Rohini Vrat 2022: जैन धर्म के अनुयायियों के लिए रोहिणी व्रत का विशेष महत्व है. 27 नक्षत्रों में शामिल रोहिणी नक्षत्र के दिन यह व्रत किया जाता है, इसलिए इसे रोहिणी व्रत कहते हैं. सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र प्रबल होता है, उस दिन रोहिणी व्रत किया जाता है. जैन धर्म के लोग इस दिन वासुपूज्य की उपासना करते हैं. कहते हैं कि महिलाएं ये व्रत सुहाग की दीर्धायु और उत्तम स्वास्थ के लिए करती है. आइए जानते हैं इस बार कब है रोहिणी व्रत, इससे जुड़ी खास बातें.


रोहिणी व्रत 2022 डेट (Rohini Vrat 2022 Date)


जब सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र प्रबल होता है उस दिन रोहिणी व्रत किया जाता है. इस बार ये व्रत 10 नवंबर 2022 को रखा जाएगा. जैन धर्म के अनुसार महिलाएं ये व्रत तीन, पांच या सात साल तक करती हैं. उसके बाद पूर्ण विधि विधान से इसका उद्यापन कर दिया जाता है. इस व्रत के प्रभाव से ईर्ष्या, द्वेष जैसे भाव का नाश होता है.


रोहिणी व्रत पूजा विधि (Rohini Vrat Puja Vidhi)



  • रोहिणी व्रत में सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद साफ वस्त्र धारण करें. जैन धर्म में पवित्रता और शुद्धता का खास खयाल रखा जाता है.

  • अब पूजा के लिए वासुपूज्य भगवान की पांचरत्न, ताम्र या स्वर्ण प्रतिमा की स्थापना करें. वासुपूज्य भगवान को फूल, फल, वस्त्र, शुद्ध घी में बने नैवेद्य का भोग लगाएं

  • जैन समुदाय के लोग इस दिन व्रत पूर्ण होने से पहले गरीबों में अन्न, धन, वस्त्र का दान करते हैं. कहते हैं इससे भौतिक सुखों में बढ़ोत्तरी होती है.


रोहिणी व्रत कथा (Rohini Vrat Katha)


पौराणिक कथा के अनुसार चंपापुरी नगर में राजा माधवा और रानी लक्ष्मीपति के7 पुत्र और 1 बेटी थी,जिसका नाम रोहिणी था. रोहिणी का विवाह हस्तिनापुर के राजा अशोक से हुआ. एक समय हस्तिनापुर में एक मुनिराज आए और सभी ने धर्मोपदेश को ग्रहण किया. राजा ने मुनिराज से पूछा कि आखिर उनकी रानी इतनी चुप-चुप क्यों रहती है? मुनिराज ने इसी राज्य में एक धनमित्र नाम का व्यक्ति था जिसकी कन्या का नाम दुर्गांधा थी. लड़की के पास हमेशा दुर्गंध आती थी इसी कारण वह हमेशा उसकी शादी के लिए परेशान रहता था. धनमित्र ने अपने पुत्री का विवाह अपने मित्र के पुत्र श्रीषेण के साथ धन का लालच देकर कर दिया, लेकिन उसकी दुर्गंध से परेशान होकर वह एक महीने में ही उसे छोड़ गया.


पुत्री के विवाह के लिए परेशान था धनमित्र


धनमित्र ने दूसरे मुनिराज अमृतसेन से दुर्गांधा की व्यथा बताई और पुत्री के बारे में पूछा. तब उन्होंने बताया कि गिरनार पर्वत पर राजा भूपाल अपनी रानी सिंधुमती के साथ रहते थे. नगर में एक बार मुनिराज आए थे. राजा ने रानी से मुनिराज के लिए भोजन की व्यवस्था करने को कहा. रानी ने क्रोधित होकर मुनिराज को कड़वी तुम्‍बी का आहार  दिया. इसेस मुनिराज को अत्यंत वेदना सहनी पड़ी और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए.


रोहिणी व्रत के प्रभाव से कन्या को मिला राजपाठ


मुनिराज की मृत्यु के बाद परिणाम रानी को कोढ़ हो गया और उसने प्राण त्याग दिए दुखों को झेलने के बाद उसने पशु योनि में और फिर तेरे घर दुर्गंधा कन्‍या के रूप में जन्म लिया. धनमित्र ने पुत्री के ठीक होने का विधान पूछा. मुनिराज ने कहा कि सम्‍यग्दर्शन सहित रोहिणी व्रत पालन करो. जिस दिन हर मास रोहिणी नक्षत्र आए उस दिन चारों तरह के आहार का त्‍याग करें. साथ ही श्री जिन चैत्‍यालय में जाकर धर्मध्‍यान समेत 16 प्रहर व्‍यतीत करें. इस तरह यह व्रत 5 साल तक करें.  मुनिराज के कहे अनुसार, दुर्गंधा ने श्रद्धापूर्वक व्रत किया और मरणोपरान्त स्वर्ग में प्रथम देवी हुईं और अशोक की रानी बनीं.  ऐसे ही जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा के साथ यह व्रत करेगा उसे सभी सुखों की प्राप्ति होगी.


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