥


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